इसके पहले भारत में किसी तिथि की इतनी बेसब्री से प्रतीक्षा 15 अगस्त 1947 की ही की गई होगी , जिस दिन देश को सैकड़ों सालों की गुलामी के बाद आजादी मिलने वाली थी। तीन चौथाई सदी के बाद देश एक बार फिर प्रतीक्षारत है। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को मात्र 2 दिन शेष हैं। सर्वत्र अभूतपूर्व उत्साह , उमंग और हर्ष का चरमोत्कर्ष है। यह वातावरण प्रभु श्री राम के लंका विजय के उपरांत अयोध्या लौटने के पूर्व वहां के निवासियों की मनःस्थिति का जीवंत आभास करवा रहा है। लेकिन यह हर्षोल्लास अयोध्या या भारत की सीमाओं को तोड़कर विश्वव्यापी है। अनेक देशों में बसे हिन्दू धर्मावलंबी तो राम मंदिर में प्राण – प्रतिष्ठा को लेकर उत्साहित हैं ही ,अनेक ऐसे देश भी इसमें सहभागिता दे रहे हैं जो अन्य किसी धर्म का पालन करते हैं । यह इस बात का प्रमाण है कि श्री राम की स्वीकार्यता पूरे विश्व में है। उस दृष्टि से 22 जनवरी 2024 की तिथि विश्व इतिहास में सदा के लिए अमर रहेगी। राम मंदिर के निर्माण में किस – किस का योगदान रहा ये इस समय सोचने का कोई अर्थ नहीं है। 1949 में बाबरी ढांचे में मूर्तियों के प्रकटीकरण से लेकर अब तक जो कुछ भी घटा वह तो नई पीढ़ी को ज्ञात हो जाता है किंतु बीते सैकड़ों सालों में हजारों ज्ञात -अज्ञात लोगों ने राम जन्मभूमि पर मुस्लिम शासकों के संरक्षण में कब्जा कर जो ढांचा खड़ा किया , उसको हटाने के लिए अपना बलिदान दिया । उस दृष्टि से आने वाली 22 जनवरी उन राम भक्तों के सपनों के साकार होने का दिन होगा । भारत जैसे हिन्दू बहुल देश में प्रभु श्री राम की जन्मस्थली को मुक्त करवाने में जिस तरह के अवरोध उत्पन्न किए गए वे अकल्पनीय हैं । यदि सोमनाथ के साथ ही राम जन्मभूमि का मसला भी तत्कालीन नेहरू सरकार सुलझा लेती तब शायद इसे लेकर राजनीति करने का किसी को अवसर नहीं मिलता । लेकिन दुर्भाग्य है कि देश की बहुसंख्यक आबादी के आराध्य श्री राम की जन्मभूमि को मुगलकालीन अवैध कब्जे से मुक्त करवाने का कार्य अदालत के फैसले से संभव हो सका। और वह प्रक्रिया भी बरसों नहीं दशकों तक चली। यह भी कम दुखद नहीं है कि उस फैसले के बाद भी मंदिर निर्माण में अड़ंगे लगाने वाले विघ्नसंतोषी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए। यहां तक कि प्राण – प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक आयोजन की पूरी तैयारियां हो जाने के बाद भी उसे विफल करवाने में एक वर्ग जी जान से जुटा है। कुछ धर्माचार्य भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। हिन्दू समाज की इसी चारित्रिक कमजोरी के कारण देश ने लगातार विदेशी आक्रमण सहने के बाद सैकड़ों सालों की गुलामी सही। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा है। उनका वह वक्तव्य सही मायने में एक संदेश था जिसमें राजनीति नहीं थी। सही बात तो ये है कि राम मंदिर का विरोध करने वालों ने ही इसे वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बना दिया। कांग्रेस और अन्य कुछ दल मुस्लिम मतों के कारण इस मुद्दे पर हिंदुओं के न्यायोचित दावों की अनदेखी करते रहे। प्रतिक्रिया स्वरूप इस मामले ने दूसरा मोड़ ले लिया । सबसे बड़ी बात ये हुई कि बाबरी ढांचे की तरफदारी मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही साथ धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार बने हिन्दू नेतागण भी करते रहे । इससे हिन्दू जनमानस में रोष उत्पन्न हुआ । निश्चित रूप से भाजपा ने इसका लाभ उठाया और वह मुख्यधारा की पार्टी बनने के बाद देश की सत्ता पर काबिज हो गई। राम मंदिर का श्रेय उसे न मिल पाए इसके लिए उसके राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों ने हर संभव प्रयास किए जिन्हें षडयंत्र भी कहना गलत नहीं होगा। लेकिन उनका विरोध जितना तीव्र हुआ भाजपा को उतना ज्यादा लाभ मिलता गया। प्राण – प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक आयोजन को रोकने और धर्म विरोधी साबित करने के लिए जो कुछ भी किया जा रहा है वह जितना हास्यास्पद है , उतना ही दुखद भी। लेकिन ये परम संतोष का विषय है कि देश के जनमानस ने आधुनिक मंथराओं को पूरी तरह तिरस्कृत कर दिया है। यहां तक कि कतिपय धर्माचार्यों की आपत्तियों का संज्ञान भी नहीं लिया जा रहा। यह बात भी बेहद उत्साहवर्धक है कि देश भर में फैले लाखों सनातनी धर्मगुरु , पंडित , पुरोहित और कथावाचक पूरे प्राण – प्रण से 22 जनवरी के आयोजन को भव्य और अविस्मरणीय बनाने में जुटे हुए हैं । देश का प्रत्येक कोना इन दिनों राम मय हो गया है। इतना बड़ा चमत्कार दैवीय कृपा से ही हो सकता है। ऐसे में जो लोग प्राण – प्रतिष्ठा के आयोजन को विफल करना चाह रहे हैं वे भारतीय जनमानस को पढ़ने में बुरी तरह विफल हैं। उनके इसी आचरण की वजह से वे जनता की निगाह से उतरते चले गए और बची खुची कसर आगामी लोकसभा चुनाव में पूरी हो जाएगी।