संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
तीन सप्ताह होने जा रहे हैं किंतु हमास और इजराइल के बीच चल रहा युद्ध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। उल्टे उसका दायरा लेबनान और सीरिया तक बढ़ता जा रहा है। 7 अक्टूबर को गाजा पट्टी पर शासन कर रहे हमास नामक इस्लामिक उग्रवादी गुट ने इजराइल पर हजारों रॉकेट छोड़कर जैसे बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। पलक झपकते सैकड़ों नागरिक मारे गए। हमास के लड़ाकों ने इजराइल की जमीनी सीमा में घुसकर भी तांडव मचाया। इसके अलावा पैरा ग्लाइडर्स के जरिए भी हमला किया गया जिसमें सैकड़ों जानें चली गईं। बड़ी संख्या में लोगों को हमास ने बंधक बना लिया जिनके साथ किए गए अमानवीय व्यवहार के वीडियो अल्लाह हु अकबर के नारों के साथ प्रसारित भी किए गए। हमले के बाद बंधकों के साथ की गई बर्बरता से इजराइल बुरी तरह भड़कते हुए हमास को जड़ से नष्ट करने पर आमादा हो गया। और फिर उसने जिस तरह का हमलावर रुख अपनाया उससे समूचे गाजा क्षेत्र में विध्वंस का माहौल बन गया। अपने लोगों की मौत का बदला इजराइल ने गाजा में रहने वाले हजारों नागरिकों और हमास के लोगों को मारकर लिया । जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे बताए जाते हैं। हजारों इमारतें मलबे में तब्दील हो चुकी हैं। बिजली , पानी , दवाइयां जैसी जरूरी चीजों का अकाल हो चुका है। उल्लेखनीय है गाजा में इन सबकी आपूर्ति इजराइल से ही की जाती थी जो 7 अक्टूबर के हमले के बाद रोक दी गई। इसके कारण वहां इंसानी जिंदगी पूरी तरह से संकट में है। अनेक देशों ने राहत के लिए हाथ बढ़ाए हैं । संरासंघ भी आगे आया है। भारत ने इजराइल पर हुए हमले के फौरन बाद उसके साथ खड़े रहने का ऐलान किया था किंतु गाजा के लोगों की सहायता के लिए उसने भी सामग्री भेजी। यहां तक कि इजराइल के स्थायी संरक्षक अमेरिका ने भी बड़ी रकम गाजा वासियों के लिए स्वीकृत की। अरब देशों के अलावा दुनिया भर से इजराइल पर ये दबाव पड़ रहा है कि वह युद्ध रोके। अमेरिका ने तो उसको गाजा पर कब्जा करने के गंभीर परिणामों की चेतावनी भी दी है। संरासंघ के महासचिव भी इजराइल पर लगातार दबाव डाल रहे हैं किंतु प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने विश्व संगठन को ही खरी – खोटी सुना दी और हमास के खात्मे तक हमला जारी रखने का ऐलान कर दिया। गत दिवस सीरिया के सैन्य ठिकानों पर भी इजराइल ने जबर्दस्त हमला किया। लेबनान भी उसकी मार झेल चुका है। ऐसे में ये आशंका बढ़ रही है कि कहीं ये युद्ध इजराइल विरुद्ध अरब जगत न हो जाए। लेकिन इस सबके बीच ध्यान रखने वाली बात ये है कि संरासंघ अपना प्रभाव खोता जा रहा है। रूस – यूक्रेन युद्ध शुरू हुए डेढ़ साल से ज्यादा का समय बीत गया जिसमें 5 लाख से ज्यादा लोग हताहत हो चुके हैं। यूक्रेन के ज्यादातर हिस्से रूसी हमलों में बरबाद कर दिए गए। यदि अमेरिका और उसके समर्थक देश उसकी मदद न करते तो अब तक रूस उस पर कब्जा कर लेता । उस युद्ध से शीतयुद्ध वाले माहौल का पुनर्जन्म हो गया। लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी संरासंघ उस युद्ध को रूकवाने के लिए कुछ न कर सका । इजराइल ने तो हमास के हमले का बदला लेने के लिए गाजा पर कहर बरसाया किंतु रूस आज तक यूक्रेन पर हमले का औचित्य साबित नहीं कर सका। चूंकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में रूस और चीन की अमेरिका , फ्रांस और ब्रिटेन से नहीं पटती अतः वे एक दूसरे के विरुद्ध वीटो का इस्तेमाल करते हुए जरूरी मसलों पर फैसला नहीं होने देते। इसीलिए यूक्रेन युद्ध के बाद अब इजराइल और हमास की लड़ाई में भी संरासंघ की लाचारी खुलकर सामने आ रही है। इस सबसे अन्य देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। कोरोना संकट से उबरने के बाद उक्त दोनों लड़ाइयों ने कच्चे तेल और खाद्यान्न का संकट बढ़ा दिया है। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि विश्व संगठन पूरी तरह असरहीन साबित होने लगा है। न तो उसके कहने से रूस ने यूक्रेन पर हमले रोके और न ही इजराइल उसकी सुन रहा है। दूसरी तरफ जो अरब देश इजराइल के हमले को अमानवीय ठहरा रहे हैं वे भी हमास की बर्बरता के विरुद्ध मुंह खोलने तैयार नहीं हैं। मुस्लिम देशों द्वारा इसी तरह कश्मीर में पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवाद की निंदा करने से परहेज किया जाता है। इसका कारण भी संरासंघ का पंगु हो जाना है जिसके लिए सुरक्षा परिषद की लगाम चंद बड़े देशों के हाथ में होना है जो बजाय समाधान देने के समस्या को बढ़ावा देते हैं। फिलिस्तीनियों की जमीन का मसला निश्चित तौर पर काफी पुराना है किंतु वर्तमान संकट के लिए केवल और केवल हमास ही जिम्मेदार है और इसीलिए इजराइल को गाजा की तबाही का बहाना मिल गया। ये जंग कहां जाकर रुकेगी कहना कठिन है । दरअसल नेतन्याहू का राजनीतिक भविष्य भी इसके परिणाम पर निर्भर है । लेकिन सबसे बड़ा डर इस बात का है कि दुनिया में जंग को रोकने का कोई प्रभावी उपाय नहीं बचा। ऐसे में अगर चीन भी वन चाइना नीति के तहत ताइवान पर हमला कर दे तब उसे रोकने वाला कौन होगा क्योंकि रूस की तरह उसके पास भी सुरक्षा परिषद वाला वीटो जो है।