संसार में न्याय अधिक होता है या अन्याय ? अच्छे कर्म अधिक होते हैं या बुरे ? इस प्रश्न का उत्तर है, कि यहां संसार में न्याय कम होता है और अन्याय अधिक। अच्छे कर्म कम होते हैं और बुरे कर्म अधिक। आप पूछेंगे, इस बात का क्या प्रमाण है? प्रमाण यह है, कि संसार में मनुष्यों की संख्या बहुत कम है, और कीड़े मकोड़े वृक्ष, वनस्पति, सांप, बिच्छू, कुत्ते गधे, शेर, भेडएि और लाखों प्रकार के जंगली एवं समुद्री जीव-जंतुओं की संख्या मनुष्यों की तुलना में बहुत अधिक है, लाखों गुना अधिक है। अब यह सामान्य बुद्धि की बात है, कि यदि संसार में पुण्य कर्म अधिक होते हों, तो मनुष्यों की संख्या अधिक होनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जन्म तो पुण्य कर्मों से ही मिलता है। परंतु यहां संसार में कीड़े, मकोड़े पशु पक्षियों की संख्या मनुष्यों की तुलना में लाखों गुना अधिक है। इससे सिद्ध होता है कि संसार में पुण्य कम होता है और पाप अधिक होता है। न्याय कम होता है, और अन्याय अधिक होता है। बल्कि सत्य तो यह है, कि यहां संसार में एक भी मनुष्य के साथ पूरा-पूरा न्याय नहीं होता। चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक चाहे कोई भी व्यक्ति हो, सभी के साथ जीवन में कभी न कभी, कहीं न कहीं, कम या अधिक अन्याय तो होता ही है। यदि आप इस बात को 100 बार दोहराएं, और अपने मन बुद्धि में बिठा लें, कि यहां सभी के साथ जीवन में कभी न कभी, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ अन्याय तो होता ही है तो आपके साथ भी जो अन्याय होता है, उसको सहन करने की आपकी शक्ति बढ़ जाएगी। तब आप घबराएंगे नहीं, छोटी-छोटी बात में दुखी नहीं होंगे, डिप्रेशन में नहीं जाएंगे। तब आप उस अन्याय की घटना को ईश्वर के न्याय पर छोड़ देंगे, और ठीक प्रकार से अपना जीवन जी सकेंगे। यहां सबके साथ अन्याय होता है। मेरे इस वाक्य का अर्थ ऐसा न लगाएं, कि जो भी अन्याय आप के साथ हो रहा है, उसे होने दें। मेरे कहने का यह तात्पर्य नहीं है। मेरा तात्पर्य यह है, कि पूरी सावधानी रखते हुए भी यदि आप के साथ कोई अन्याय हो भी गया हो, तो उसमें आश्चर्य न मानें। क्योंकि यहां सभी के साथ अन्याय होता ही है। जब सभी के साथ कम या अधिक अन्याय होता ही है, तो आपके साथ भी हो गया। फिर इसमें आश्चर्य की क्या बात है ! ऐसा सोचें। ऐसा सोचने से आपका दुख और आश्चर्य कम हो जाएगा, तथा आप शांति से जी सकेंगे। यदि उस अन्याय के बदले में सांसारिक न्यायालय में आपको न्याय मिलता हो, तो अवश्य ले लें। यदि न मिलता हो, तो घबराएं नहीं। चिंतित न होवें। तब उसे ईश्वर के न्याय पर छोड़ दें। क्योंकि ईश्वर के न्यायालय में तो सदा सत्य की विजय होती ही है। इसलिए वहां तो आपको ठीक-ठीक न्याय मिल ही जाएगा। ऐसा सोचकर अपने जीवन को बिगाड़ें नहीं। दुखी न हों। शांतिपूर्वक अपना शेष जीवन जिएं। मेरे कहने का यह तात्पर्य है। और अन्यायकारी लोगों से सदा सावधान तो रहना ही है। उनसे अपनी सुरक्षा अवश्य करते रहें। बस यही विधि है, संसार में कुछ ठीक ढंग से जीने की।
-स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक,निदेशक – दर्शन योग
महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात