उत्तराखंड में नैनीताल जिले के अंतर्गत आने वाला हल्द्वानी शहर बीते दो दिनों से दंगे की आग में झुलस रहा है। कुमाऊं अंचल की तराई में बसे इस नगर में एक अवैध मजार को तोड़ने गए प्रशासनिक अमले पर नाराज मुस्लिम समाज की भीड़ ने हमला कर दिया। उसके बाद निकटवर्ती पुलिस थाने को जलाने और उसमें रखे शस्त्र लूटने की कोशिश भी की गई। पूरे शहर में पथराव और आगजनी की वारदातें भी कैमरों में कैद हो चुकी हैं। छतों से पत्थर बरसाने का सिलसिला भी चला। सैकड़ों पुलिस वाले घायल हो गए हैं। आधा दर्जन मौतों की भी खबर है। बरेली में तौकीर रजा नामक मौलवी द्वारा दिए भड़काऊ भाषण के बाद वहां भी तनाव व्याप्त है। उल्लेखनीय बात ये है कि उक्त मजार को अवैध निर्माण मानकर तोड़ने का आदेश न्यायालय द्वारा दिया गया था। बावजूद उसके मुस्लिम समाज के सैकड़ों लोगों द्वारा प्रशासनिक दस्ते पर हमला किया जाना ये स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है कि धर्म की आड़ में मुस्लिम धर्मगुरु कानून का पालन करने के स्थान पर व्यवस्था के विरुद्ध बगावत भड़काते हैं। तौकीर रजा ने जिस अंदाज में जान लेने की धमकी दी वह शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने पत्रकारों के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बारे में जिस शब्दावली का उपयोग किया वह धर्मांधता के साथ ही उनके दुस्साहस का प्रमाण है। जिस शैली में उन्होंने मुसलमानों को भड़काया वह उनको जेल भेजे जाने के लिए पर्याप्त है। दूसरी तरफ हल्द्वानी में जो कुछ हुआ उसके बाद उत्तराखंड के इस बेहद शांत इलाके के जनसंख्या संतुलन में आए बदलाव को लेकर चर्चा प्रारंभ हो गई है। इस तराई क्षेत्र में बीते कुछ सालों के भीतर ही मुस्लिम आबादी बेतहाशा बढ़ी। उसमें भी रोहिंग्या मुस्लिमों की खासी संख्या बताई जा रही है। जिस अंदाज में अतिक्रमण हटाने गए शासकीय अमले पर हमले के बाद थाने को लूटने और जलाने की कोशिश हुई वह क्षणिक आवेश न होकर पूर्व नियोजित लगता है । अदालती आदेश के बाद अवैध रूप से बनाई गई मजार को तोड़ने की जानकारी लगते ही जिस तरह मुसलमानों की भीड़ एकत्र होकर हिंसात्मक हुई उसके पीछे तौकीर रजा जैसे लोगों का दिमाग ही लगता है। गौरतलब है वे बीते कुछ दिनों से ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर मुस्लिम समुदाय को लामबंद करने में जुटे हुए थे। ज्ञानवापी के अलावा आजकल मथुरा की ईदगाह का मसला भी खबरों में है। अयोध्या में राम मंदिर के प्राण – प्रतिष्ठा समारोह की अभूतपूर्व सफलता के बाद मुस्लिम समाज के अनेक कट्टरपंथी नेता और धर्मगुरु आए दिन ऐसे बयान दे रहे हैं जिनसे सामाजिक सद्भाव नष्ट होने का अंदेशा है । दरअसल इन लोगों को ये भय सता रहा है कि पुरातत्व सर्वेक्षण में जिस तरह के प्रमाण मिल रहे हैं उनके आधार पर वाराणसी की ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह भी उनसे छिनना तय है। अयोध्या विवाद का हल तो सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से शांति के साथ हो गया । लेकिन ज्ञानवापी और ईदगाह में हिन्दू मंदिर होने की संभावना बढ़ते जाने से मुस्लिम धर्मगुरु और अल्पसंख्यक वोट बैंक के ठेकेदारों की रातों की नींद उड़ी हुई है। इसीलिए आए दिन जहर बुझे बयान देकर उत्तेजना फैलाई जा रही है। हल्द्वानी की घटना के पीछे कट्टरपंथी मुस्लिमों की खीझ भी है जिसका कारण राज्य विधानसभा में समान नागरिकता विधेयक पारित होना है। प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटन केंद्र नैनीताल की तराई में स्थित हल्द्वानी की शांति व्यवस्था को भंग करने के पीछे जिन तत्वों का हाथ है उन पर तो कड़ी कार्रवाई होगी ही किंतु इस इलाके में मुस्लिम आबादी में बेतहाशा वृद्धि के पीछे देश विरोधी ताकतों की भूमिका की जांच जरूरी है। विशेष रूप से रोहिंग्या मुस्लिमों की बसाहट के अलावा धड़ाधड़ खुलते मदरसे चिंता का विषय है। मैदानी इलाकों को छोड़कर पर्वतीय क्षेत्रों में मुसलमानों की नई – नई बस्तियां चौंकाने वाली हैं। जिस तरह से समूची घटना को अंजाम दिया गया वह साधारण उपद्रव न होकर किसी बड़े षडयंत्र को अमली जामा पहनाने जैसा कृत्य है । जिसकी सूक्ष्म जांच करवाने के बाद दोषियों को कड़ी सजा तो दी ही जाए ,किंतु लगे हाथ हल्द्वानी और उसके आसपास कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं मुस्लिम बस्तियों की भी जांच कर पता लगाया जाए कि उसके पीछे है कौन? वरना ये लोग समूचे उत्तराखंड को अशांत कर देंगे।