पौधा उखाड़कर देखते रहिए कहीं जड़ें जम तो नहीं गई…?

पौधा उखाड़कर देखते रहिए कहीं जड़ें जम तो नहीं गई…?
पौधा उखाड़कर देखते रहिए कहीं जड़ें जम तो नहीं गई…?

आलेख: सुरेश शर्मा

हरियाणा में यकायक सत्ता परिवर्तन हो गया। कुछ दिन पहले ही जिन मनोहर लाल खट्टर के साथ के दिनों का बखान करके प्रधानमंत्री दोस्ती की बातें करके उनको यार बता रहे थे , अगला दिन शुरू होते ही उनसे इस्तीफा दिलवा दिया। पर्यवेक्षक भी पहुंच गये और नया सीएम भी चुना लिया गया। अब यह ढ़ाढ़स बंधाया जा रहा है कि करनाल से लोकसभा चुनाव जितवाकर अगली सरकार में शोभा बढ़ाने का मौका भी दिया जायेगा। ऐसे ही आश्वासन शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य नेताओं को भी थमाये गये हैं। चौंकाने की स्थिति तक पहुंचे मोदी-शाह बार-बार इस बात को आजमाते हैं और पौधे को उखाड़कर देखते हैं कि जड़ेें जमीं तो नहीं हैं? रमन, शिवराज,वसुन्धरा के बाद अब खट्टर इस प्रयोग की जद में आ गये। इससे पहले विजय रूपाणी और येदुरप्पा भी इसी प्रयोग से गुजर चुके हैं। अनिल विज बेमतलब ही शिकार हो गये?

दिन अच्छा खासा था। तीन दिन पहले गुरूग्राम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ वर्षों पहले बिताये गये लम्हों की जानकारी देते हुए बोले वे दिन दरी पर सोने के थे। मनोहरलाल जी के पास एक मोटर साइिकल हुआ करती थी , वही साधन था। सभी सुनने वालों को यही लग रहा था कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का यही याराना डबल इंजन की सरकार का आदर्श उदाहरण है। मनोहरलाल को उस रात खर्राटेदार नींद आई होगी। लेकिन किसे पता था कि कुर्बानी से पहले बकरे को सजाया जा रहा है। अगला दिन शुरू हुआ तो बहाना चौटाला से पीछा छुड़ाने की बात से शुरू हुआ। सरकार ने इस्तीफा दे दिया। इसके मायने यह निकाले जा रहे थे कि मनोहर लाल फिर से शपथ ले लेंगे। क्योंकि आसानी से सरकार से बाहर करने का यही तरीका हो सकता है। विधायक दल की बैठक आहुत हो गई थी और पर्यवेक्षक भी बुला लिये गये थे। यहीं से राजनीतिक चिंतन शुरू हो गया था।

अब तक कुछ मंत्रियों ने कहना शुरू कर दिया था कि खट्टर साहब ही विधायक दल के नेता चुने जा रहे हैं। कुछ संपर्क वाले विधायक भी इसी आस से खबर दे रहे थे। लेकिन मीडिया कहां विश्वास करने वाला था। कुछ दिन पहले ही तो इन्हीं पर्यवेक्षकों की पर्ची से मीडिया ने डा. मोहन यादव और भजनलाल शर्मा को निकलते हुए देखा था। इसलिए यह कहा जाने लगा कि सूत्र कह रहे हैं कि खट्टर नेता चुने जायेंगे फिर भी मोदी-शाह की वे ही जाने? कोई भी खबर पूरे विश्वास से नहीं बताई गई। जब विधायक दल से अनिल विज नाराज होकर निकले तब समझ में आ गया था कि खट्टर तो नहीं बन रहे हैं। खट्टर सरकार का गृहमंत्री खट्टर के नाम पर अपनी सरकारी गाड़ी का त्याग थोड़े ही करेगा? मनाने का प्रयास भी इतना तगड़ा नहीं था कि यह मान लिया जाये कि भाजपा इस पुराने और प्रभावी नेता के गुस्से को गंभीरता से ले रही है। धरातल पर हौसलों की उड़ान का देशव्यापी समर्थन देखकर इस समय मोदी के निर्णय को चुनौती देने का साहस कौन दिखायेगा? जो भी दिखायेगा उसे पहले यह विचार कर लेना होगा कि उसका वनवास तय है। अभी तो विज साहब के लिए यही लक्षण हैं।

दुष्यंत चौटाला के काम से पूरे हरियाणा में यह चर्चा थी कि इन्हें सरकार से कोई मतलब नहीं है? इन्हें भाजपा की साख से भी कोई मतलब नहीं है? न खाऊंगा और न खाने दूंगा कहने वाला मोदी किस खेत की मूली है? डकार भी नहीं लेने की सौगंध खाकर काम होने लग गया था। भाजपा का कार्यकर्ता मनोहर लाल की ईमानदारी पर सभा के लिए भीड़ जुटाने की हैसियत तक भी नहीं पहुंचा था लेकिन दुष्यंत का कार्यकर्ता तीन पीढ़ियों का इंतजाम कर चुका था। इसलिए पीछा छुड़ाने के लिए यही राह सही थी। अच्छा यह हो गया कि खट्टर राज भी खत्म कर दिया गया। यह बात हर भाजपा का कार्यकर्ता कह रहा है? यदि खट्टर लोकसभा में सीएम रहते तो भाजपा की लुटिया डूब सकती थी। बचती तो केवल मोदी के नाम के कारण। इसलिए मोदी ने एक तीर से दो निशाने साध लिये। मोदी-शाह भाजपा के लिए ऐसे बागवान मिले हैं जो पार्टी को तो हरी-भरी कर रहे हैं लेकिन माली की जड़ें जमने नहीं दे रहे हैं?