अबू धाबी में स्वामीनारायण संप्रदाय के भव्य मंदिर का आज शुभारंभ हो रहा है। प्रधानमंत्री इस आयोजन के लिए गत दिवस वहां पहुंच गए। उन्होंने इस बारे में जो जानकारी दी वह सुनकर वाकई सुखद आश्चर्य हुआ क्योंकि संयुक्त अरब अमीरात में हिन्दू धर्म के अनुसार सार्वजनिक रूप से पूजा – पाठ विशेष रूप से मूर्ति पूजा की अनुमति नहीं थी। लेकिन बीते कुछ दशकों में कुछ छोटे – छोटे देशों के इस समूह में भारतीयों की संख्या जिस तेजी से बढ़ी उसने उन्हें अमीरात की जरूरत बना दिया। ये कहना गलत नहीं है कि यदि ये भारतीय वापस आ जाएं तो वहां की व्यवस्था गड़बड़ा जायेगी। व्यवसायी वर्ग के अतिरिक्त भी दुबई और अबूधाबी में श्रमिक , तकनीशियन , ड्राइवर जैसे कामों में भारतीय बड़ी संख्या में कार्यरत हैं। इनके अलावा इन्फ्रा स्ट्रक्चर के कार्यों में भी भारतीय कंपनियों की काफी सहभागिता है। भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच आपसी व्यापार भी लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत से लाखों सैलानी हर साल दुबई जाते हैं। इस प्रकार संयुक्त अरब अमीरात के साथ हमारे रिश्ते व्यापार और कूटनीति से ऊपर भावनात्मक स्तर पर पहुंच गए हैं। आज जिस मंदिर का शुभारंभ हो रहा है उसके लिए अबू धाबी के शासक ने बड़ी ही उदारता से भूमि प्रदान की जो किसी इस्लामिक देश में कल्पनातीत है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना पूरी तरह सही होगा क्योंकि उन्होंने अपने दस वर्ष के कार्यकाल में संयुक्त अरब अमीरात के शाही परिवारों से आत्मीय रिश्ते बना लिए। यही वजह है कि पाकिस्तान और भारत के बीच किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में वे हमारे पक्ष में खड़े नजर आए। निश्चित रूप से इसके पीछे उन लाखों भारतीयों का भी योगदान है जिन्होंने अपने परिश्रम और सदाचरण से वहां की सरकार और समाज का विश्वास अर्जित किया। दुनिया के अनेक देशों में स्वामी नारायण संप्रदाय के भव्य मंदिर बने हैं किंतु अबूधाबी का यह मंदिर उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो भारत में मंदिर बनाए जाने पर नाक सिकोड़ते हैं। इसी के साथ ये मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए भी सबक है जो अतीत में मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों पर हिंदुओं के दावे को स्वीकार करने की सौजन्यता दिखाने के बजाय उसमें अड़ंगे लगाया करते हैं। अयोध्या में गत 22 जनवरी को राममंदिर के शुभारंभ के अवसर पर समूचे विश्व के सनातन प्रेमियों ने हर्षोल्लास मनाया किंतु मुस्लिम समाज का बड़ा वर्ग कोपभवन में बैठा रहा। उसके प्रवक्ता भी अपनी खीझ व्यक्त करने से बाज नहीं आए। बाबरी ढांचे को दोबारा खड़ी करने जैसी डींगें भी हांकी गईं। पाकिस्तान ने भी राममंदिर के निर्माण को लेकर बकवास करते हुए भारत के मुसलमानों को भड़काने के उद्देश्य से बयान जारी किए। यहां तक कि संरासंघ तक में शिकायत की। लेकिन अबूधाबी के मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त 27 एकड़ के भूखंड पर बना यह मंदिर इस्लामिक कट्टरपंथियों के लिए जबरदस्त संदेश है। हालांकि सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर अनेक प्रतिक्रियाओं में संयुक्त अरब अमीरात के हुक्मरानों की आलोचना करते हुए कहा जा रहा है कि अरब की धरती पर हिन्दू मंदिर के निर्माण की अनुमति विनाश की शुरुआत है। किसी ने यहां तक टिप्पणी कर डाली कि ऐसा लगता है जैसे इस्लामिक जगत में भी हिंदुत्व को स्वीकार किया जाने लगा है। लेकिन इस मंदिर का विरोध करने वाले कट्टरपंथियों को ये सोचना चाहिए कि सारी दुनिया में आतंकवाद के कारण मुस्लिमों को संदेह की नजर से देखा जाता है । यूरोप के जिन देशों ने सीरिया संकट के बाद अरब देशों से भाग कर आए लोगों को मानवीय आधार पर शरण दी वे आतंकवाद का दंश भोगने के बाद अब उनको निकाल बाहर करने की सोचने लगे हैं। दूसरी तरफ दुनिया भर में फैले हिंदुओं के साथ ऐसी समस्या उत्पन्न नहीं हुई । अबू धाबी में बना मंदिर उनकी इसी साख का प्रमाण है । वैसे तो इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे इस्लामिक देशों में भी हिन्दू मंदिर प्राचीनकाल से हैं परंतु किसी अरब देश में इतना भव्य नया मंदिर बनना भारत की कूटनीतिक से अधिक सांस्कृतिक विजय है । संयुक्त अरब अमीरात ने इस्लामिक कानून से चलने वाली सत्ता होने के बावजूद अपने देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने हेतु उदारवादी रवैया दिखाते हुए पूरी दुनिया से लोगों को वहां आकर काम करने और कमाने का अवसर दिया। लेकिन हिन्दू मंदिर बनाने के लिए पहले अनुमति और फिर भूमि प्रदान करना इस बात का प्रमाण है कि वहां के शासक भारत और भारतीयों के महत्व को महसूस कर उनके प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। इस मंदिर को इसीलिए धर्म विशेष से न जोड़कर राष्ट्रीय गौरव के तौर पर देखा जाना चाहिए।