न्याय यात्रा विपक्षी गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो रही

न्याय यात्रा विपक्षी गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो रही
न्याय यात्रा विपक्षी गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो रही

 

 

भाजपा विरोधी तमाम यू ट्यूब पत्रकार इस बात से चिंतित हैं कि जिस विपक्षी गठबंधन को 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का विकल्प माना जा रहा था वह बिखराव का शिकार हो रहा है। इसके लिए वे राहुल गांधी को कसूरवार ठहराते हुए आरोप लगा रहे हैं कि घटक दलों के साथ संवाद शून्यता के कारण चुनाव की रणनीति और सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय करने का काम लंबित पड़ा हुआ है। राहुल ने जबसे न्याय यात्रा प्रारंभ की तभी से इंडी की गतिविधियां रुकी हुई हैं। इसीलिए क्षेत्रीय दल स्वतंत्र निर्णय ले रहे हैं। प .बंगाल में ममता बैनर्जी ने इसकी शुरुआत की और उसी क्रम में उ.प्र में सपा नेता अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को 11 सीटें देने का फैसला कर डाला। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार कांग्रेस के प्रति उदासीन हो रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब और हरियाणा में उसको उपकृत करने से मना कर दिया। वहीं दिल्ली , गुजरात और गोवा में कड़ी शर्तें रख दी हैं। नीतीश कुमार द्वारा भाजपा के साथ चले जाने से बिहार में तेजस्वी यादव सीटों के बड़े हिस्से पर दावा ठोक रहे हैं। यही स्थिति तमिलनाडु और केरल की भी है। दरअसल गठबंधन अस्तित्व में तो आ गया और उसकी कुछ बैठकें भी हुईं किंतु मैदानी स्तर पर आज तक उसकी उपस्थिति दर्ज नहीं हो सकीं। 5 अक्टूबर को भोपाल की जिस रैली में एकता का प्रदर्शन होना था उसे कांग्रेस नेता कमलनाथ ने बिना किसी से सलाह किए ही रद्द करने का फैसला कर डाला। उसके बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उलझ जाने से अन्य कोई कार्यक्रम नहीं रखा जा सका। दरअसल कांग्रेस सोच रही थी कि उन चुनावों में उसका सितारा बुलंद रहेगा और तब वह सीटों के बंटवारे में अपनी इच्छा थोप सकेगी किंतु उत्तर भारत के तीन राज्यों में वह बुरी तरह पराजित हो गई। उसके बाद हालांकि गठबंधन की बैठक हुई किंतु प्रधानमंत्री के चेहरे और सीटों के बंटवारे पर कोई नीति नहीं बन सकी। होना तो ये चाहिए था कि गठबंधन की संयुक्त रैलियां देश भर में आयोजित कर उन मतदाताओं को आकर्षित किया जाता जो भाजपा विरोधी मानसिकता से प्रेरित और प्रभावित हैं। लेकिन कांग्रेस ने इससे अलग हटकर श्री गांधी की न्याय यात्रा शुरू करने को प्राथमिकता दी। यदि यात्रा गठबंधन के बैनर तले होती तो तमाम विपक्षी दल अपनी सहभागिता देकर इसे प्रभावशाली बनाते किंतु जिन राज्यों से वह गुजर रही है वहां असर रखने वाले क्षेत्रीय दलों को यात्रा में आमंत्रित करने में भी देर की गई जिससे वे कटे रहे। ममता बैनर्जी ने तो अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर करते हुए यहां तक भविष्यवाणी कर दी कि कांग्रेस 40 लोकसभा सीट भी बमुश्किल जीत सकेगी। नीतीश कुमार के किनारा करने के बाद ही कांग्रेस ने अखिलेश यादव को यात्रा में शिरकत करने हेतु आमंत्रित किया । वह भी तब जब वे कांग्रेस को 11 सीटें देने का इकतरफा ऐलान कर चुके थे। कुल मिलाकर इंडी समर्थक विश्लेषक इस बात को लेकर निराश हैं कि वह केवल बैठकों और बयानों तक सीमित है जबकि अभी तक तो उसे जबरदस्त मोर्चा खोल देना चाहिए था। इसका एक कारण ये भी है कि गठबंधन के हिस्सेदार दलों में साम्यवादियों को छोड़कर बाकी सब किसी नेता या परिवार के हित के लिए राजनीति करते हैं जिनके निजी स्वार्थ गठबंधन के सामूहिक हितों पर भारी पड़ रहे हैं। नीतीश कुमार चूंकि सबको जोड़कर रखने वाले नेता थे इसलिए उनके अलग हो जाने के बाद गठबंधन में थोड़ी ही सही किंतु जो कसावट थी वह भी ढीली पड़ने लगी। यही कारण है कि विभिन्न राज्यों से कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों से नेताओं और जनप्रतिनिधियों की भाजपा के साथ जुड़ने की खबरें आने लगी हैं। उद्धव ठाकरे के हालिया नर्म बयान के अलावा उ.प्र में कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम द्वारा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने आयोजन में आमंत्रित कर भविष्य के संकेत दे दिए गए। वैसे भी वे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करने के निर्णय के कारण कांग्रेस की खुलकर आलोचना कर रहे हैं। विपक्षी गठबंधन के कमजोर पड़ने का संकेत पश्चिमी उ.प्र के जाट नेता और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की टेढ़ी चाल से भी मिल रहा है जो भाजपा के साथ गठजोड़ की प्रक्रिया में हैं। इस सबके कारण न तो गठबंधन को लेकर जनमानस में उत्सुकता और आकर्षण है और न ही घटक दलों में सामंजस्य बन पा रहा है। इसके विपरीत भाजपा ने अपनी चुनावी मशीनरी को पूरी तरह मुस्तैद कर दिया है। तीन राज्यों में मिली जीत के कारण उसका मनोबल भी ऊंचा है। प्रधानमंत्री खुद समय निकालकर देश के विभिन्न हिस्सों में जा रहे हैं । यदि यही स्थिति रही तो गठबंधन की एकता और उस पर आधारित सफलता की उम्मीद हवा – हवाई होकर रह जायेगी। प्रधानमंत्री द्वारा संसद में भाजपा को 370 और राजग को 400 से ज्यादा सीटें मिलने का जो दावा किया गया उसे भले ही अतिरंजित माना जाए किंतु विपक्षी गठबंधन में तो कांग्रेस द्वारा पिछले प्रदर्शन को दोहराए जाने को लेकर ही विश्वास का अभाव है ।