गत सप्ताह महिला दिवस पर रसोई गैस सिलेंडर के दाम 100 रुपये घटाकर केंद्र सरकार ने महिला मतदाताओं को खुश करने का दांव चला। हालांकि उसका कितना लाभ चुनाव में मिलेगा ये अभी कह पाना कठिन है । उसके बाद बाद से ही ये माना जा रहा था कि पेट्रोल – डीजल की कीमतों में भी कुछ न कुछ राहत मोदी सरकार प्रदान करेगी जिससे आम जनता के साथ ही उद्योग – व्यापार जगत को भी प्रसन्नता का अनुभव हो। गत दिवस वह उम्मीद पूरी हो गई जब पता चला कि केंद्र सरकार ने पेट्रोल – डीजल के दाम 2 रुपये प्रति लीटर घटा दिये हैं। गत दिवस चुनाव आयोग में दो आयुक्तों की नियुक्ति हो जाने के बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा किसी भी समय हो सकती है । उसके बाद आचार संहिता लग जाने के कारण सरकार इस तरह की किसी भी राहत की घोषणा नहीं कर सकेगी इसलिए उसने आनन – फानन में 2 रुपये प्रति लीटर दाम घटा दिये। यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने पर भी भारतीय तेल कंपनियां मूल्यों को स्थिर रखे रहीं किंतु बीते काफी समय से वैश्विक बाजार में कीमतें कम होने के कारण उनको भरपूर लाभ हो रहा था। तभी से ये अपेक्षा थी कि आम उपभोक्ता को भी उसका लाभ मिलेगा । लेकिन सरकार और तेल कंपनियां इस बारे में मौन साधे बैठी रहीं। विपक्ष सहित आर्थिक विशेषज्ञ भी इसे लेकर सरकार की आलोचना करते रहे। ये आरोप भी लगता रहा कि निजी क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को मुनाफाखोरी का मौका देने सरकार दाम नहीं घटा रही। बहरहाल, अब जब चुनाव की घोषणा होने को है तब जाकर केंद्र सरकार ने मेहरबानी की। इसे चुनावी दांव कहने में कुछ भी गलत नहीं है किंतु जो आंकड़े आ रहे थे उनके आधार पर कीमतें कम से कम 10 रुपये प्रति लीटर कम होनी चाहिए थीं। हो सकता है सरकार ने वैश्विक हालातों का आकलन करते हुए मामूली कमी की किंतु जब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को सीधे बाजार से जोड़ दिया गया तब सरकार को उसमें दखलन्दाजी बंद कर देना चाहिए। हमारे देश में उदारवादी अर्थव्यवस्था लागू होने के बाद भी सरकार पेट्रोल -डीजल की कीमतों पर अपना नियंत्रण नहीं छोड़ना चाहती। प्रधानमंत्री को टीवी पर आकर कीमतें कम करने का ऐलान करना पड़े ये अटपटा लगता है। भले ही लम्बे समय तक कीमतें स्थिर रहीं किंतु इस दौरान पेट्रोलियम कंपनियों ने जितना मुनाफा कमाया उसे देखते हुए कीमतों में ज्यादा कटौती होनी चाहिए थी। पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस जैसी चीजों के दामों को यदि राजनीतिक नफे – नुकसान से परे रखा जाए तो फिर उनमें बदलाव होते समय न तो चुनाव की चिंता रहेगी न ही जनता की नाराजगी अथवा खुशी की। वैसे भी इस तरह के फैसले बाजार द्वारा निर्धारित होने से चुनाव आचार संहिता से मुक्त होना चाहिए किंतु उसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को उससे अलग होना पड़ेगा। कीमतों के अलावा जो अन्य कर लगते हैं वे भी तदनुसार घटते – बढ़ते रहें तो फिर राजनीतिक श्रेय और आरोपों का सिलसिला थम जायेगा। कुछ लोग ये तर्क भी देते हैं कि कीमतों को कम करने से खपत बढ़ती है जिससे कच्चे तेल का आयात करने पर विदेशी मुद्रा खर्च होती है । सरकार इसीलिए इलेक्ट्रानिक वाहनों को प्रोत्साहित कर रही है किंतु उनके पूरी तरह उपयोग में आने में समय लगेगा। तब तक पेट्रोल – डीजल से ही चूंकि गुजारा होना है इसलिये इनकी कीमतों को जनता की पहुँच में बनाये रखने के लिए सरकार अपने कर ढांचे में अपेक्षित सुधार करे ये जन अपेक्षा है। उस दृष्टि से गत दिवस कीमतों में जो कमी की गई वह बहुत कम है। इस बारे में सबसे कारगर उपाय तो पेट्रोल – डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का है जिससे उनकी कीमतों में एकरूपता आयेगी और जनता के साथ ही उद्योग जगत भी राहत का अनुभव करेगा। चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा इसका वायदा कर सकती है।
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