संपादकीय – रवीन्द्र वाजपेयी
कश्मीर घाटी के बारामूला में मस्जिद से अजान दे रहे एक पूर्व पुलिस अधिकारी को आतंकवादियों ने गोलियों से भून दिया। बीते काफी समय से घाटी में पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवादी निर्दोष नागरिकों की बेरहमी से हत्या कर रहे हैं। पुलिस कर्मियों के साथ ही छुट्टी पर घर लौटे फौजी भी उनका निशाना बनते हैं। बीच – बीच में कुछ ऐसे लोग भी गोलियों के शिकार बने जिनका शासन या प्रशासन से कोई संबंध नहीं है। अनेक मर्तबा मस्जिदों पर भी वे धावा बोल चुके हैं। उल्लेखनीय ये है कि इस्लाम के नाम पर आतंक का सहारा लेने वाले मुसलमानों की जान लेने में भी नहीं हिचक रहे। जिस पूर्व पुलिस अधिकारी को गत दिवस बारामूला में गोली मारी गई वह मस्जिद में नमाज के लिए अजान दे रहा था , जो इस्लाम के नजरिए से बड़ा ही पवित्र कार्य होता है। ऐसे व्यक्ति को मौत के घाट उतारने वाले लोग कानून की नजर में तो अपराधी हैं ही किंतु इस्लाम की स्थापित मान्यताओं के तहत भी गुनहगार कहे जाएंगे। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को समाप्त करने और राज्य का विभाजन किए जाने के फैसले को सही बताए जाने के बाद घाटी में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों की बौखलाहट बढ़ गई है। न्यायालय के आदेश पर विधानसभा चुनाव की तैयारी भी की जाने लगी है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्य में परिसीमन संबंधी व्यवस्था भी पारित कर ली गई। इसके बाद वहां की राजनीति पर कुंडली मारकर बैठे अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के होश उड़े हुए हैं। जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी लौटाया जा रहा है। लेकिन जम्मू अंचल में विधानसभा सीटें बढ़ जाने से अलगाववादी चिंतित हैं । राज्य की राजनीति में घाटी का जो दबदबा था वह खत्म तो मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही होने लगा था। रही – सही कसर पूरी हो गई धारा 370 हटाए जाने के बाद बने हालातों से। सर्वोच्च न्यायालय में उस निर्णय के विरुद्ध दायर याचिकाओं के निपटारे तक घाटी में कार्यरत पाकिस्तान समर्थक नेताओं और संगठनों की उम्मीदें जीवित थीं किंतु फैसला आने के बाद वे हताश हो उठे। उसके बाद से घाटी में फौजी काफिले पर हमले जैसी घटनाएं देखने मिल रही हैं। लेकिन मस्जिद में अजान दे रहे पूर्व पुलिस अधिकारी की हत्या निश्चित रूप से साबित करती है कि आतंकवादी बदहवासी पर उतर आए हैं। दरअसल ये सब राज्य में पिछले चार वर्षों के दौरान बने शांतिपूर्ण वातावरण को खत्म कर एक बार फिर घाटी को हिंसा की आग में झोंकने का षडयंत्र है । इसे अलगाववादी नेता और उनकी पार्टियां परदे के पीछे रहते हुए समर्थन और सहायता दे रही हैं। ये वही तबका है जिसने चेतावनी दी थी कि कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद वहां तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं मिलेगा। लेकिन केंद्र सरकार की तगड़ी मोर्चेबंदी के कारण जब उस फैसले के बाद कश्मीर घाटी में भारत विरोधी ताकतों की कमर टूटने लगी और आम जनता को केंद्र सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ बिना भ्रष्टाचार के मिलने लगा तो घाटी के अंदरूनी इलाकों तक में लोग खुश हुए किंतु अलगाववादी इस बदलाव को बर्दाश्त नहीं पा रहे थे। और इसीलिए वे कभी छोटी तो कभी बड़ी घटना के जरिए भय का माहौल बनाए रखने की कोशिशें करते रहे। सेना द्वारा किसी आतंकवादी को मारे जाने पर हल्ला मचाने वाले अब्दुल्ला और मुफ्ती ब्रांड नेताओं द्वारा न तो किसी शिक्षक की हत्या पर आंसू बहाए गए न ही वर्दीधारी पुलिस कर्मी अथवा फौजी जवान या अधिकारी की। गत दिवस बारामूला में की गई हत्या मस्जिद में की गई किंतु घाटी के नेताओं ने मुंह में दही जमा रखा है। इस सबसे लगता है कि ज्यों – ज्यों चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी त्यों – त्यों घाटी को अशांत करने वाली घटनाएं दोहराई जा सकती हैं। धारा 370 हटाए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर में पर्यटन उद्योग में जिस तरह का उछाल आया वह इस दावे को सही साबित करने के लिए पर्याप्त है कि घाटी में आतंकवादी ताकतें कमजोर हुई हैं। इसका कारण जनता का भी उनसे दूरी बनाना है । उसे ये बात समझ में आने लगी है कि आतंकवाद के रहते उसके जीवन में शांति और समृद्धि नहीं आ सकती। घाटी के नेताओं को यही बात अखर रही है। पाकिस्तान भी ये देखकर हैरान है कि अब उसके भेजे आतंकवादियों को जनता का पहले जैसा सहयोग नहीं मिल रहा। कुल मिलाकर 370 हटाए जाने का दर्द छोटी – छोटी घटनाओं के तौर पर देखने मिलता रहेगा । इसलिए केंद्र सरकार को पूरी तरह सतर्क रहना होगा क्योंकि आतंकवादी और अलगाववादी ताकतें बौखलाहट में किसी भी हद तक जा सकती हैं।