संदेशखाली में मध्ययुगीन बर्बरता का नंगा नाच

संदेशखाली में मध्ययुगीन बर्बरता का नंगा नाच
संदेशखाली में मध्ययुगीन बर्बरता का नंगा नाच

 

हालांकि ऐसे मामलों में राजनीति नहीं होना चाहिए किंतु जब आरोपी राजनीतिक व्यक्ति हो और उसकी पार्टी बजाय दंडित करने के उसे संरक्षण दे तब राजनीतिक विवाद उत्पन्न होना स्वाभाविक है। प.बंगाल के 24 परगना जिले का संदेशखाली नामक स्थान बीते कुछ दिनों से चर्चा का कारण बना हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय तक में उसकी सुनवाई हो रही है। राष्ट्रीय स्तर पर अकेली भाजपा इस प्रकरण पर मुखर है इसलिए ममता सरकार उसे राजनीतिक वैमनस्य कहकर हवा में उड़ा रही है। वैसे कांग्रेस की राज्य इकाई भी संदेशखाली में महिलाओं पर हुए अमानुषिक अत्याचारों को लेकर मैदान में है । 5 जनवरी को संदेशखाली में ईडी की टीम तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख के यहां छापा मारने पहुंची थी। लेकिन उसके गुर्गे ईडी के लोगों के साथ मारपीट करते हुए उन्हें तब तक रोके रहे जब तक शाहजहां फरार नहीं हो गया। तदुपरांत वहां की महिलाएं खुलकर सामने आईं और उन्होंने शेख के बारे में जो कुछ बताना शुरू किया उसके बाद ममता सरकार के राज में हो रहे महिला उत्पीड़न की दर्दनाक स्थिति सामने आई। जो कुछ भी उनके द्वारा बताया गया , वह 21 वीं सदी में अकल्पनीय है। शाहजहां शेख और उसके गुर्गे महिलाओं को अपनी निजी संपत्ति मानकर उठा ले जाते रहे और तृणमूल कार्यालय में रखकर उनका यौन शोषण कर छोड़ देते थे । विवाहित महिला के पति को भी ये कहा जाता कि उसकी पत्नी पर पहला अधिकार शेख का है। किसी भी सुंदर महिला को जबरन उठाकर ले जाना और उसका यौन शोषण करना संदेशखाली में आम बात थी। जब महिलाओं से पूछा गया कि वे इस अत्याचार के विरुद्ध अब तक खामोश क्यों रहीं तो उनका उत्तर था कि शाहजहां जब ईडी के डर से फरार हुआ तब जाकर उनमें साहस आया। वह लोगों की जमीनों पर जबरन कब्जा करने और उनकी मजदूरी छीनकर आतंकित करने का काम करता रहा किंतु तृणमूल कांग्रेस से जुड़ा होने की वजह से उसका हौसला बुलंद था। ईडी की छापेमारी के बाद संदेशखाली महिला सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण बन गया है। लेकिन महिला होने के बावजूद ममता बैनर्जी अभी तक अपनी पार्टी के कुख्यात नेता पर लग रहे आरोपों पर ध्यान देने के बजाय ये शिगूफा छोड़ रही हैं कि संदेशखाली रास्वसंघ का प्रभावक्षेत्र है। महिलाओं पर उनके साथ हुए बलात्कार को साबित करने का दबाव भी बनाया जा रहा है। दिखावे के लिए कुछ छुटभैये किस्म के तृणमूल नेताओं को पुलिस ने जरूर पकड़ा है किंतु जो लोग संदेशखाली के हालात का जायजा लेने जा रहे हैं उनको भी रोकने की करवाई पुलिस और प्रशासन द्वारा किए जाने से साफ है कि ममता सरकार को महिलाओं के मान – सम्मान से अधिक अपनी पार्टी के नेताओं की चिंता है। जो जानकारी आई उसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि संदेशखाली में मध्ययुगीन गुलाम प्रथा जिंदा है। भारतीय फिल्मों में पुराने जमींदारों की क्रूरता के जो दृश्य दिखाए जाते हैं वे भी इस कांड के सामने हल्के लगते हैं। वस्तुस्थिति ये है कि वामपंथी सरकार के राज में जो गुंडे आतंक का पर्याय थे वे सभी सत्ता परिवर्तित होते ही तृणमूल कांग्रेस में आ गए। परिणामस्वरूप प.बंगाल की स्थिति आसमान से टपके खजूर पर अटके वाली होकर रह गई। पहले जो लूटपाट वामपंथी पार्टी का कैडर करता था , वही अब तृणमूल कार्यकर्ता बन चुके असामाजिक तत्व धड़ल्ले से करते हैं। चूंकि पुलिस उनके क्रियाकलापों पर रोक नहीं लगाती लिहाजा जनता भी भयग्रस्त है। संदेशखाली की घटना पहली नहीं है। बीते कुछ सालों में यह राज्य अराजकता के शिकंजे में फंस गया है। चूंकि कांग्रेस और वामपंथी पूरे तौर पर हाशिए पर आ चुके हैं इसलिए भाजपा ही प.बंगाल में विकल्प के रूप में उभर रही है। संदेशखाली की लड़ाई में भी वही पीड़ित महिलाओं के साथ खड़ी हुई है। हालांकि लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ममता सरकार के विरुद्ध आवाज उठाया करते हैं किंतु जिस इंडिया गठबंधन में तृणमूल भी शामिल है उसकी ओर से संदेशखाली में हुए अत्याचार के विरुद्ध कुछ न कहा जाना चौंकाता है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से भी ममता बैनर्जी की सरकार का वैसा विरोध नहीं हुआ जैसा अपेक्षित था । सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में क्या करता है इस पर सबकी नजर है क्योंकि उसके निर्णय को राजनीति से परे माना जायेगा। लेकिन ममता बैनर्जी ने इस कांड पर अब तक जिस प्रकार का गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया वह शर्मनाक है। जब किसी स्थान की दर्जनों महिलाएं उन पर हुए अमानुषिक अत्याचार की जानकारी सार्वजनिक रूप से दे रही हों तब तो मुख्यमंत्री को खुद उनसे मिलकर अपराधियों को सजा दिलवाने की पहल करनी चाहिए थी । लेकिन इसके विपरीत वे इसे राजनीतिक मोड़ देकर अपनी पार्टी के साथ जुड़े समाज विरोधी तत्वों को बचाने में जुटी हुई हैं। बेहतर तो ये होता कि कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन में शामिल अन्य दलों का संयुक्त प्रतिधिमंडल संदेशखाली में पीड़ित महिलाओं की बात सुनकर ममता बैनर्जी को कठघरे में खड़ा करता किंतु वोटों की राजनीति के कारण महिलाओं के अपमान पर भी अधिकतर पार्टियां मौन साधे बैठी हैं। ऐसे में अब सर्वोच्च न्यायालय से ही उम्मीद है न्याय की। चूंकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं इसलिए देखना ये होगा कि इतना गंभीर मुद्दा कहीं राजनीतिक आरोप – प्रत्यारोप में दबकर न रह जाए।