जब तक नेता लोग आर.टी.ओ से मुफ्त बसें लेंगे ऐसे हादसे होते रहेंगे

जब तक नेता लोग आर.टी.ओ से  मुफ्त बसें लेंगे  ऐसे हादसे होते रहेंगे
जब तक नेता लोग आर.टी.ओ से  मुफ्त बसें लेंगे  ऐसे हादसे होते रहेंगे

संपादकीय – रवीन्द्र वाजपेयी

किसी बड़ी दुर्घटना या भ्रष्टाचार के मामले में आम तौर पर निचले स्तर के सरकारी अमले पर गाज गिराकर बड़े ओहदेदारों को बचा लिया जाता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में छोटी मछलियों को फंसाकर मगरमच्छों को छोड़ देना कहते हैं। हाल ही में म.प्र के गुना में हुई बस दुर्घटना में 13 लोगों के जलकर मर जाने की दर्दनाक घटना के बाद डा.मोहन यादव की सरकार ने परिवहन विभाग के स्थानीय अधिकारी और कर्मचारियों के साथ ही जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को हटाने का निर्णय भी कर डाला । लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा है परिवहन आयुक्त को हटाए जाने की। प्राप्त जानकारी के अनुसार दुर्घटनाग्रस्त बस का न तो फिटनेस प्रमाणपत्र था और न ही परमिट। उसका मालिक स्थानीय भाजपा नेता का रिश्तेदार बताया जा रहा है। इससे संदेह होता है कि उसके अवैध कारनामे की स्थानीय पुलिस , प्रशासन और परिवहन विभाग अनदेखी करता रहा। वैसे भी परिवहन को मलाईदार विभागों की श्रेणी में सबसे ऊपर माना जाता है , जहां भ्रष्टाचार चिल्ला – चिल्लाकर अपनी उपस्थिति का एहसास करवाता है। ड्राइविंग लाइसेंस जैसा साधारण काम हो या ट्रकों और बसों के परमिट जैसे बड़े मामले , परिवहन विभाग के किसी भी कार्यालय में बिना दलालों के काम करवाना आसमान से तारे तोड़कर लाने से भी कठिन है। सरकार के सैकड़ों प्रयासों के बावजूद आर. टी.ओ नामक इस व्यवस्था को दलालों से मुक्त करवाने में सफलता नहीं मिली। बहुत सारा काम ऑन लाइन होने के बाद भी बिना बिचौलियों के इस महकमे में पत्ता भी नहीं खड़कता। ऐसा नहीं है कि सरकार में बैठे हुक्मरान इस विभाग के काले कारनामों से अपरिचित हों । लेकिन सत्ताधारी पार्टी की रैलियों और जलसों में भीड़ को ढोकर लाने के लिए परिवहन अधिकारी के जरिए मुफ्त में बसें और ट्रकों की व्यवस्था करवाए जाने के एवज में इस विभाग को भ्रष्टाचार की खुली छूट दे दी जाती है। अन्यथा कोई कारण नहीं है कि जमाने भर के प्रशासनिक सुधारों के बाद भी परिवहन विभाग की चाल , चरित्र और चेहरे में रत्ती भर का परिवर्तन नहीं हुआ। गुना में हुई दुर्घटना निश्चित रूप से समूची व्यवस्था के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है। सत्ता संभालने के कुछ दिनों के भीतर ही मुख्यमंत्री डा.यादव के सामने ये मुसीबत आकर खड़ी हो गई। हालांकि ये घटना न होती तब भी प्रशासनिक शल्य क्रिया के अंतर्गत परिवहन आयुक्त सहित अन्य अधिकारी भी आने वाले दिनों में इधर से उधर किए जाते । लेकिन 13 लोगों की दुखद मृत्यु जिन हालातों में हुई उसके कारण सामने आने के बाद भी यदि मुख्यमंत्री शांत बैठे रहते तो उन पर चौतरफा हमले होते। इसीलिए उन्होंने बिना देर किए बड़े पैमाने पर निलंबन और स्थानांतरण कर डाले। जल्द ही नया परिवहन आयुक्त नियुक्त हो जाएगा। कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सहित बाकी जगहों पर दूसरे चेहरे नजर आएंगे। बस मालिक के साथ ही जिम्मेदार शासकीय अमले पर कार्रवाई का कर्मकांड होगा। मृतकों और घायलों के लिए निर्धारित मुआवजा सरकार बांट देगी , इलाज भी करवा दिया जाएगा । लेकिन आर.टी.ओ नामक कुख्यात व्यवस्था में सुधार का कोई ठोस उपाय किए बिना इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति असंभव है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि राजमार्गों पर वाहनों की जांच करने वाले परिवहन विभाग के दस्ते अवैध वसूली में ही लिप्त रहते हैं। कई स्थानों पर तो परिवहन विभाग के लोगों द्वारा अपने निजी लोगों को आर. टी.ओ दस्ते के तौर पर खड़ा कर काली कमाई की जाती है। ओवर लोडिंग के अलावा बिना वाहन बीमा , परमिट और ड्राइविंग लाइसेंस के वाहन चालन आम बात है। व्यवसायिक वाहनों की जांच यदि सही तरीके से हो तो आधे से ज्यादा चलने लायक नहीं निकलेंगे। आजकल कम उम्र के बच्चों द्वारा दोपहिया तो क्या चार पहिया वाहन चलाए जाने का चलन बढ़ गया है । ऐसे वाहन चालक आए दिन दुर्घटना का कारण बनते हैं। उच्चस्तरीय राजमार्गों के विकास की वजह से सड़क यातायात काफी बढ़ा है । उसी के साथ दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं जिनमें प्रतिवर्ष लाखों लोगों की जान चली जाती है। इन सबसे बचा जा सकता है ,बशर्ते परिवहन विभाग अपने दायित्व का सही तरीके से निर्वहन करे । लेकिन ये तभी संभव है जब सरकार में बैठे महानुभाव इस महकमे को दुधारू गाय समझना बंद करें । जब तक आर.टी.ओ से मुफ्त बसों की मांग नेता बिरादरी करती रहेगी तब तक न परिवहन विभाग का भ्रष्टाचार रुकेगा और न अवैध रूप से चल रहे वाहनों से होने वाली जानलेवा दुर्घटनाएं।