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वायनाड में सीपीआई प्रत्याशी के उतरने से विपक्षी एकता सवालों के घेरे में 

By MPHE Feb 27, 2024
वायनाड में सीपीआई प्रत्याशी के उतरने से विपक्षी एकता सवालों के घेरे में 
वायनाड में सीपीआई प्रत्याशी के उतरने से विपक्षी एकता सवालों के घेरे में 

 

 

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय न्याय यात्रा अपने अंतिम चरण में आने जा रही है। इसका उद्देश्य लोकसभा चुनाव में उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प साबित करने के अलावा इंडिया गठबंधन के घटक दलों को ये संदेश देना था कि कांग्रेस ही राष्ट्रीय पार्टी होने की वजह से भाजपा को टक्कर दे सकती है। हालांकि इस यात्रा के दौरान ही विपक्षी एकता को लगातार झटके लगते रहे। अनेक कांग्रेसी नेताओं के अलावा कुछ विपक्षी नेता इंडिया गठबंधन से निकलकर भाजपा के साथ चले गए। उ.प्र और दिल्ली में क्षेत्रीय दल द्वारा सीमित संख्या में सीटें दिए जाने से भी कांग्रेस का वजन घटा है। ममता बैनर्जी ने प.बंगाल और अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में अकेले लड़ने का ऐलान कर रखा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव तो न्याय यात्रा में शरीक ही तभी हुए जब कांग्रेस ने 17 सीटों पर लड़ने की शर्त स्वीकार कर ली। सही बात ये है कि नीतीश कुमार और जयंत चौधरी के अलग होने के बाद इंडिया गठबंधन की धमक कम हुई है। वह बिखराव की ओर बढ़ रहा है ये कहना जल्दबाजी होगी किंतु जैसे संकेत आ रहे हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि घटक दलों की प्रतिबद्धता घटती जा रही है। इसका ताजा प्रमाण केरल से मिला जहां की वायनाड सीट से राहुल गांधी लोकसभा के सदस्य हैं। 2019 में अमेठी में हार का खतरा देखते हुए उन्होंने अचानक केरल की इस सीट से भी लड़ने का निर्णय लिया जिसमें मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। उनका वह दांव कारगर रहा और अमेठी में परास्त होने के बाद भी वायनाड के रास्ते वे लोकसभा में आ गए। उस चुनाव में उनके विरुद्ध सीपीआई प्रत्याशी था जो कि सत्तारूढ़ वाममोर्चे की घटक है। ये भी उल्लेखनीय है कि प.बंगाल में वाममोर्चे के साथ कांग्रेस का गठबंधन होने के बाद भी केरल में वे अलग – अलग लड़ते रहे। विधानसभा में भी कांग्रेस मुख्य विपक्ष की भूमिका में है। लेकिन इंडिया गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद ये माना जा रहा था कि केरल में भी वामपंथी और कांग्रेस एकजुट होकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे । लेकिन गत दिवस सीपीआई महासचिव डी. राजा ने अपनी पत्नी एनी राजा को वायनाड से चुनाव मैदान में राहुल के विरुद्ध उतारने की घोषणा करते हुए सबको चौंका दिया। यही नहीं उन्होंने तिरूवनंतपुरम सीट से कांग्रेस सांसद शशि थरूर के सामने भी सीपीआई उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया। वामपंथी पार्टियों में महासचिव ही सबसे प्रमुख पद होता है । वैसे भी श्री राजा वर्तमान में वामपंथियों के सबसे वरिष्ट नेता हैं। ऐसे में उनके द्वारा प्रत्याशियों की घोषणा को हवा – हवाई नहीं माना जा सकता। लेकिन श्री गांधी और श्री थरूर जैसे बड़े कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध सीपीआई द्वारा अचानक प्रत्याशी उतार देने से इंडिया गठबंधन में दरार आने की आशंका तो बढ़ी ही है। पंजाब में भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग – अलग लड़ने जा रही हैं। वहीं प.बंगाल में ममता बैनर्जी के रुख में नरमी नहीं आ रही। ये देखते हुए इस गठबंधन की एकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ये बात भी सामने आ रही है कि गठबंधन के सदस्यों के बीच संवादहीनता बढ़ती जा रही है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद दिसंबर में उसकी बैठक हुई थी जिसमें राज्यों के स्तर पर सीटों का बंटवारा करने की बात तय की गई थी। उसी आधार पर कुछ राज्यों में फार्मूला तय भी हुआ लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन यह एहसास करवाने में अब तक सफल नहीं हो सका कि भाजपा के विरुद्ध साझा प्रत्याशी खड़ा करने की नीति पर अमल होगा। यही कारण है कि वह अब तक खुद को विकल्प के तौर पर प्रचारित करने में नाकामयाब साबित हुआ है। कुछ राज्यों में दोस्ताना संघर्ष के बावजूद घटक दलों के प्रमुख नेताओं के विरुद्ध प्रत्याशी लड़ाने से राष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश जाएगा । सोनिया गांधी के चुनाव मैदान से हट जाने के बाद राहुल ही कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हैं। पार्टी के अलावा लालू प्रसाद यादव जैसे नेता तो उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार भी करते हैं। ऐसे में यदि गठबंधन का कोई घटक उनके विरुद्ध प्रत्याशी खड़ा करता है तो इससे आम जनता में ये बात फैलेगी कि जिस नेता का उसके सहयोगी दल ही विरोध करते हों उसे प्रधानमंत्री के लिए उपयुक्त कैसे माना जाए ?उल्लेखनीय है उ.प्र की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट से सपा और बसपा अपना उम्मीदवार नहीं उतारते थे । सीपीआई वायनाड में अपना प्रत्याशी लड़ाने के निर्णय पर अडिग रहेगी या मान – मनौव्वल के बाद हटा लेगी ये अभी कहना कठिन है क्योंकि उसके महासचिव श्री राजा हार्ड लाइनर किस्म के वामपंथी माने जाते हैं। और जब उन्होंने अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनाया तब जाहिर है चुनाव उनके लिए भी प्रतिष्ठा का विषय बनेगा। हालांकि वायनाड में सीपीआई प्रत्याशी को उतारे जाने के बावजूद श्री गांधी की जीत में कोई संशय भले न हो किंतु इंडिया गठबंधन की मजबूती और घटक दलों में आपसी विश्वास जरूर सवालों के घेरे में आ गया है।

By MPHE

Senior Editor

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