कांग्रेस के लिए भाजपा से ज्यादा खतरनाक है आम आदमी पार्टी

कांग्रेस के लिए भाजपा से ज्यादा खतरनाक है आम आदमी पार्टी
कांग्रेस के लिए भाजपा से ज्यादा खतरनाक है आम आदमी पार्टी

उ.प्र में सपा के साथ सीट बंटवारे के बाद कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली , हरियाणा और गुजरात में लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने का निर्णय कर लिया। दिल्ली में कांग्रेस 3 और आप 4 सीटों पर लड़ेगी। जबकि हरियाणा में कांग्रेस ने 1 और गुजरात में 2 सीटें उसके लिए छोड़ी हैं। कांग्रेस पंजाब में भी तालमेल चाहती थी किन्तु आम आदमी पार्टी वहां एक भी सीट छोड़ने राजी नहीं हुई। इससे लगता है गरज आम आदमी पार्टी की नहीं बल्कि कांग्रेस की है । दिल्ली , गुजरात और हरियाणा में 2919 में कांग्रेस- भाजपा के बीच मुकाबला था। वहीं पंजाब में कांग्रेस ने 8 सीटें जीतने के साथ ही 40 प्रतिशत मत हासिल किए। लेकिन आम आदमी पार्टी द्वारा एक भी सीट न दिया जाना दर्शाता है कि उसकी नजर में कांग्रेस वहां अस्तित्वहीन हो चुकी है। ऐसे में कांग्रेस को दिल्ली में ज्यादा की मांग करनी थी। लेकिन लगता है वह पिछली गलतियां दोहराने पर अमादा है। 2014 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ा दल थी किंतु कांग्रेस ने 8 विधायकों का समर्थन देकर अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनवा दिया। कुछ महीनों बाद कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लिए जाने पर सरकार गिर गई। दोबारा हुए चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया।और भाजपा भी लुढ़ककर 3 पर आ गई। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली की सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही और आम आदमी पार्टी की जमानतें जप्त हो गईं । फिर 2020 के विधानसभा और उसके बाद दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की। वहीं कांग्रेस घुटनों के बल चलने की स्थिति में ही है। हालांकि दोनों भाजपा की विरोधी हैं और नरेंद्र मोदी को किसी भी कीमत पर हटाना चाहती हैं। लेकिन कांग्रेस भूल रही है कि दिल्ली और पंजाब में उसकी दुर्गति के लिए भाजपा से ज्यादा आम आदमी पार्टी जिम्मेदार है। पंजाब में भगवंत सिंह मान की सरकार अनेक कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई कर रही है। वहीं दिल्ली में कांग्रेस ने शराब घोटाले पर केजरीवाल सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए और मनीष सिसौदिया की गिरफ्तारी का स्वागत किया था। दोनों राज्यों के कांग्रेस नेता आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का खुलकर विरोध करते रहे । फिर भी दिल्ली की 4 तथा हरियाणा की 1 सीट उसके लिए छोड़ दी गईं। कांग्रेस के लिए आगामी लोकसभा चुनाव जीवन – मरण का प्रश्न है। इसीलिए वह क्षेत्रीय दलों के समक्ष झुकने तैयार हो रही है। लेकिन ये चुनाव आम आदमी पार्टी का भविष्य भी तय करेगा जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बनने की कोशिश में है जिसका सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को होने की आशंका है। पूरे देश पर नजर डालें तो कांग्रेस आज भी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है। भाजपा भले ही केंद्र के साथ अनेक राज्यों में सत्तासीन हो किंतु अनेक राज्यों में उसकी उपस्थिति नाममात्र की है । ऐसे में आम आदमी पार्टी के विस्तार का सीधा नुकसान कांग्रेस को ही होने वाला है। इसलिए सीटों का बंटवारा करने से पहले कांग्रेस ये बात सोचनी चाहिए थी कि शराब घोटाले के सिलसिले में श्री सिसौदिया और संजय सिंह जेल में न होते तब क्या श्री केजरीवाल उसे दिल्ली की एक भी सीट देते। पंजाब में एकला चलो की नीति अपनाकर उन्होंने अपनी नीयत स्पष्ट कर दी। दरअसल कांग्रेस को दिल्ली की सभी सीटों के लिए इस आधार पर अड़ना था कि 2019 में उसे 22 फीसदी से ज्यादा मत मिले थे जबकि आम आदमी पार्टी को 1 प्रतिशत से भी कम। ऐसा करने से उसे पंजाब की कुछ सीटें मिल सकती थीं । लेकिन पार्टी का आत्मबल कमजोर हो चुका है। उसके उच्च नेतृत्व को ये बात समझनी चाहिए कि आम आदमी पार्टी जहां भी मजबूत होगी वहां कांग्रेस का खात्मा होना तय है। 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा रोककर उन्हें गिरफ्तार किए जाने के बाद भाजपा ने वी.पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था । उ.प्र में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार भी उस कारण खतरे में आ गई । स्व. राजीव गांधी ने समर्थन देकर उन दोनों सरकारों को तो गिरने से बचा लिया लेकिन उसके बाद उ.प्र और बिहार में पार्टी का तम्बू जो उखड़ा तो आज तक दोबारा नहीं लग सका। आम आदमी पार्टी से भी सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही हुआ है। ऐसे में उसे पंजाब में भी सीटें मांगनी थीं और यदि श्री केजरीवाल राजी न होते तो दिल्ली में उनको उपकृत करने से इंकार करना था। कांग्रेस को ये बात अच्छी तरह से जान लेना चाहिए कि आम आदमी पार्टी उसके लिए भाजपा से बड़ा खतरा है क्योंकि भाजपा तो सामने से वार करती है जबकि आम आदमी पार्टी उसकी पीठ में छुरा भोंकने में जुटी हुई है।