यह संसार है। इस संसार में अच्छे लोग भी रहते हैं, और खराब भी। न तो सारे लोग अच्छे होते हैं, और न सारे खराब। यदि आपके आसपास में अच्छे लोग अधिक रहते हों, और खराब लोग कम रहते हों, तब तो आप का जीवन सुखमय होगा। यदि आपके आसपास के लोग खराब अधिक हों, तथा अच्छे कम हों, तो आपका जीवन दुखमय होगा । इसलिए अपने आसपास के लोगों का परीक्षण करते रहें। अच्छे लोगों से संपर्क रखें, और बुरे लोगों से बचकर रहें। यदि किसी मोहल्ले सोसाइटी में खराब लोग अधिक रहते हों, और अच्छे कम हों, तो वहां से स्थान बदल लेना ही अच्छा है। और ऐसे स्थान पर जाकर रहना अधिक उत्तम है, जहां पर अच्छे लोगों की संख्या अधिक हो, तथा बुरे लोग कम हों। इसके अतिरिक्त, जो भी आपके आसपास बुरे लोग हैं, उनको भी अच्छा बनाने का प्रयत्न अवश्य करते रहें। यदि आप अपने आसपास के बुरे लोगों के सुधार का प्रयास नहीं करेंगे, तो उनमें बुराइयां बढ़ती जाएंगी। और कुछ समय पश्चात वे लोग आपको अधिक दुख देंगे। पहले स्वयं अच्छे बनें, उसके बाद दूसरों को अच्छा बनाने का प्रयास करें। यदि दूसरे लोग अच्छा बनने का प्रयत्न करते हैं, तो बहुत अच्छी बात है, उनको अच्छा बनाएं। यदि वे दुष्ट स्वभाव के व्यक्ति हों और अच्छा व्यक्ति बनना नहीं चाहते, तो उनके साथ झगड़ा न करें, उनसे दूर रहें। तथा अन्य अच्छे लोगों के साथ संबंध बना कर रहें। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है, कोई किसी को जबरदस्ती नहीं बदल सकता। जैसे दूसरे लोग आपको जबरदस्ती नहीं बदल सकते, ऐसे ही आप भी दूसरों को जबरदस्ती नहीं बदल सकते। यदि आपके आसपास के अच्छे लोग संख्या में भी अधिक हैं, और अच्छे-अच्छे गुणों वाले हैं, सहयोगी भावना वाले हैं, सहानुभूति रखते हैं, तो जब जब भी आपको उनके सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी, वे आपको सहयोग देंगे। इससे आपको ऐसा अनुभव होगा, कि संसार बहुत अच्छा है, और इसमें कुछ भी कार्य असंभव नहीं है। तब आप का चिंतन विचार ऐसा होगा, कि जब भी किसी सहयोग की आवश्यकता होती है, यहां के लोग हमारी सहायता करते हैं, और हमारे सब काम ठीक ठाक सम्पन्न हो जाते हैं। इसलिए अपना भविष्य सुखमय बनाने के लिए यह आवश्यक है, कि आप अच्छे लोगों से संपर्क रखें, और अपने आसपास के बुरे लोगों को भी अच्छा बनाने का, उनका सुधार करने का प्रयास करते रहें।
स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक,
निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़,
गुजरात ।