छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर के आकाशवाणी तिराहा के मुख्य मार्ग पर स्थित काली माता मंदिर की लोकप्रियता प्रदेशभर में है। अंग्रेजों के शासनकाल में कामाख्या से आए नागा साधुओं ने जंगल में महाकाली के स्वरूप को निरूपित किया। तीन दिन जंगल में रुके और महाकाली को प्रतिष्ठापित करके आगे की यात्रा पर निकल गए। मंदिर की बगल में स्थित बरगद पेड़ के नीचे उनकी धुनी लगी थी, जहां वर्तमान में भैरवनाथ की प्रतिमा है। 1992 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। क्षेत्रीयजनों की इस मंदिर को लेकर काफी गहरी आस्था है। जहां रोजाना सैकड़ों चमत्कार होते रहते है।
नवरात्र के दिनों मंदिर में विशेष पूजन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। जहां तड़की सुबह से देर रात तक पूजन का दौर जारी रहता है। वहीं मंदिर में प्रज्वलित हजारों कलश भक्तों की मन्नत और आस्था की कहानी खुद ब खुद बयान करते है।
इनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है की यहां तांत्रिक पूजा करने के लिए कोलकाता से तांत्रिक पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां काली की आत्मा कोलकाता में और शरीर रायपुर में विराजमान है। काली मां की मूर्ति का मुख उत्तर दिशा में है, जो तांत्रिक पूजा करने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है।