सीएए ( नागरिकता संशोधन अधिनियम) की अधिसूचना जारी होते ही राजनीतिक जगत में बवाल मच गया। हालांकि यह अधिनियम संसद द्वारा 11 दिसंबर 2019 पारित किये जाने के बाद अगले ही दिन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर उपरांत कानून की शक्ल ले चुका था किंतु केंद्र सरकार कतिपय कारणों से उसे लागू करने से बचती रही। शायद शुरुआत में हुए विरोध के ठंडा पड़ने का इंतजार करना इसके पीछे की रणनीति रही होगी। ये भी कहा जा सकता है कि उसके बाद कुछ राज्यों में भाजपा को मिली पराजय ने सरकार के बढ़ते कदम रोक दिये हों। एक कारण असम सहित कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में इस कानून के प्रति लोगों की नाराजगी को भी माना जा सकता है जहाँ भाजपा का अच्छा खासा प्रभाव रहा है। लेकिन गत वर्ष उत्तर भारत के कुछ राज्यों में भाजपा को मिली जोरदार जीत के बाद से केंद्र सरकार का भय दूर हुआ। सनातन को लेकर लोगों में आई जागरूकता और फिर राम मंदिर में प्राण – प्रतिष्ठा के बाद से देश भर में हिंदुत्व का अभूतपूर्व वातावरण निर्मित होने से भी सरकार को महसूस हुआ कि सीएए को प्रभावशील करने का ये सबसे सही समय है। इसमें पाकिस्तान, अफगनिस्तान और बांग्लादेश से आये गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने के लिए सम्बन्धित कानून में कुछ रियायत दी गई। इसलिये मुसलमानों के बीच ये दुष्प्रचार किया जाने लगा कि यह उनको भारत से निकाल बाहर करने बनाया गया है। चूंकि मुस्लिमों के मन में मोदी सरकार को लेकर काफी ज़हर भर दिया गया है इसलिए वे भी बहकावे में आ गए। सही बात तो ये है कि इस कानून के बारे में जितनी भी भ्रांतियां मुसलमानों के मन में हैं उनके पीछे कट्टरपंथी मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही उन विपक्षी दलों का भी हाथ है जो मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए उन्हें मुख्य धारा से अलग – थलग रखने में लगे रहते हैं। जहाँ तक बात मुसलमानों को सीएए से बाहर रखे जाने की है तो उक्त तीनों चूंकि इस्लामिक देश हैं इसलिए वहाँ से मुसलमानों का पलायन आपवादस्वरूप ही होता है। ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी भी गई है। विख्यात पाकिस्तानी गायक अदनान सामी इसका उदाहरण हैं जिन्होंने भारत की नागरिकता हेतु आवेदन किया और वह उन्हें प्रदान भी की गई। दूसरी तरफ जो हिन्दू उक्त देशों में रह रहे हैं , धार्मिक आधार पर उत्पीड़न होने से उनके पास और किसी देश की नागरिकता लेने का अवसर ही नहीं है। उनके धर्मस्थल तोड़े जा रहे हैं, लड़कियों को जबरन मुस्लिम युवकों से निकाह हेतु बाध्य किया जाता है और धर्म परिवर्तन हेतु भी दबाव बनाया जाता है। यही कारण है कि वहाँ उनकी जनसंख्या लगातार घटती जा रही है। ये वर्ग अपनी अस्मिता के अलावा जान बचाने भारत तो आ गया किंतु बरसों से शरणार्थियों के लिए बने शिविरों में बदहाली की ज़िंदगी जी रहा है। इनमें सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई भी हैं जिनकी स्थिति उन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की है। इसके साथ ही उनकी जड़ें कहीं न कहीं अविभाजित भारत से जुड़ी रहीं। सीएए को लेकर ममता बैनर्जी जैसी नेता ये अफवाह फैला रही हैं कि इसके लागू होते ही बांग्ला देश के जो घुसपैठिये अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं उनको वापस भेजा जाएगा। एक भ्रम ये भी फैलाया जा रहा है कि सीएए के अंतर्गत जिन लोगों को नागरिकता मिलेगी उनको उन क्षेत्रों में बसाया जाएगा जहाँ भाजपा कमजोर है। प. बंगाल, तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्री इसीलिए सीएए के विरोध में आसमान सिर पर उठाने आमादा हैं। आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद कीजरीवाल भी मैदान में कूद पड़े। कोई इस कानून को विभाजनकारी बता रहा है तो किसी को यह भाजपा का चुनावी दांव लग रहा है जिसके जरिये वह धार्मिक आधार पर मतदाताओं को गोलबंद करना चाह रही है। हालांकि सीएए के विरोधी भी जानते हैं कि उसकी अधिसूचना जारी होने के बाद भी हजारों लोगों को नागरिकता चुटकी बजाकर नहीं दी जा सकेगी क्योंकि प्रक्रिया बेहद जटिल है। और फिर केंद्र सरकार का पूरा अमला लोकसभा चुनाव की व्यवस्थाओं में व्यस्त है। ये देखते हुए विपक्ष एक बार फिर वही गलती दोहरा बैठा जो राम मन्दिर में प्राण – प्रतिष्ठा के बहिष्कार के रूप में की थी। वह सीएए का विरोध न करता तब भी भाजपा विरोधी दलों को मुस्लिम मत थोक में मिलना निश्चित था। लेकिन उनके जबरदस्त विरोध की प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू मतदाता और भी अधिक संख्या में भाजपा के साथ आ सकते हैं। हो सकता है भाजपा के रणनीतिकार भी यही चाहते हों। जो भी हो लेकिन सीएए का विरोध करने वालों ने हिन्दू जनमानस को भाजपा के और नजदीक करने का काम किया है। वरना यह एक साधारण कानून ही है।
Related Posts
देश के प्रत्येक नागरिक को मिले आयुष्मान भारत योजना का लाभ
Read moreचीन के लड़खड़ाने का लाभ हमें मिल सकता है बशर्ते ….. Read moreचंद्रयान : विफलता के…
इंडिया : चार बैठकों के बाद भी न नेता तय न रणनीति
संपादकीय – रवीन्द्र वाजपेयी जैसी उम्मीद थी वैसा ही हुआ। इंडिया गठबंधन की बहुप्रतीक्षित बैठक चाय-पानी के बाद एक सामूहिक…
मंडल तो पूरी तरह लागू हुआ नहीं और ये नया बखेड़ा खड़ा हो गया
संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी इन दिनों सोशल मीडिया पर दो वीडियो प्रसारित हो रहे हैं। एक में स्व. इंदिरा गांधी को…