किसान आंदोलन से जुड़े हर सवाल के जवाब

किसान आंदोलन से जुड़े हर सवाल के जवाब
किसान आंदोलन से जुड़े हर सवाल के जवाब

किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आज दूसरा दिन है. किसान यूनियनों ने सोमवार (12 फ़रवरी 2024) को केंद्रीय मंत्रियों के साथ बेनतीजा रही दो दौर की बातचीत के बाद दिल्ली कूच करने का आह्वान किया था.

न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए क़ानून बनाने और स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफ़ारिशों को लागू करने की मांग को लेकर ये किसान मंगलवार दोपहर पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर पहुंचे थे.

हरियाणा की सीमा में दाखिल होने पर आमादा किसानों को रोकने के लिए शंभू बॉर्डर पर कड़ी व्यवस्था की गई. कंटीले तार लगाए गए, बैरिकेडिंग की गई और बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है.

इसके अलावा सिंघु, टीकरी, गाजीपुर और गौतमबुद्ध नगर की सीमाओं पर बड़ी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं.

इनमें से कुछ सीमाओं पर सीमेंट और लोहे की बैरिकेडिंग भी की गई है. इसके अलावा किसानों को रोकने के लिए कंटीले तार और कंटेनर भी रखे गए हैं.

जब किसानों ने हरियाणा की सीमा में दाखिल होने की जबरन कोशिश की तो उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए.

हरियाणा के सात ज़िलों में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं और पंचकुला तथा चंडीगढ़ में धारा 144 लागू कर दी गई है.

बुधवार को किसानों का विरोध प्रदर्शन पहले दिन के मुक़ाबले थोड़ा शांत दिखा. हालांकि पहले दिन की तरह ही दूसरे दिन भी आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया लेकिन किसानों ने बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश नहीं की.

किसानों के दो बड़े संगठनों, संयुक्त किसान मोर्चा (ग़ैर राजनैतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा ने अपनी मांगों को लेकर ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने 16 फ़रवरी को एक दिन का ग्रामीण भारत बंद करने का आह्वान किया है.

दो साल पहले दिल्ली के बॉर्डर पर धरने पर बैठे किसानों का आंदोलन इतना मुखर था कि नरेंद्र मोदी सरकार को कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) क़ानून -2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 को रद्द करना पड़ा था.

किसानों को डर था कि सरकार इन क़ानूनों के ज़रिए कुछ चुनिंदा फ़सलों पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का नियम ख़त्म कर सकती है और खेती-किसानी के कॉरपोरेटाइज़ेशन (निगमीकरण) को बढ़ावा दे सकती है. इसके बाद उन्हें बड़ी एग्री-कमोडिटी कंपनियों का मोहताज होना पड़ेगा.