दो प्रकार के विचार होते हैं। एक सकारात्मक और दूसरे- नकारात्मक। सकारात्मक विचार- जैसे ईश्वर ने मुझे शक्ति सामथ्र्य बुद्धि मन इंद्रियां शरीर भोजन वस्त्र मकान अच्छे माता-पिता आदि बहुत से साधन दिये हैं। मेरे माता पिता बड़े बुद्धिमान विद्वान और धार्मिक हैं। उन्होंने मुझे बहुत कुछ अच्छा सिखाया है। समाज के बहुत से लोग मेरे साथ हैं। वे समय समय पर मुझे सहयोग देते हैं। मैं ईश्वर की कृपा और इन सबके सहयोग से बहुत कार्य कर सकता हूं, और मैं करूंगा, जिससे कि मेरा जीवन उन्नत और आनन्दमय होगा। ऐसे सकारात्मक विचार करने से व्यक्ति के मन में उत्साह बढ़ता है। कार्यों में सफलता की आशा बढ़ती है। वह पुरुषार्थी बनता । ईश्वर की कृपा से तथा समाज के अन्य बुद्धिमान लोगों की सहायता से ?, वह अपने कार्यों में सफल हो जाता है। इसका परिणाम यह | होता है, कि वह अपने जीवन को बड़े आनंदपूर्वक जीता है। यदि व्यक्ति नकारात्मक विचार करता है, कि यह कार्य कैसे होगा ? यह तो नहीं होगा। कोई मेरी सहायता नहीं करेगा। मैं इस कार्य को नहीं कर पाऊंगा। मुझ में इतनी शक्ति सामर्थ्य नहीं है। कोई मेरा सहयोग नहीं करता। बहुत से लोग मेरे शत्रु हैं, ? वे मेरे काम को अटकाते रहते हैं। इस प्रकार से यदि कोई व्यक्ति नकारात्मक विचार करता है, तो इसका परिणाम यह होता है, कि वह व्यक्ति निराशा के गड्ढे में जा गिरता है। और धीरे-धीरे यह निराशा इतनी बढ़ जाती है, कि वह व्यक्ति
डिप्रेशन में चला जाता है। इससे उसके शरीर में भी अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उसका जीवन जीना कठिन हो जाता है। उसे आत्महत्या करने तक के विचार आने शुरू हो जाते हैं। और यदि वह सावधानी न रखे, तो कभी-कभी वह आत्महत्या कर भी लेता है। इसलिए ऐसा सोचना ठीक नहीं है, हानिकारक है। आत्महत्या करना भारतीय संविधान में भी और ईश्वर के संविधान में भी दोनों जगह अपराध है। यदि व्यक्ति आत्महत्या में सफल न हो पाए, तो उसे प्रशासन की ओर से दंड मिलता है, और यदि आत्महत्या करने में वह सफल हो जाता है, तो उसे अगले जन्म में ईश्वर की ओर से दंड मिलता है। इसलिए ऐसा तो कभी सोचना भी नहीं चाहिए। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए यही उपाय है, कि अपने मन या मस्तिष्क को खाली न रखें। क्योंकि खाली खेत में कुछ न कुछ फालतू घास फूस उग ही जाता है। यदि आप अपने मन को खाली रखेंगे, तो मन में नकारात्मक विचार आने लगेंगे। इसलिए मन में कुछ न कुछ अवश्य सोचें। अच्छा सोचें। अपने विचार सदा सकारात्मक रखें। उत्साह पूर्ण विचार रखें। ईश्वर की उपासना करें । इस प्रकार से ईश्वर एवं समाज के दूसरे लोगों का सहयोग लेकर अपने जीवन में उन्नति करें। आप बहुत आनन्द से अपना जीवन जिएंगे।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात ।