एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर इस लोकसभा चुनाव में भी बहस होना चाहिए

एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर इस लोकसभा चुनाव में भी बहस होना चाहिए
एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर इस लोकसभा चुनाव में भी बहस होना चाहिए

एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18000 पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट सौंप दी। गत वर्ष सितंबर में बनाई इस समिति ने 191 दिनों के भीतर विभिन्न वर्गों से चर्चा उपरांत यह रिपोर्ट तैयार की। इसमें पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने का तरीका सुझाया गया है। समिति में श्री कोविंद के अलावा गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी , पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद राजनेता के तौर पर थे। उनके अलावा वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन. के. सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष काश्यप और पूर्व मुख्य आयुक्त सतर्कता संजय कोठारी सदस्य थे। कानूनविद हरीश साल्वे ने विधि विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवा प्रदान की। यह रिपोर्ट लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाली सरकार के सामने पेश होगी। यदि सब कुछ ठीक – ठाक रहा तब संसद संविधान संशोधन के जरिये इस दिशा में आगे बढ़ेगी। वर्तमान में भाजपा , बीजद और अन्ना द्रमुक एक साथ चुनाव के पक्षधर हैं जबकि कांग्रेस, तृणमूल और द्रमुक विरोध में। जब यह रिपोर्ट अगली संसद में विचारार्थ पेश होगी तब बाकी पार्टियों की मंशा जाहिर होगी। इसलिए बेहतर होगा यदि भाजपा इस लोकसभा चुनाव में ही एक देश एक चुनाव को मुद्दा बनाये। इस व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इससे न सिर्फ सरकार अपितु राजनीतिक दलों का भी खर्च बचेगा। चुनावी चंदे के नाम पर जो भ्रष्टाचार होता है उसे कम करने के लिए भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाया जाना देश और लोकतंत्र दोनों के हित में होगा। इलेक्टोरल बॉण्ड को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित किये जाने के बाद से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का मामला सुर्खियों में है। कांग्रेस इन दिनों अपनी खस्ता आर्थिक हालत का रोना रो रही है। अलग – अलग चुनाव होने के कारण पूरे पांच साल चुनाव का मौसम बना रहता है। एक राज्य से फुर्सत मिले तो दूसरे का चुनाव आ धमकता है। लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद अनेक राज्यों के चुनाव होने वाले हैं। इसके कारण राष्ट्रीय राजनीति का क्षेत्रीय करण हो गया है। मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के बल पर चुनाव जीतने का फॉर्मूला अर्थतंत्र को तबाह किये दे रहा है। वोटों की मंडी सजी है। मतदाता ग्राहक बना दिया गया है। संघीय ढांचे के लिए भी हमेशा चलने वाले चुनाव नुक्सानदेह हो चले हैं। केंद्र में बैठी सरकार के लिए अलग – अलग होने वाले चुनाव नीतिगत गतिरोध का कारण बनता जा रहा है। कुल मिलाकर चुनाव की कभी न टूटने वाली श्रृंखला देश के विकास के साथ ही केंद्र – राज्य संबन्धों में दरार पैदा करने की वजह बन रही है। ऐसे में एक देश एक चुनाव के सुझाव का सभी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन किया जाना देश हित में होगा। भाजपा और उसके सहयोगी दलों को चाहिए 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने चुनावी वायदे में 2029 के आम चुनाव में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने की बात शामिल करते हुए मतदाताओं को इसकी आवश्यकता बताएं। देश में एक बड़ा वर्ग है जो रोज – रोज की चुनाव चर्चा से ऊब चुका है। यदि इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का विषय बनाएं तो समाज में सकारात्मक सोच रखने वाले लोग मुखर होकर अपनी राय व्यक्त करेंगे। वैसे भी चुनाव में इस तरह के विषय जनता में जागरूकता पैदा करने में कारगर होते हैं क्योंकि इनसे देश का भविष्य तय होता है? समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के बाद अब इस विषय पर सामाजिक स्तर पर भी विमर्श होना जरूरी है क्योंकि चुनाव पर होने वाले बेतहाशा खर्च का बोझ अंततः जनता पर ही पड़ता है। भ्रष्टाचार पर नकेल कसना हो तो चुनाव की मौजूदा व्यवस्था को बदलकर एक देश एक चुनाव को स्वीकार करना फायदेमंद होगा। इससे राष्ट्रीय एकता को बल मिलने के साथ ही राजनीति की दिशा और दशा दोनों में सुधार होगा।