यूक्रेन संकट से दुनिया उबर पाती उसके पहले ही हमास ने नई मुसीबत पैदा कर दी

यूक्रेन संकट से दुनिया उबर पाती उसके पहले ही हमास ने नई मुसीबत पैदा कर दी
यूक्रेन संकट से दुनिया उबर पाती उसके पहले ही हमास ने नई मुसीबत पैदा कर दी

सामयिकी : रवीन्द्र वाजपेयी

इजरायल पर हमास द्वारा किया गया हमला पश्चिम एशिया में नए संकट का आरंभ माना जा सकता है। ऐसे समय जब सऊदी अरब इजरायल को मान्यता देने जा रहा था तभी फिलिस्तीनी इलाके से एक साथ 5000 राकेट दागे जाने से इजरायल के हवाई रक्षा कवच की अभेद्यता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। भारत के लिए ये इसलिए ध्यान देने योग्य है क्योंकि उसने इजरायल से ये तकनीक हासिल की है। इसके अलावा भी रक्षा उपकरण के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच काफी सौदे हुए हैं। हमास का हमला इस बात का संकेत है कि यूक्रेन संकट में फंसे विश्व को राहत की सांस लेने का अवसर जल्द मिलने की संभावना नजर नहीं आती। इसका कारण इजरायल के आक्रामक शैली है जिसमें वह दुश्मन के प्रति रत्ती भर भी उदारता बरतने में यकीन नहीं करता।

गत दिवस हमास द्वारा राकेटों से किए गए ताबड़तोड़ हमलों के बाद इजरायल को लंबे समय बाद बड़ा धक्का पहुंचा। उसके सैकड़ों लोग मारे जाने के साथ ही बड़ी संख्या में बंधक भी बना लिए गए जिनका उपयोग इजरायल में बंद अपने लोगों को छुड़ाने के लिए किए जाने की बात भी उसने कही है। हमलावरों ने इजरायली नागरिकों विशेष तौर पर महिलाओं के साथ जिस तरह का दुर्व्यवहार किया उसके बाद इजरायल का पलटवार स्वाभाविक था और प्रधानमंत्री नेतन्याहू द्वारा बिना देर लगाए युद्ध की घोषणा कर हमास को नतीजे भुगतने की चेतावनी दे डाली। इसी के साथ इजरायली वायुसेना भी हरकत में आई और गाजा पर हमले शुरू करते हुए सैकड़ों लोगों को मारने के साथ अनेक इमारतें ध्वस्त कर दीं।

फिलिस्तीन का यह संकट लाइलाज बन गया है। हालांकि अरब जगत के अनेक मुस्लिम देशों ने इजरायल के साथ राजनयिक और व्यापारिक रिश्ते कायम कर लिए हैं। सऊदी अरब के अलावा खाड़ी के कई मुस्लिम मुल्क पुरानी दुश्मनी भूलकर यहूदियों के इस देश से हाथ मिलाने आगे आए हैं। सैन्य शक्ति के साथ ही इजरायल ने विज्ञान और तकनीक के मामले में भी जबरदस्त तरक्की की है। इसमें कोई शक नहीं है कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का संरक्षण न होता तो उसके पड़ोसी मुस्लिम देश उसे कभी का नेस्तनाबूत कर चुके होते । लेकिन इसके बावजूद भी यहूदी कौम की तारीफ करननी होगी जिसने सदियों की खानाबदोशी के बाद भी अपनी भाषा , संस्कृति और प्रतिभा को अक्षुण्ण रखा।

1948 में अस्तित्व में आते ही उस पर पड़ोसी देशों ने आक्रमण कर दिया किंतु नवजात इजरायल ने जिस तरह मुंहतोड़ उत्तर दिया उससे उसकी मारक क्षमता और आत्मविश्वास प्रगट हो गया। तब से अभी तक वह अनेक युद्धों का सामना करते हुए विजेता बनकर खड़ा हुआ है। वैसे तो उसके सीमावर्ती इलाके हर समय युद्धभूमि का नजारा उत्पन्न करते हैं। दरअसल येरूशलम नामक जिस शहर के कारण इजरायल की अन्य मुस्लिम देशों से शत्रुता है वह इस्लाम , ईसाई और यहूदी तीनों के लिए अत्यंत पवित्र है। वर्तमान में वह इजरायल के आधिपत्य में है। दरअसल मुस्लिम देश शुरू से ही इजरायल के अस्तित्व को पचाने तैयार नहीं है। उनको लगता है पश्चिमी ताकतों ने दूसरे महायुद्ध से उत्पन्न हालातों का लाभ लेते हुए उनके सिर पर अपना पिट्ठू लाद दिया । इस बारे में ये बात भी गौरतलब है कि ईसाई समुदाय यहूदियों के प्रति अच्छी भावना नहीं रखता था। यूरोप के अनेक देशों में उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा। हिटलर द्वारा उनका नरसंहार तो इतिहास का काला अध्याय है । चूंकि अमेरिका में यहूदी आर्थिक दृष्टि से संपन्नता के कारण राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली हो चले थे , लिहाजा उसने भी इजरायल पर अपना हाथ रखकर उसे मजबूत बनाया ।

