गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से बीजेपी के मुकेश दलाल चुनाव होने से पहले ही जीत गए हैं.
उनके ख़िलाफ़ कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द हो चुका था और बाकी निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिए थे. इसलिए उन्हें निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया.
मुकेश दलाल का इस तरह से निर्विरोध निर्वाचित होने का मामला पूरे देश के मीडिया में छाया हुआ है.
सूरत लोकसभा सीट के सात दशक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है.
कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या की है. जबकि बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थकों ने हलफनामा देकर कहा है कि पर्चे में उनके उम्मीदवार का नाम गलत है. ऐसे में उनका पर्चा रद्द हो गया. इसमें बीजेपी की क्या गलती है.
इस पूरे मामले में अब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े का मानना है कि उनकी पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवारों से अपने पर्चे वापस लेने का अनुरोध किया था.
सूरत में कुल 15 नामांकन पत्र भरे गए. इनमें कांग्रेस के नीलेश कुंभानी समेत 6 फॉर्म रद्द हो गए.
इस तरह बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल को छोड़कर आठ उम्मीदवारों के फॉर्म बचे थे. लेकिन इन आठ उम्मीदवारों ने भी अपने फॉर्म वापस ले लिए. लिहाज़ा मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया.
कांग्रेस का आरोप है कि पूरी घटना बीजेपी के इशारे पर हुई है, जबकि बीजेपी ने इससे इनकार किया है.
कांग्रेस नेता और नवसारी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नैशाद देसाई ने बीबीसी गुजराती से बातचीत में कहा, ”बीजेपी सूरत के मेरिडियन होटल में फॉर्म लेकर गई और सभी सातों निर्दलीय उम्मीदवारों से इन्हें वापस लेने के लिए कहा. बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार प्यारेलाल भारती उनके संपर्क से बाहर थे.”
“इसलिए भाजपा ने सत्ता का दुरुपयोग किया और क्राइम ब्रांच पुलिस को उनके पीछे लगा दिया. पुलिस ने उन्हें मध्य प्रदेश से बाहर कर दिया और फिर उनका फॉर्म भी वापस ले लिया गया.”
हालांकि बीजेपी ने सभी आरोपों से इनकार किया है. बीजेपी का कहना है कि मुकेश दलाल की जीत नियमों के मुताबिक हुई है और पार्टी पर जिस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं उनमें कोई सच्चाई नहीं है.
कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी, जिनका फॉर्म रद्द कर दिया गया था, गायब बताए जा रहे हैं. सूरत के सूत्रों का कहना है कि उनका कोई पता नहीं चल रहा है. उनके घर में ताला लगा हुआ है.
कांग्रेस नेताओं को भी नहीं पता कुंभानी कहां हैं? उधर, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कुंभानी के घर के बाहर प्रदर्शन किया और उनके घर के बाहर गद्दार का पोस्टर लगा दिया. पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया.
आख़िरकार 21 तारीख की सुबह नीलेश कुंभानी सुनवाई के लिए कलेक्टर कार्यालय आए जहां उनके साथ कुछ कांग्रेस नेता भी पहुंचे.
कुंभानी कुछ देर बाद ही वहां से चले गए जिसके बाद उनका कोई पता नहीं चल पाया है. कांग्रेस नेता भी कह रहे हैं कि उनसे संपर्क नहीं हो सका.
कांग्रेस नेता असलम सैकलवाला ने कहा, ”21 तारीख को दोपहर 12:30 बजे नीलेश कुंभानी से मेरी फोन पर बातचीत हुई. कुंभानी ने मुझसे कहा कि मुझ पर बहुत दबाव है और मैं इसमें शामिल नहीं हूं. कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं. इसके बाद से उनसे मेरी बात नहीं हुई.”
असलम सैकलवाला ने कहा, “पार्टी को कुंभानी के तीन समर्थकों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उनके पर्चे का समर्थन करने वाले कौन होंगे इसका फैसला कुंभानी ने खुद किया था. हालांकि पार्टी को उनके नाम पता चल गए.”
उन्होंने कुंभानी पर आरोप लगाते हुए कहा, “ऐसा लगता है कि सब कुछ पहले से तय था. ये एक साज़िश थी. कुंभानी जनता को अब अपना चेहरा नहीं दिखा पाएंगे.”
कांग्रेस का आरोप है कि पूरी घटना बीजेपी के इशारे पर हुई है, जबकि बीजेपी ने इससे इनकार किया है.
21 अप्रैल को कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द होने के बाद 22 अप्रैल को मुकेश दलाल को विजेता घोषित कर दिया गया. ये सब पूरे 24 घंटों के अंदर हो गया.