प्रायः सभी आस्तिक लोग चाहते हैं, कि हमें भगवान का दर्शन हो जाए। दर्शन तो तभी होगा, जब उनके लिए आप कोई सिंहासन रखेंगे। सिंहासन रखने के लिए कोई कमरा आदि स्थान भी चाहिए।
वेदों और ऋषियों के शास्त्रों में कहा है, कि ईश्वर के दर्शन हृदय में होते हैं। हृदय, ईश्वर के दर्शन करने का अर्थात अनुभूति करने का एक उत्तम स्थान है।
नोट– मैं बात आलंकारिक भाषा में लिख रहा हूँ। इसका अर्थ ऐसा न समझें, कि ईश्वर कोई साकार पदार्थ है। वह शरीर धारण करता है। उसे बैठने के लिए कोई राजाओं की तरह सिंहासन और कमरे या विशाल भवन की आवश्यकता है। यह तो एक मोटा सा उदाहरण देकर समझाने का प्रयास है, कि जैसे राजा किसी सिंहासन पर बैठता है। और उसका सिंहासन किसी विशाल भवन आदि स्थान में होता है। ऐसे ही, मोटी भाषा में कह रहा हूं, कि ईश्वर भी राजा के समान एक सिंहासन पर बैठता है। उसका सिंहासन भी एक विशाल भवन आदि स्थान पर रखा होता है। वेदादि शास्त्रों के अनुसार वास्तव में ईश्वर निराकार ही है, साकार नहीं।
प्रश्न- तो ईश्वर का जो सिंहासन है, वह कौन सा है ?
उत्तर– काम क्रोध लोभ राग द्वेष अविद्या आदि दोषों से रहित ‘शुद्ध हृदय’ यह ईश्वर के बैठने का सिंहासन है।
वेदों और ऋषियों के शास्त्रों में कहा है, कि ईश्वर के दर्शन हृदय में होते हैं। हृदय, ईश्वर के दर्शन करने का अर्थात अनुभूति करने का एक उत्तम स्थान है।
प्रश्न- यह सिंहासन कहाँ पर लगता है? उसका स्थान कौन सा है ?
उत्तर– जहां एकांत हो। कोई शोर शराबा न हो, या कोई अन्य व्यक्ति वहां न हो। और साधक व्यक्ति को वैराग्य भी हो।
उस एकांत स्थान तथा वैराग्य रूपी कमरे में ईश्वर का सिंहासन लगता है। उस सिंहासन पर ईश्वर बैठता है। वहीं पर अर्थात अपने शुद्ध हृदय में साधक व्यक्ति को ईश्वर के दर्शन या अनुभूति हो सकती है। अनुभूति का नियम यह है, कि जिस पदार्थ में जो गुण होते हैं, उन्हीं गुणों के माध्यम से उस पदार्थ की अनुभूति होती है। जैसे गुलाब के फूल में रूप रस गन्ध स्पर्श आदि गुण हैं, तो गुलाब के फूल की अनुभूति रूप रस गन्ध स्पर्श आदि गुणों के माध्यम से होती है। जिन पदार्थों में आकार गुण नहीं होता, उनकी अनुभूति बिना आकार के ही होती है। और जिन पदार्थों में आकार गुण होता है, उनकी अनुभूति आकार गुण सहित होती है। ईश्वर में आकार गुण नहीं है, इसलिए ईश्वर की अनुभूति निराकार स्वरूप में ही होगी। ईश्वर में आकार गुण क्यों
नहीं है, वह क्यों निराकार है ? इसलिए क्योंकि उसमें कोई परमाणु नहीं हैं। जिस पदार्थ में परमाणु होते हैं, उस पदार्थ में आकार गुण होता है। जैसे फ्ल फूल लोहा लकड़ी तांबा सोना चांदी मकान मोटर गाड़ी आदि ये सब परमाणु वाले पदार्थ हैं। अतः इनमें आकार गुण है और इनकी अनुभूति आकार आदि गुणों के माध्यम से होती है। ईश्वर में कोई परमाणु नहीं हैं। इसलिए उसमें आकार गुण भी नहीं है। वह निराकार है। अतः नियम के अनुसार ईश्वर की
अनुभूति निराकार स्वरूप में ही होगी। और ईश्वर में जो आनन्द ज्ञान बल न्याय दया सेवा परोपकार आदि गुण हैं, इन्हीं गुणों के मध्यम से ही ईश्वर की अनुभूति होगी। अतः जितना समय संभव हो उतना समय एकांत में रहें | अपने अंदर वैराग्य को उत्पन्न करें। अपने हृदय को राग द्वेष पक्षपात अन्याय आदि दोषों से रहित शुद्ध बनाएं। वहां आपको ईश्वर के दर्शन अर्थात अनुभूति होगी।
– स्वामी विवेकानन्द
परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।