
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हमारा सबसे बड़ा नुकसान उस उम्मीद का खो जाना है जिसके जरिए हम खोई हुई हर चीज दोबारा हासिल कर सकते हैं। इसरो ( भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ) ने संभवतः स्वामी जी की उक्त बात से ही प्रेरणा ली । इसीलिए कुछ वर्ष पूर्व चंद्रमा पर अपना यान उतारने में असफल रहने के बावजूद उम्मीद नहीं छोड़ी और अंततः वह कर दिखाया जो अमेरिका , रूस और चीन तक नहीं कर सके। इन देशों की तुलना में इसरो के पास उपलब्ध संसाधन बेहद सीमित हैं। हमारे देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों हेतु दिया जाने वाला बजट भी अपेक्षाकृत काफी कम है। इसके बावजूद भी इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा दी। उल्लेखनीय है चंद्रयान 3 के प्रक्षेपण के बाद रूस द्वारा भी लूना 25 नामक यान छोड़ा जो चंद्रमा की धरती को छूने के पहले ही नष्ट हो गया। उसके कारण इसरो में भी आशंका का माहौल बना किंतु चंद्रयान के सारे उपकरण जिस तरह ठीक से काम कर रहे थे उससे वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास भी आसमान छू रहा था। पिछले अभियान की असफलता से निराश हुए बिना इसरो ने गलतियों को सुधारने पर पूरा ध्यान दिया और इसीलिए इस बार शुरु से ही वैज्ञानिक पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे थे जो कल शाम को निर्धारित समय पर चंद्रयान के चंद्रमा की धरती छूते ही सही साबित हुआ। दक्षिणी ध्रुव के बारे में ये कहा जाता है कि वहां सूर्य की रोशनी कम आती है। फिलहाल वहां उजाला है जो अगले 14 दिन जारी रहेगा और इसी दौरान चंद्रयान के साथ गया प्रज्ञान नामक छोटा सा वाहन सतह पर घूम – घूमकर चित्र खींचकर भेजेगा , जिसने आज अपना काम शुरू भी कर दिया है। इस मिशन का असली उद्देश्य चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना है जिसके आधार पर वहां जीवन की संभावना का पता चल सकेगा। इस अभियान को अंतरिक्ष कार्यक्रम का बड़ा कदम कहा जा सकता है क्योंकि यह चंद्रमा के उस हिस्से से जुड़ गया जहां पहुंचने में अभी तक किसी देश को सफलता नहीं मिली थी। इसीलिए पूरी दुनिया की निगाहें चंद्रयान की सफलता पर लगी हुई थीं। अंतरिक्ष अभियान एक जमाने में अमेरिका और रूस के बीच शीतयुद्ध का कारण भी बने। रूस के यूरी गागरिन सबसे पहले मानव थे जो अंतरिक्ष में गए। बाद में अमेरिका ने नील आर्मस्ट्रांग को चंद्रमा पर उतारकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। हालांकि सोवियत संघ के बिखरने के बाद रूस कुछ ठंडा पड़ा जिससे प्रतिस्पर्धा थोड़ी कम हुई किंतु इसी बीच चीन भी बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभरा । लेकिन अनेक विकसित देशों को अंतरिक्ष कार्यक्रम सफेद हाथी प्रतीत हुआ और उन्होंने दूसरे देशों की प्रक्षेपण सेवाएं लेकर अपने उपग्रह भेजना शुरू कर दिया। प्रारंभ में भारत भी ऐसा ही कर रहा था। रूस के उपग्रह में उसने राकेश शर्मा नामक अपना पहला अंतरिक्ष यात्री भेजा था । लेकिन इसके अलावा मौसम की जानकारी और संचार सुविधाओं के लिए ही उपग्रह छोड़े जाते रहे। 2014 में मंगल यान के जरिए भारत उसकी कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बना । वह सफलता इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि वह पहले प्रयास में हासिल हुई। उसके बाद से ही इसरो के प्रति दुनिया का नजरिया बदला और अमेरिका तथा रूस सहित बाकी महाशक्तियों के मन में जो श्रेष्ठता का अभिमान था वह जाता रहा। बीते वर्षों में भारत द्वारा अनेक देशों के उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया जो इसरो का व्यवसायिक पक्ष है। दरअसल विकसित देशों की तुलना में इसरो के जरिए प्रक्षेपण सस्ता होने से छोटे – छोटे देश उसकी सेवाएं लेने लगे। इसी सबसे चंद्रमा पर आरोहण का हौसला जन्मा जो गत दिवस मूर्तरूप ले सका। इसके बाद इसरो अंतरिक्ष में अपने यात्री भेजने के संकेत दे रहा है। सूर्य सहित अन्य ग्रहों तक पहुंचने के कार्यक्रम भी घोषित हो रहे हैं। दरअसल अंतरिक्ष कार्यक्रम केवल अन्य ग्रहों तक पहुंचकर वहां के चित्र लेने तक सीमित नहीं रहा, अपितु पृथ्वी के भविष्य से जुड़े प्रश्नों का उत्तर खोजने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। मौसम और संचार के अलावा जासूसी भी इसके माध्यम से होती है। भविष्य में यदि भारत गूगल जैसा अपना सर्च इंजिन विकसित करना चाहे तब उसे अपने उपग्रहों के माध्यम से ऐसा करना सुरक्षित रहेगा । सबसे बड़ी बात ये है कि इसरो की इस सफलता के बाद हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम आत्म निर्भरता के स्तर तक जा पहुंचा है। इसका सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि देश के वे युवा वैज्ञानिक जो बेहतर भविष्य की खातिर अमेरिका के अंतरिक्ष संगठन नासा से जुड़ना चाहते हैं , उनके मन में भी अपने देश में रहकर काम करने का भाव उत्पन्न होगा। चंद्रयान 3 की सफलता ने हर भारतीय को आत्मगौरव की अनुभूति का अवसर दिया है। इससे विदेशों में रहने वाले उन भारतीयों में भी मातृभूमि के प्रति सम्मान और लगाव विकसित होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं जो भारत को हेय दृष्टि से देखते आए हैं। दुनिया जिस तरह से डिजिटल होती जा रही है उसे देखते हुए उपग्रह सेवा के लिए पूर्ण आत्मनिर्भरता आवश्यक है। आज की दुनिया में डेटा सबसे बड़ी पूंजी बनता जा रहा । इसका भंडार और गोपनीयता दोनों महत्वपूर्ण हैं। उस दृष्टि से इसरो ने जो कामयाबी हासिल की है उसे बड़ी यात्रा के लिए बढ़ाए गए कदम के तौर पर देखा जा सकता है। भले ही आज भी वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक की दृष्टि से भारत , अमेरिका और रूस जैसे देशों से पीछे हो किंतु चंद्रयान 3 की शानदार कामयाबी के बाद यह अंतर कम हुआ है। भले ही हमारे अंतरिक्ष यात्री उनके स्तर तक न पहुंचे हों किंतु चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना यान उतारने वाला प्रथम देश होने का गौरव अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत के नाम दर्ज होना बहुत बड़ी बात है। इसरो के समूचे दल को इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनाने के लिए हर भारतवासी की ओर से हार्दिक बधाई के साथ भावी सफलताओं के लिए अनंत शुभकामनाएं।