संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
भाजपा ने छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर उन नेताओं और राजनीतिक दलों को संदेश दे दिया जिन्होंने पिछले कुछ समय से जाति के नाम पर समाज को विभाजित करने का खेल शुरू कर दिया था। जातीय जनगणना के मुद्दे को चुनावी वायदा बनाने वाले राहुल गांधी जैसे नेता के लिए श्री साय का चयन एक तमाचा है, जो इन दिनों ओबीसी का झुनझुना बजाते घूम रहे हैं। भाजपा द्वारा आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री देना इस राज्य में ईसाई मिशनरियों और उनकी छत्रछाया में पनप रहे नक्सलियों को ये इशारा है कि अब उनसे आमने सामने का मुकाबला करने वाली ताकत खड़ी हो गई है। हालांकि लगातार 15 साल तक भाजपा ने गैर आदिवासी डा.रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाए रखा। लेकिन बीते कुछ सालों के भीतर रास्वसंघ ने आदिवासी अंचलों में अपना जनाधार तेजी से बढ़ाया जिसका प्रमाण कुछ समय पहले तब मिला जब हिंदुओं का धर्मांतरण करने पहुंचे ईसाई मिशनरीज को ग्रामीण जनों ने खदेड़ दिया। सही बात तो ये है कि छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी समस्या धर्मांतरण और नक्सलवाद से मुक्ति पाना है। और इसीलिए संघ की पसंद के ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया गया जो आदिवासी होने के साथ ही जनाधार भी रखता हो और वैचारिक प्रतिबद्धता भी। श्री साय उस दृष्टि से बेहद उपयुक्त हैं। उनका परिवार संघ और भाजपा की विचारधारा से लंबे समय तक जुड़ा रहा है उनके पिता और वे स्वयं सांसद विधायक और मंत्री रहे हैं। श्री साय छत्तीसगढ़ में पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। सबसे बड़ी बात उनकी साफ सुथरी छवि है। कहने को नवगठित छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी भी आदिवासी कहे जाते थे किंतु ईसाई होने के कारण वे हिन्दू परंपराओं से जुड़े मूल आदिवासियों के बीच पैठ न बना सके। यही वजह रही कि उनके राज में कांग्रेस का जनाधार खिसकता चला गया। अंततः उनको भी कांग्रेस से हटना पड़ा और उन्होंने अपनी पार्टी
भी बनाई जिसे बाद में भाजपा की बी टीम कहकर कांग्रेस ने प्रचारित किया क्योंकि उसकी वजह से कांग्रेस के वोट बंटने का लाभ भाजपा को मिलता रहा। 2018 में भाजपा के विरुद्ध सत्ता विरोधी रुझान चरम पर जा पहुंचा और कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सत्ता में आ गई। लेकिन उससे यहीं चूक हो गई और उसने भूपेश बघेल को सत्ता में बिठा दिया जो पिछड़ी जाति के हैं। कांग्रेस यह भूल गई कि उसे बस्तर के आदिवासी इलाकों से जबर्दस्त सफलता मिली थी। यद्यपि श्री बघेल ने भाजपा से हिंदुत्व का मुद्दा छीनने का जबरदस्त प्रयास किया जिसके कारण वे पूरे देश में ये माहौल बनाने में सफल हुए कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की वापसी असंभव है। जिस तरह की योजनाएं उनके द्वारा लागू की गईं उनका विरोध करना भाजपा के लिए भी संभव नहीं था किंतु श्री बघेल जरूरत से ज्यादा आत्ममुग्ध हो गए और पार्टी संगठन पर भी पूरा कब्जा कर लिया। कांग्रेस हाईकमान ने भो उनको कुछ ज्यादा ही महत्व दिया जिसके चलते टी. एस. सिंहदेव को ढाई साल बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने का वायदा रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया। इसके कारण कांग्रेस ऊपर से तो मजबूत नजर आती रही किंतु भीतर से उसकी जड़ें कमजोर होने लगीं। और जब सनातन के विरोध का मुद्दा उठा तब पार्टी ने जिस तरह का गैर जिम्मेदाराना आचरण किया उसने श्री बघेल की हिंदुत्व समर्थक छवि को नुकसान पहुंचाया
। बची खुची कसर पूरी कर दी उनके पिता द्वारा सनातन धर्म विरोधी बयान देकर जिसका प्रतिवाद न मुख्यमंत्री कर सके और न ही कांग्रेस पार्टी। यही कारण रहा कि चुनाव शुरू होने के काफी समय बाद तक कांग्रेस का मजबूत किला मनाकर जिस छत्तीसगढ़ को भाजपा के लिए अपराजेय माना जाने लगा था, उसने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया। शहरी क्षेत्रों के साथ ही सरगुजा और बस्तर जैसे आदिवासी वर्चस्व वाले इलाकों में भी भाजपा को जो जबरदस्त समर्थन मिला उसने उन राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंका दिया जो मतगणना की सुबह तक कांग्रेस सरकार की वापसी सुनिश्चित बता रहे थे। इसमें दो मत नहीं है कि म.प्र. और राजस्थान में कांग्रेस की विजय को लेकर शंकाएं थीं किंतु छत्तीसगढ़ में तो ज्यादातर भाजपाई ही अपनी जीत के प्रति नाउम्मीद थे। लेकिन रास्वसंघ की जमीनी मेहनत और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को आत्मविश्वास भरी व्यूह रचना ने चमत्कार कर दिखाया। अमित शाह ने तो श्री साय के चुनाव प्रचार के दौरान ही मतदाताओं से कहा था कि वे उनको जिता दें तो बड़ा आदमी बनाने के जिम्मेदारी मेरी है। इसका संकेत साफ था कि भाजपा आदिवासी मुख्यमंत्री बनाएगी जबकि कांग्रेस भूपेश बघेल के आभामंडल को ही जीत का नुस्खा मानकर आत्ममुग्ध बनी रही। श्री साय का मुख्यमंत्री बनना भाजपा की दूरगामी राजनीति का संकेत है जिसका प्रभाव झारखंड, बिहार, म.प्र और उड़ीसा के आदिवासी अंचलों में पड़े बिना नहीं रहेगा। इसके जरिए जातीय जनगणना की पैरोकार कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों को भाजपा ने ये बता दिया कि सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति में वह उन सबसे ज्यादा सिद्धहस्त है।