भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा गत दिवस लोकसभा में बसपा सदस्य दानिश अली के प्रति असंसदीय भाषा का प्रयोग किए जाने पर विवाद उत्पन्न हो गया । श्री बिधूड़ी ने श्री अली के धर्म को लेकर जिन शब्दों का उपयोग किया उन्हें असंसदीय मानकर कार्यवाही से निकाल दिया गया। लोकसभा अध्यक्ष ने श्री बिधूड़ी को कड़ी चेतावनी दी , वहीं भाजपा अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने 15 दिन में जवाब मांगा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी पार्टी के सांसद के अशोभनीय बयान के लिए माफी मांगने की सौजन्यता भी दिखाई । वहीं श्री अली ने अध्यक्ष से मामले को विशेषाधिकार समिति में भेजने की अपील के साथ चेतावनी दी कि न्याय न मिलने पर वे सदस्यता छोड़ देंगे। लेकिन अब तक जो होता आया है उसके अनुसार मामला विशेषाधिकार समिति में जाएगा और श्री बिधूड़ी के माफी मांग लेने पर उसका पटाक्षेप हो जाएगा । हाल ही में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी द्वारा प्रधानमंत्री के बारे में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के संदर्भ में भी यही देखने मिला। बावजूद इसके संसद या उसके बाहर ऐसी बातें कहने का अधिकार किसी को भी नहीं है। भाजपा को चाहिए वह श्री बिधूड़ी पर कड़ी कार्रवाई करे। लेकिन एक सांसद पर डंडा चला देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा ये मानकर बैठ जाना निरी मूर्खता होगी। भाजपा सांसद के एक मुस्लिम सांसद के प्रति धर्मसूचक शब्द का इस्तेमाल करने से पूरा राजनीतिक जगत हिल गया । ऐसे में तमिलनाडु सरकार के मंत्री द्वारा भारत के 80 फीसदी लोगों के धर्म को डेंगू ,मलेरिया , कोरोना बताकर समूल नष्ट करने की बात कहने और लगातार दोहराए जाने के बाद तो पूरे देश को आंदोलित होना चाहिए था। बजाय इसके कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे तक ने सनातन विरोधी बयान का समर्थन कर डाला। उ.प्र में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य रामचरित मानस के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के बावजूद पार्टी के पद पर हैं। बीते कुछ दिनों से वे हिंदू शब्द की बेहद निम्न स्तरीय व्याख्या कर रहे हैं किंतु सपा , बसपा , कांग्रेस या अन्य किसी को उसमें कोई बुराई नजर नहीं आ रही। स्वामी प्रसाद की देखा सीखी बिहार में नीतीश सरकार के कुछ मंत्री भी निरंतर रामचरितमानस और सनातन धर्म पर घटिया टिप्पणियां कर रहे हैं , जिनको न मुख्यमंत्री रोक रहे हैं और न ही लालू प्रसाद यादव । कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2019 के चुनाव में चौकीदार चोर का नारा किसके लिए लगवाते थे , ये सब जानते हैं। सभी मोदी चोर हैं जैसी टिप्पणी के लिए तो वे मानहानि के दोषी तक करार दिए गए। इसके अलावा स्वातंत्र्य वीर सावरकर के बारे में उनके सार्वजनिक बयान क्या एक राष्ट्रीय नेता की प्रतिष्ठा के अनुरूप थे ? लेकिन विपक्ष में केवल शिवसेना ने दिखावटी विरोध जताया , वहीं शरद पवार ने महाराष्ट्र में राजनीतिक नुकसान होने का डर दिखाकर उनको रोका । ऐसे में विचारणीय प्रश्न ये है कि क्या हमारी राजनीति और सार्वजनिक जीवन में शालीनता , मर्यादा और संवेदनशीलता पूरी तरह विलुप्त हो चली है और सौजन्यता , परस्पर सम्मान तथा सहनशीलता जैसे संस्कार अपनी आवश्यकता और प्रासंगिकता को बैठे हैं ? इसका उत्तर इसलिए तलाशना जरूरी है क्योंकि राजनेता समाज के चेहरे होते हैं। जनता उनको अपना भाग्यविधाता मानती है। जो नेता संसद अथवा विधानसभा में बैठते हैं वे महज एक व्यक्ति नहीं अपितु लाखों मतदाताओं की आकांक्षाओं के प्रतिनिधि होते हैं किंतु सांसद या विधायक न बनने वाले नेताओं को भी बेलगाम जुबान चलाने की छूट नहीं दी जा सकती। आजकल राजनीति के क्षेत्र में जो गैर जिम्मेदाराना आचरण देखने मिल रहा है , उससे निराशा होती है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक के लिए बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियां की जाने लगी हैं। ये बुराई केवल राजनीति तक सीमित हो ऐसा भी नहीं है। नेता , अभिनेता और धर्माचार्य तक लगातार ऐसी टिप्पणियां कर रहे जिनसे व्यर्थ का तनाव पैदा होता है। लेकिन ऐसा कहने से राजनेताओं के अपराध कम नहीं होते क्योंकि वे देश के सार्वजनिक जीवन में सबसे ज्यादा देखे – सुने जाते हैं। इसलिए उन पर इस बात की जिम्मेदारी है कि वे अपनी अभिव्यक्ति का स्तर बनाए रखें। रमेश बिधूड़ी जैसे लोग हर दल में हैं। लेकिन अपने दामन के दाग किसी को नहीं दिखते। तिलक , तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार का नारा लगाने वाली बसपा ने भले ही हाथी नहीं गणेश हैं , ब्रम्हा , विष्णु ,महेश हैं जैसा दूसरा नारा भी उछाल दिया किंतु पहले वाले के लिए आज तक क्षमा नहीं मांगी। अखिलेश यादव ने पिछले चुनाव में अयोध्या की हनुमान गढ़ी से प्रचार शुरू किया था किंतु स्वामी प्रसाद मौर्य की सनातन और रामचरितमानस विरोधी बकवास पर वे मुंह में दही जमाए बैठे हुए हैं। सनातन धर्म के बारे में द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन के बेटे उदयनिधि द्वारा की जा रही अनर्गल टिप्पणियां यदि किसी अन्य धर्म के बारे में की गई होती तो उनका जीना दूभर हो जाता। कहने का आशय ये है कि अशालीन और अपमानजनक टिप्पणियों के विरुद्ध एक जैसी राय रखी जानी चाहिए। इसमें राजनीतिक लाभ और हानि की बजाय गुण – दोष के आधार पर फैसला किया जाना जरूरी है। जो गलत है वो गलत है , फिर चाहे उदयनिधि हों , स्वामी प्रसाद हों या फिर रमेश बिधूड़ी।
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