संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
हर माह की आखिरी तारीख के बाद जारी होने वाले जीएसटी के आंकड़े देश की आर्थिक स्थिति का एहसास कराते हैं। उस दृष्टि से सितंबर माह में तकरीबन 1.63 लाख करोड़ की वसूली उत्साहवर्धक है। विगत माह से ये 2 फीसदी ज्यादा है तो गत वर्ष इसी अवधि में हुए संग्रह से 10 प्रतिशत अधिक । अनेक माहों से जीएसटी की आवक 1.50 लाख करोड़ से ऊपर होना ये दर्शाता है कि कारोबारी जगत में स्थितियां बेहतर हो रही हैं। पितृ पक्ष समाप्त होते ही त्यौहारी मौसम और विवाहों का सिलसिला शुरू हो जावेगा। खरीफ की फसल भी आने लगेगी। भारत में तीज – त्यौहार , विवाह समारोह और फसल , अर्थव्यवस्था की गतिशीलता को गहराई तक प्रभावित करते हैं। इसलिए माना जा सकता है कि आगामी कुछ महीने जीएसटी संग्रह इसी स्तर पर बना रहेगा। दीपावली के कारण वह और ऊपर चला जाए तो अचरज नहीं होगा। कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव जल्द होने जा रहे हैं । उनमें होने वाला खर्च भी बाजार की हलचल बढ़ा देता है। जुलाई , अगस्त और सितंबर माह पूरे देश में मानसून के रहे। इस दौरान आर्थिक गतिविधियां मंद पड़ जाने की परिपाटी रही है लेकिन ये देखकर संतोष होता है कि उस दौरान भी जीएसटी की वसूली वृद्धि की ओर रही । दूसरे शब्दों में इसे अर्थव्यवस्था में व्याप्त अनिश्चितता दूर होने का संकेत भी माना जा सकता है। यद्यपि इसके लिए महंगाई को भी बड़ा कारण माना जाता है किंतु देश में उत्पादन और खपत दोनों के आंकड़े जिस तरह बढ़ते जा रहे हैं उनके आधार पर ये कहना गलत नहीं है कि कोरोना काल वाला संकट का दौर गुजर चुका है। दुनिया के विकसित कहे जाने वाले देशों की तुलना में भारत की विकास दर यदि सबसे अधिक है तो इसे बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है । लेकिन इसके साथ ही ये सवाल भी जन्म लेता है कि जो जनता सरकारी खजाने को भरने में योगदान दे रही है उसको राहत पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें क्या कदम उठा रही हैं ? हाल ही में ये खबरें आई थीं कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें फिर उछल गई हैं जिसका कारण सऊदी अरब और रूस द्वारा उत्पादन घटाया जाना है। जबकि कुछ समय पहले तक ये सुनने में आ रहा था कि रुस से सस्ता तेल खरीदकर भारतीय तेल कंपनियों ने बीते एक साल में जबर्दस्त मुनाफा अर्जित किया और इसी वजह से पेट्रोल – डीजल सस्ता किया जा सकता है। उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री ने गत वर्ष दीपावली के अवसर पर इनके दाम घटाने का ऐलान किया था । जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां तो मतदाताओं को रिझाने के लिए जमकर रेवड़ियां बांटी जा रही हैं लेकिन बाकी की जनता उससे वंचित है। हालांकि केंद्र सरकार ने रसोई गैस का सिलेंडर 200 सस्ता कर दिया है किंतु राजस्थान में 500 और म.प्र में महिला लाभार्थियों को 450 रु.में सिलेंडर दिए जाने से बाकी राज्यों में भी वैसी ही मांग हो रही है। साथ ही ये सवाल भी उठने लगा है कि यदि कर्ज में डूबी सरकारें आधे दाम पर सिलेंडर देने की दरियादिली दिखा सकती हैं तो फिर लगे हाथ पेट्रोल – डीजल के मामले में भी थोड़ा हाथ खोला जाए। ये भी आश्चर्य की बात है कि सभी राजनीतिक दल एक दूसरे पर महंगाई बढ़ाने का आरोप लगाते नहीं थकते किंतु जब पेट्रोल – डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने की बात उठती है तब कोई उसके लिए राजी नहीं होता। वैसे तो हमारे देश में हर समय चुनाव का चक्र चला करता है लेकिन आगामी वर्ष लोकसभा चुनाव होने की वजह से देशव्यापी सरगर्मी बनी रहेगी। ऐसे में ये मुद्दा प्रासंगिक है कि यदि पेट्रोलियम वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में ले आया जाए तो विभिन्न राज्यों में उनकी कीमतों का अंतर खत्म होकर महंगाई में कमी आएगी जिससे आम जनता की क्रय शक्ति में वृद्धि का सकारात्मक परिणाम बढ़ती मांग के रूप में देखने मिलेगा। यद्यपि केंद्र और राज्यों की सरकारें इसके लिए कितनी तैयार होंगी ये कह पाना कठिन है लेकिन प्रधानमंत्री यदि इस बारे में पहल करें तो बात बन भी सकती है। वैसे भी जीएसटी का आदर्श रूप सभी वस्तुओं पर एक ही दर लागू किए जाने का होता है । उस दृष्टि से भारत में त्रिस्तरीय दरों से विसंगतियां पैदा होती हैं । दैनिक उपयोग की कुछ वस्तुओं और सेवाओं पर 18 फीसदी का कर कमर तोड़ने जैसा है। अब जबकि बीते छह महीनों से जीएसटी का आंकड़ा 1.50 लाख करोड़ से ऊपर बना हुआ है तब ये उम्मीद करना अनुचित नहीं है कि कर चुकाने वालों को भी आभार स्वरूप कुछ दिया जावे जो पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस को जीएसटी के अंतर्गत लाकर सस्ता करने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।