पाकिस्तान पर आतंकवादी देश होने का आरोप जब भारत लगाता रहा तब उसने खंडन करते हुए जवाब में कहा कि उसके यहां कोई इस्लामी आतंकवादी संगठन नहीं है। यही नहीं तो उसका ये भी रोना रहा कि वह खुद आतंकवाद का शिकार है। हालांकि अब तो अमेरिका और ब्रिटेन सरीखे उसके पुराने संरक्षक भी मानने लगे हैं कि पाकिस्तान की इस्लामिक आतंकवाद को पालने – पोसने में बड़ी भूमिका है। ओसामा बिन लादेन को वह बरसों अपने यहां छिपाए रहा। मुंबई हमले के साथ ही कंधार विमान अपहरण के समय छोड़े गए आतंकवादियों को उसी ने संरक्षण प्रदान किया। कश्मीर घाटी में सक्रिय आतंकवादियों को भी प्रशिक्षण और आर्थिक सहयोग वही प्रदान करता है जिनके जरिए वह भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध लड़ता रहता है। लेकिन आतंकवाद की ये विष बेल उसी के लिए घातक साबित हो रही है। इसका ताजा प्रमाण है ईरान और उसके बीच पैदा हुआ तनाव। दो दिन पूर्व ईरान ने बलूचिस्तान पर मिसाइलें दागकर पाकिस्तान को करारा झटका दिया। उसका आरोप है कि जैश अल-अदल नामक जो आतंकवादी संगठन पाकिस्तान से सटी उसकी सीमा पर तैनात ईरानी सैनिकों पर हमले करता है उसका केंद्र बलूचिस्तान में है। ईरान द्वारा कई मर्तबा शिकायत के बावजूद पाकिस्तान ने उसके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया जिसकी वजह से वह बलूचिस्तान के बड़े इलाके में अपने अड्डे स्थापित कर चुका है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते भी बेहद तनावपूर्ण हैं। जिन तालिबानियों को सत्ता दिलवाने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका तक से दगाबाजी की वही अब उसके लिए समस्या बन गए हैं । सीमावर्ती अपनी जो जमीन पाकिस्तान ने अमेरिका से लड़ने वाले तालिबानी सैनिकों को अड्डे बनाने के लिए दी वे अब उसे खाली ही नहीं कर रहे। उल्टे तालिबानी सत्ता पाकिस्तान पर हमले करने में भी संकोच नहीं करती। इधर बलूचिस्तान में भी पाकिस्तान विरोधी भावनाएं उभार पर हैं । हालांकि वह इन्हें दबाने का भरसक प्रयास करता रहता है किंतु हालात उसके नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं। पश्चिमी सीमांत का इलाका अफगानिस्तान से होने वाले हमले से असुरक्षित है। अब ईरान के साथ भी उसके रिश्ते जिस तरह बिगड़े उसने राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे इस देश के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। उससे भी बड़ी बात ये है कि ईरान के हमलावर होने के पीछे पाकिस्तान में पल रहा मुस्लिम आतंकवादी संगठन है। ईरान जैसे कट्टर इस्लामी देश के साथ पाकिस्तान के रिश्ते किसी इस्लामिक दहशतगर्द संगठन के कारण खराब होना वाकई चौंकाने वाला है । हालांकि ईरान के संबंध ईराक के साथ तो हमेशा से खराब रहे हैं किंतु पाकिस्तान का मामला इसलिए अलग है क्योंकि ईरान के साथ उसका कोई झगड़ा कभी नहीं रहा। हालांकि ईरान जहां लंबे समय से अमेरिका का ऐलानिया दुश्मन बना हुआ है वहीं पाकिस्तान उसका पिट्ठू। फिर भी भौगोलिक स्थिति के कारण दोनों के रिश्ते सामान्य रहे जबकि तेल सौदे के चलते ईरान और भारत भी काफी करीब थे। चाबहार बंदरगाह के निर्माण का काम हाथ में लेकर भारत ने ईरान के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते और मजबूत बना लिए थे। इससे चीन भी काफी परेशान था। उसने जवाब में पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह विकसित करने का जिम्मा लिया जो बलूचिस्तान में स्थित है और चीन की वन बेल्ट वन रोड प्रकल्प का अहम हिस्सा है। ईरान द्वारा पाकिस्तान पर दागी गई मिसाइलों का समय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के विदेश मंत्री हाल ही में ईरान यात्रा पर गए थे। दरअसल हमास और इजरायल के बीच हो रही जंग की शुरुआत में भारत के इजरायल के पक्ष में खड़े होने से ईरान काफी नाराज था किंतु बाद में भारत द्वारा गाजा पट्टी के विस्थापितों के लिए राहत सामग्री पहुंचाकर संतुलन बना लिया गया। अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ईरान और भारत के तेल समझौते में व्यवधान आने से दोनों के रिश्तों में कुछ तनाव आया। इसी तरह रूस से सस्ता तेल खरीदने के सौदे भी ईरान को रास नहीं आए। बीच में तो चाबहार बंदरगाह का काम भारत की बजाय चीन को सौंपने की तैयारी तक उसने कर ली किंतु भारत ने धीरे – धीरे उसकी नाराजगी दूर कर दी। पाकिस्तान के साथ ईरान के संबंध अचानक खराब होने को भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर की हालिया तेहरान यात्रा से जोड़कर भी देखा जा रहा है क्योंकि कूटनीति में समय का बड़ा महत्व होता है। और उस दृष्टि से ईरान का पाकिस्तान पर मिसाइल हमला भले ही आतंकवादी संगठन को निशाना बनाकर किया गया हो किंतु इससे भारत के इस पड़ोसी देश की स्थिति और खराब होने की आशंका बढ़ गई है। ये भी महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान को अब अफगानिस्तान और ईरान दोनों से जूझना पड़ रहा है। लेकिन इस स्थिति के लिए वह खुद जिम्मेदार है।क्योंकि जिन आतंकवादियों को उसने भारत को अस्थिर करने के लिए पाला – पोसा , अब वे उसे ही बर्बाद करने पर आमादा हैं। पुरानी कहावत भी कि जैसा बोओगे वैसा ही तो काटोगे।