राज्य की आय नहीं बढ़ी तो मुफ्त उपहारों के लिए धन कहां से आएगा

राज्य की आय नहीं बढ़ी तो मुफ्त उपहारों के लिए धन कहां से आएगा
राज्य की आय नहीं बढ़ी तो मुफ्त उपहारों के लिए धन कहां से आएगा

संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी

म.प्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी करने में भले ही कांग्रेस पिछड़ गई किंतु मतदाताओं के समक्ष वायदे परोसने के लिए वचन पत्र जारी करने में उसने बाजी मार ली। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने पार्टी के ढेर सारे नेताओं की मौजूदगी में सरकार बनने पर समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुंचाने वाले कार्यक्रमों और योजनाओं का ब्यौरा पेश किया। इस वचन पत्र में किसानों , महिलाओं , विद्यार्थियों , खिलाड़ियों , श्रमिकों और पत्रकारों को दिल खोलकर उपकृत करने का वायदा किया गया है। इससे किसी को एतराज नहीं होगा क्योंकि कमोबेश भाजपा भी ऐसा ही कुछ घोषणापत्र लेकर आएगी। फर्क ये होगा कि वह कांग्रेस की तुलना में कुछ ज्यादा देने का वायदा कर सकती है। मसलन महिलाओं को कांग्रेस ने 1500 रु .हर माह देने की बात कही है जबकि शिवराज सरकार ने लाड़ली बहना योजना में पहले से ही 1250 रु. देना शुरू कर दिया और उसे 3 हजार रु. तक बढ़ाने का कह चुकी है। ऐसे ही अनेक मुद्दे हैं जिनमें कांग्रेस मौजूदा सरकार से ज्यादा देने का वायदा कर रही है। गेंहू और धान के अधिक खरीदी मूल्य सहित मुफ्त और सस्ती बिजली , सिंचाई और अन्य सुविधाओं के लिए मुक्त हस्त खर्च करने की बात वचन पत्र में शामिल है। कांग्रेस आजकल गारंटी शब्द का इस्तेमाल भी करने लगी है। हालांकि राहुल गांधी द्वारा 2018 में सरकार बनने के बाद 10 दिन में किसानों के कर्ज माफ करने की गारंटी जैसे तमाम वायदे अधूरे ही रह गए थे। दरअसल राजनीतिक दलों के मन में ये बात बैठ चुकी है कि जनता की याददाश्त बेहद कमजोर होती है। इसीलिए पांच साल पहले किए वायदों को पूरे न करने के अपराध को नए वायदों की चकाचौंध में धोने का प्रयास बीते 75 साल से चला आ रहा है। 1971 के चुनाव में इंदिरा जी ने गरीबी हटाओ के नारे पर दो तिहाई बहुमत हासिल कर लिया था । आज नौबत अति गरीब तक आ चुकी है लेकिन कोई कांग्रेस से उसके बारे में नहीं पूछता। अन्य पार्टियां भी वायदे पूरे करने में विफल रहने के बाद नए झुनझुने पकड़ाकर मतदाताओं को बहलाने का प्रपंच रचती हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने मुफ्त बिजली , मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी शालाओं के उन्नयन का वायदा पूरा कर एक उदाहरण पेश किया किंतु राष्ट्रीय राजधानी होने से वहां विकास संबंधी ज्यादातर कार्य केंद्र सरकार करवाती है जबकि अन्य राज्यों की स्थिति दिल्ली से सर्वथा भिन्न है। ऐसे में मुफ्त उपहारों के अलावा सामाजिक कल्याण के जितने भी कार्यक्रम और योजनाएं हैं उनकी जरूरत तो है किंतु कांग्रेस के घोषणापत्र में प्रदेश के औद्योगिक और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की बात या तो है नहीं या फिर किसी कोने में दबी हुई है। इसी तरह मुफ्त और सस्ती बिजली का वायदा तो आकर्षित करता है किंतु विद्युत उत्पादन बढ़ाने और विद्युत कंपनियों को घाटे से उबारने की कोई कार्ययोजना पेश नहीं की गई । कर्मचारियों को लुभाने के लिए पुरानी पेंशन योजना शुरू करने का वायदा भी कांग्रेस ने किया है । जबकि हिमाचल और कर्नाटक में उसकी सरकार को वेतन बांटने तक में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ये देखते हुए जरूरी हो गया है कि राजनीतिक दल विकास संबंधी अपनी कार्ययोजना भी वचनपत्र में पेश करें। नई नौकरियों के वायदे तो कर दिए जाते हैं लेकिन उसे कैसे अमल में लाया जाएगा इसकी कोई रूपरेखा नहीं बताई जाती। बेहतर हो घोषणापत्र को विकास केंद्रित करने की परिपाटी शुरू हो। मसलन सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने , सड़कों का निर्माण , औषधालय , विद्यालय – महाविद्यालय , जल आपूर्ति और जन सुविधा केंद्र जैसी बातों पर ज्यादा जोर दिया जाना जरूरी है। जब तक औद्योगिकीकरण के लिए अनुकूल वातावरण नहीं बनाया जाता तब तक रोजगार के अवसर पैदा करने की बात सपने देखने जैसा है। सरकारी नौकरियां तेजी से सिमट रही हैं , ऐसे में निजी क्षेत्र ही विकल्प है। सबसे बड़ी बात ये है कि राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के बारे में सभी राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणापत्र में शांत नजर आते हैं । ऐसे में जब प्रदेशों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है तब मुफ्त उपहारों के लिए धन कहां से आएगा इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। 500 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर देने वाले राजनीतिक दल पेट्रोल – डीजल को सस्ता करने हेतु उसे जीएसटी के अंतर्गत लाने का वायदा क्यों नहीं करते ये बड़ा सवाल है। म. प्र देश के उन राज्यों में है जहां पेट्रोलियम उत्पाद सबसे महंगे हैं। कांग्रेस यदि इनको सस्ता करने का वायदा करती तो उससे समाज का हर वर्ग आकर्षित होता। लेकिन राजनीतिक दलों का उद्देश्य प्रदेश के विकास के बजाय मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना रह गया है। और इसे देखते हुए कांग्रेस के घोषणापत्र में किसी नए पन का एहसास नहीं होता। सही बात तो ये है कि राजनीतिक दल इतने झूठे वायदे कर चुके हैं कि उनकी विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इसीलिए वे आजकल नगदी बांटकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास करने लगे हैं।