इंडी नामक विपक्षी गठबंधन में चूंकि वैचारिक साम्यता नहीं है इसीलिए इसकी एकजुटता प्रारंभ से ही संदिग्ध रही है। उससे जुड़े दल मोदी विरोध पर तो एकमत हैं किंतु आपसी विश्वास नजर नहीं आने से एक कदम आगे , दो कदम पीछे वाली स्थिति बनी हुई है। एक तरफ तो भाजपा अपनी व्यूह रचना मजबूत करती जा रही है वहीं विपक्षी दलों में सीटों के बंटवारे की गुत्थी उलझती जा रही है। विचारणीय बात ये है कि जिस कांग्रेस को इंडी का आधार माना जाता है वह अन्य दलों के साथ गठजोड़ को दिशा देने के बजाय राहुल गांधी की न्याय यात्रा में लिप्त है। परिणामस्वरूप सीटों के बंटवारे का फार्मूला तैयार नहीं हो पा रहा। गठबंधन में शामिल उ. प्र , बिहार , प.बंगाल , महाराष्ट्र और तमिलनाडु के क्षेत्रीय दलों के मन में कांग्रेस की जीत को लेकर दुविधा है। इसीलिए वे उसको ज्यादा सीटें देने के लिए राजी नहीं हैं। गत दिवस प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने ऐलान किया कि तृणमूल कांग्रेस अकेले मैदान में उतरेगी। वे कांग्रेस और वामपंथियों को 2 सीटें देने पर अड़ी हुई थीं जिसे लेकर गतिरोध कायम है। ममता ने एकला चलो रे का नारा तब दिया जब न्याय यात्रा उनके राज्य में प्रवेश कर रही थी। उधर भगवंत सिंह मान ने पंजाब की सभी 13 सीटों पर आम आदमी पार्टी द्वारा अकेले लड़ने का फैसला सुनाते हुए गठबंधन के भविष्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया। इसका संकेत ये भी है कि वह दिल्ली में भी कांग्रेस के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ेगी। गठबंधन की मुसीबतें बिहार में भी बढ़ती जा रही हैं। नीतीश कुमार ने दो टूक कह दिया कि जनता दल (यू) 2019 में जीती गईं 17 सीटों पर लड़ेगा। शेष 23 सीटों में से लालू यादव राजद के अलावा कांग्रेस और वामपंथियों के लिए सीटें छोड़ें , ऐसा संकेत भी उन्होंने दे दिया। इसे लेकर दोनों के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है। नीतीश के एनडीए में आने की अटकलें भी जिस तरह आए दिन उड़ा करती हैं उससे भी लालू खेमा परेशान है। गत दिवस स्व.कर्पूरी ठाकुर के जन्म शताब्दी कार्यक्रम में उन्होंने राजनीति में परिवारवाद पर जिस तरह तीखा हमला किया उसका निशाना लालू ही थे। नीतीश ने बेहिचक ये कहा कि कुछ नेता अपने बेटों को आगे बढ़ाने में ही जुटे रहते हैं। हालांकि प्रसंग कर्पूरी बाबू द्वारा परिवारवाद से परहेज करने का था किंतु जिस अंदाज में नीतीश ने तंज कसा वह लालू के पुत्र प्रेम पर ही निशाना था। महाराष्ट्र में कांग्रेस हावी होने की कोशिश तो कर रही है लेकिन शरद पवार और उद्धव ठाकरे उसके तेवर सहने तैयार नहीं हैं । ऐसे में विपक्षी एकता का गुब्बारा फूलने के पहले ही फूटता नजर आने लगा है। रोचक बात ये है कि कांग्रेस को ठेंगा दिखाने के बावजूद तृणमूल और आम आदमी पार्टी गठबंधन में बने रहने की बात भी कर रही है। ऐसे में इस गठबंधन की एकता को लेकर जो संदेह शुरू से ही व्यक्त किया जा रहा था वह दिन ब दिन पुख्ता हो रहा है। बिहार में नीतीश और लालू के बीच खींचतान बनी हुई है। इसके अलावा अपना भविष्य खतरे में देखते हुए जनता दल (यू) के अनेक नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शरण लेते देखे जा सकते हैं। प.बंगाल में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी लगभग रोजाना ही ममता पर भाजपा से गुपचुप गठजोड़ करने का आरोप लगाया करते हैं। इंडी के जो प्रमुख चेहरे हैं उनका कांग्रेस से तालमेल न बैठना गठबंधन को मजबूत होने से रोक रहा है। कांग्रेस की समस्या ये है कि मल्लिकार्जुन खरगे भले ही सीटों के बंटवारे पर अन्य दलों के नेताओं के साथ बातचीत करने अधिकृत किए गए किंतु अंतिम निर्णय चूंकि राहुल के जिम्मे है इसलिए मामला अटका रहता है। सोनिया गांधी अपने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उतनी सक्रिय नहीं हैं । वहीं तीन राज्यों में बुरी तरह हारने के बाद प्रियंका वाड्रा का दबदबा भी घटा है। कांग्रेस की योजना चूंकि श्री गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की है इसलिए वह हर फैसले में उन्हें आगे रखने की नीति पर चल रही है। लेकिन इससे उसे लाभ कम , नुकसान ज्यादा हो रहा है। ममता बैनर्जी और भगवंत सिंह मान ने गत दिवस जो झटके दिए उनसे गठबंधन की कसावट कमजोर पड़ी है। ऐसा लगता है इंडी के बाकी घटक ये जान गए हैं कि कांग्रेस नीति और नेतृत्व की दृष्टि से खस्ता हाल में है। ऐसे में वे उसके साथ डूबने की बजाय खुद का बचाव करने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। ये भी लगता है कि राहुल की न्याय यात्रा से भी गठबंधन के सदस्य नाराज हैं । उन्हें लगता है कि इस समय गठबंधन का सामूहिक शक्ति प्रदर्शन ज्यादा असरकारक साबित होता। लेकिन कांग्रेस ने बिना सहयोगियों को विश्वास में लिए ही राहुल की यात्रा शुरू कर दी। 5 अक्टूबर की भोपाल रैली कमलनाथ द्वारा रद्द करवा देने का निर्णय भी गठबंधन के सदस्यों को नागवार गुजरा था।