अब तक के इतिहास के मुताबिक हमास द्वारा किए गए ताजा हमले का नुकसान तो उसे उठाना ही पड़ेगा क्योंकि इजरायल अपने एक भी नागरिक की हत्या बर्दाश्त नहीं कर सकता। पश्चिमी देशों ने हमेशा की तरह उसको समर्थन दे दिया है और भारत ने भी तत्काल उसकी तरफदारी का ऐलान कर डाला।

लेकिन यह युद्ध लंबा चला तब भारत के लिए समस्या बढ़ जावेगी क्योंकि प.एशिया में होने वाली किसी भी गड़बड़ी का तात्कालिक असर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के रूप में देखने मिलता है। पिछले कुछ समय से सऊदी अरब और रूस ने उत्पादन घटाकर कीमतें बढ़ने के हालात उत्पन्न कर दिए हैं। यह युद्ध उसमें और वृद्धि का कारण बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। ऐसे में कच्चे तेल के बड़े आयातक के रूप में भारत को नुकसान होने की आशंका है। साथ ही इजरायल से प्राप्त होने वाले सैनिक साजो – सामान की आपूर्ति भी बाधित होने की आशंका बनी रहेगी।

इसके अलावा वैश्विक हालात और खराब हो सकते हैं क्योंकि यूक्रेन पर रूस के हमले से मची उथल – पुथल से ही दुनिया उबर नहीं पाई है। कोरोना की विभीषिका किसी तरह खत्म हो पाती उसके पहले ही रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। इसकी वजह से शीतयुद्ध के पुराने दिन लौट आए । इसका असर जी 20 के नई दिल्ली में संपन्न सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्रपति क्रमशः पुतिन और जिनपिंग के शामिल न होने के रूप में देखने मिला।

चूंकि रूस और चीन फिलिस्तीन के साथ हैं और प.एशिया के संकट में रूस अमेरिका विरोधी खेमे के साथ खुलकर खड़ा होता रहा इसलिये इस युद्ध के दूसरा यूक्रेन संकट बन जाने का खतरा है। भारत ने उसमें तो तटस्थता की नीति अपना ली लेकिन हमास के हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप इजरायल का समर्थन कर अपना रुख स्पष्ट कर दिया । उसका ये फैसला रूस को नागवार गुजर सकता है किंतु भारत ने जिस तरह यूक्रेन युद्ध में अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा उसी तरह से इजरायल को समर्थन देना भी जरूरी है।

ताजा रिपोर्ट के अनुसार लेबनान ने भी इजरायल पर हमला बोल दिया है। इससे लगता है हमास का आक्रमण किसी बड़ी लड़ाई की शुरुआत है। बड़ी बात नहीं मिस्र और सीरिया भी इसमें कूद पड़ें और वैसा हुआ तो 1967 में हुई जंग के हालात देखने मिल सकते हैं। ये भी सच है कि अचानक हुए इस हमले से इजरायल भौचक रह गया है। जिस बड़ी संख्या में उसके सैनिक और नागरिक मारे गए उसके कारण उसका बौखलाना बनता है और वह अपना दबदबा कायम रखने के लिए दुश्मनों से चौतरफा मुकाबला करने में भी सक्षम है। लेकिन इस युद्ध से प.एशिया एक बार फिर नये संकट में फंसने जा रहा है जिसका दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ ही कूटनीतिक संतुलन पर भी असर पड़ेगा।

क्या होगा इसका अंदाजा तत्काल लगाना कठिन है लेकिन हमास ने बर्र के छत्ते को छेड़ने का जो दुस्साहस किया उसका दुष्परिणाम उसे तो भोगना ही पड़ेगा । देखने वाली बात ये है कि मुस्लिम देशों का मुखिया कहलाने वाले सऊदी अरब का इस संकट पर क्या रुख रहता है जो इजरायल को मान्यता देने के रास्ते पर पर आगे बढ़ रहा है।