दूसरों को फंसाने फेंके जाल में खुद फंस गए केजरीवाल

दूसरों को फंसाने फेंके जाल में खुद फंस गए केजरीवाल
दूसरों को फंसाने फेंके जाल में खुद फंस गए केजरीवाल

 

 

 

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी मंत्रीमंडलीय साथी आतिशी को नोटिस सौंपने के लिए उनके निवास पर घंटों इंतजार करना पड़ा। पहले प्रयास में दोनों नेता घर पर नहीं मिले। और जब मिले तो नोटिस देने आए अधिकारियों को खरी – खोटी सुनाते हुए केंद्र सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा दी। इन दोनों ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि भाजपा द्वारा 25 – 25 करोड़ रु. में आम आदमी

पार्टी के विधायकों को खरीदने का प्रयास किया जा रहा है। इसके विरुद्ध भाजपा ने रिपोर्ट दर्ज करवाकर श्री केजरीवाल और आतिशी से ये बताने कहा कि विधायकों को खरीदने का प्रस्ताव देने वाला कौन था ? अब जबकि अपराध शाखा द्वारा दोनों को बाकायदा नोटिस भेजकर विधायकों को 25 करोड़ रु . का प्रस्ताव देने वाले का नाम बताने कहा तब संवैधानिक पद पर विराजमान नेताओं को अपने आरोप के पक्ष में प्रमाण देना चाहिए। लेकिन ऐसा करने के बजाय वे केंद्र सरकार और भाजपा पर भड़ास निकालने में जुटे हैं। उनको आज नोटिस का जवाब देना है। इसके पहले शराब घोटाले में श्री केजरीवाल ईडी द्वारा अनेक समन दिए जाने के बावजूद पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं हुए और आए दिन अपनी गिरफ्तारी का शिगूफा छोड़ा करते हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी ईडी के कई समन रद्दी की टोकरी में फेंक दिए किंतु आंख – मिचौली करते रहने के बाद अंततः वे उसके सामने पेश हुए और गिरफ्तार कर लिए गए। हो सकता है यदि वे पहले बुलावे पर ही जाकर अपना बयान देते तब ये नौबत नहीं आती। केजरीवाल जी भी यदि ईडी के अनेक बुलावे ठुकराने के बाद गिरफ्तार किए जाएं तो फिर उनके पास सहानुभूति अर्जित करने का अवसर भी नहीं रहेगा। ऐसे मामलों में एक बात और विचारणीय है कि मुख्यमंत्री और मंत्री पद पर विराजमान व्यक्ति संविधान की रक्षा और उसके पालन की शपथ लेने के उपरांत ही कुर्सी पर बैठता है। ऐसे में किसी वैधानिक जांच एजेंसी द्वारा पूछताछ हेतु बुलाए जाने पर उनका उपस्थित न होना एक दो मर्तबा तो व्यस्तता या अन्य किसी कारण से समझ में आता है , लेकिन छह – आठ समन के बाद भी अवहेलना करना इस बात का प्रमाण है कि कानून के प्रति उनके मन में तनिक भी सम्मान नहीं हैं। इन नेताओं को इस बात का जवाब देना चाहिए कि इनके मातहत कार्यरत कोई अधिकारी अथवा कर्मचारी इनके द्वारा बुलाए जाने पर उपस्थित न हो तो क्या उसे ये बख्श देंगे ? अरविंद और आतिशी ने जब खुले आम अपने विधायकों को खरीदे जाने का आरोप भाजपा पर लगाया तो फिर संबंधित व्यक्ति की पहचान भी उनको स्पष्ट करना चाहिए थी। और फिर 25 करोड़ की राशि साधारण नहीं है अतः उनके द्वारा लगाया आरोप बेहद गंभीर है। जब भाजपा ने आरोपों की पुष्टि करवाने के लिए विधिवत कार्रवाई की तब ये उनका कानूनी दायित्व है कि वे उसको सत्य सिद्ध करें या उसका जो भी दंड हो उसको भुगतें। स्मरणीय है सत्ता में आने से पहले आम आदमी पार्टी की ओर से श्री केजरीवाल ने देश के सबसे भ्रष्ट नेताओं की सूची जारी की थी। उस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और स्व.अरुण जेटली सहित अनेक लोगों ने मानहानि का प्रकरण दर्ज करवाया । ऐसा होते ही केजरीवाल जी की सारी हेकड़ी जाती रही और फिर वे उन सभी के सामने लिखित माफीनामा लेकर यह याचना करते दिखाई दिए कि प्रकरण वापिस ले लें । जिन लोगों से उन्होंने माफी मांगी उनमें विक्रम मजीठिया , श्री गडकरी , स्व.जेटली और स्व. शीला दीक्षित जैसे अनेक दिग्गज रहे। सबसे रोचक बात ये है कि कपिल सिब्बल से भी अरविंद ने माफी मांगी जो आजकल ऐसे नेताओं के बचाव में खड़े होते हैं। उनके माफीनामे पर कांग्रेस नेता अजय माकन ने कटाक्ष भी किया था कि केजरीवाल को अपना नाम बदलकर माफीवाल कर लेना चाहिए । आम आदमी पार्टी के संयोजक आजकल उन तमाम नेताओं के साथ गठबंधन में शामिल हो रहे हैं जिन्हें वे भ्रष्टाचार का सिरमौर बताते रहे। हालांकि उनकी समूची राजनीति विरोधभासों और पलायनवाद पर टिकी रही किंतु इस प्रकरण में एक बार फिर उनके समक्ष मुसीबत आ खड़ी हुई है। भाजपा पर उनकी पार्टी के विधायकों को 25 – 25 करोड़ में खरीदने का प्रस्ताव देने का आरोप उनके गले में पड़ गया है। यदि उनके पास इसका कोई प्रमाण होता तो निश्चित रूप से वे अपराध शाखा का नोटिस लेने में विलंब नहीं करते और अब तक उन कथित लोगों के नाम सार्वजनिक कर चुके होते जिन्होंने विधायकों को खरीदने की पेशकश की थी। ऐसा लगता दूसरों को फंसाने के लिए फेंके गए जाल में केजरीवाल एंड कंपनी खुद फंसती जा रही है।