हरदा हादसे के जिम्मेदार नौकरशाहों को भी सह अभियुक्त बनाया जाए 

हरदा हादसे के जिम्मेदार नौकरशाहों को भी सह अभियुक्त बनाया जाए 
हरदा हादसे के जिम्मेदार नौकरशाहों को भी सह अभियुक्त बनाया जाए 

 

 

म.प्र के हरदा शहर की पटाखा फैक्ट्री में गत दिवस हुए अग्निकांड में एक दर्जन से ज्यादा मौतों के अलावा सैकड़ों लोगों के घायल होने की खबर है। बारूद के भंडार में आग लगने के बाद धमाकों की आवाज से पूरा शहर दहल उठा। दूर – दूर तक के मकान धमाके में हिल गए। राह चलते लोग भी बारूदी धमाकों के शिकार हुए। अभी मरने वालों की सही संख्या का पता नहीं चल सका है क्योंकि फैक्ट्री में कार्यरत अनेक मजदूर लापता हैं। मलबा हटाए जाने के बाद ही सही स्थिति सामने आयेगी। पटाखा फैक्ट्री में इस तरह के हादसे होना स्वाभाविक होता है क्योंकि जहां बड़ी मात्रा में बारूद का भंडार हो वहां छोटी सी असावधानी से आग भड़क जाती है। जाहिर है इस व्यवसाय का लाइसेंस देने के पहले संबंधित सरकारी विभाग अग्निशमन सहित अन्य सुरक्षा प्रबंधों की जांच करते होंगे। उक्त फैक्ट्री के बारे में जो जानकारी आई उसके अनुसार नियम विरुद्ध कार्य करने के कारण उसे प्रशासन ने बंद कर दिया किंतु संभागायुक्त ने उक्त आदेश पर स्थगन आदेश जारी करते हुए फैक्ट्री खोलने की अनुमति दे दी। अब जबकि हादसे की खबर देश भर में फैल चुकी है । मुख्यमंत्री से लेकर पूरा प्रशासन कड़ी कार्रवाई करने की घोषणा कर रहा है । पहले से ही जमानत पर चल रहे फैक्ट्री मालिक को दोबारा गिरफ्तार भी कर लिया गया। घायलों का इलाज हरदा और भोपाल के अस्पतालों में हो रहा है। भुगतान दिवस होने की वजह से बड़ी संख्या में मजदूर हादसे के समय फैक्ट्री में जमा थे। ऐसी आशंका है कि धमाकों में कुछ श्रमिकों का पूरा परिवार ही भस्म हो गया। फैक्ट्री का रिहायशी इलाके में होना भी स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव का ये कहना तो बिलकुल सही है कि दोषियों पर ऐसी कार्रवाई करेंगे कि दोबारा किसी की जुर्रत ऐसी गड़बड़ी करने की न हो। लेकिन हर बड़ी जानलेवा दुर्घटना के बाद दिखाई जाने वाली सख्ती यदि सही समय पर बरती जावे तो उनको रोका जा सकता है। हाल ही में गुना जिले में हुए बस हादसे में काफी संख्या में यात्रियों के मारे जाने के बाद भी मुख्यमंत्री ने परिवहन आयुक्त से लेकर जिले के तमाम अधिकारियों को हटा दिया । जांच शुरू होने के बाद जो तथ्य सामने आए वे प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार के साथ ही राजनेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ को उजागर करने वाले थे। दुर्घटनाग्रस्त बस की हालत बेहद खराब थी। उसके बाद भी उसे चलाए जाने की अनुमति दी गई। बस मालिक सत्ताधारी पार्टी के नेता परिवार का होने से वह सम्भव हुआ होगा। उसके बाद पूरे प्रदेश में परिवहन महकमा सक्रिय हुआ। दो – चार दिनों तक जहां देखो वहां व्यवसायिक वाहनों की फिटनेस सहित अन्य जांच कराने का नाटक हुआ । और उसके बाद सब कुछ ढर्रे पर लौट आया। गत वर्ष जबलपुर के एक निजी अस्पताल में हुए अग्निकांड में अनेक लोग जान गंवा बैठे थे । उक्त अस्पताल में एक ही निकासी द्वार के अलावा आग बुझाने के समुचित इंतजाम नहीं थे। घटना के बाद शहर में फायर आडिट का अभियान चला। अनेक नए अस्पतालों और बहुमंजिला भवनों के निर्माण की अनुमति रोक ली गई। उसके पहले भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भी आग लगने की घटना ने पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी थी। उसके बाद भी अग्निशमन को लेकर प्रदेश भर में जांच का अभियान चला। लेकिन उसमें कितनी ईमानदारी रही ये हरदा के हादसे से सामने आ गया। बारूद के उपयोग से जुड़े किसी भी व्यवसाय को रिहायशी इलाके में चलाए जाने की अनुमति देना अपराधिक उदासीनता ही कही जाएगी। उस दृष्टि से संभागायुक्त द्वारा बंद की जा चुकी फैक्ट्री को शुरू करने की अनुमति किस आधार पर दी गई वह सामने आना चाहिए । ऐसे काम केवल दो कारणों से होते हैं जिनमें पहला राजनीतिक दबाव और दूसरा भ्रष्टाचार ,जो घूसखोरी की शक्ल में होता है। हरदा का हादसा एक तमाचा है प्रशासनिक व्यवस्था के निकम्मेपन पर । मुख्यमंत्री डा.यादव ने सत्ता संभालते ही अपने सख्त तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। गुना बस कांड के बाद हरदा अग्निकांड ने आपदा प्रबंधन की अग्रिम सावधानियों की असलियत का पर्दाफाश कर दिया है। मुख्यमंत्री को प्रदेश भर के प्रशासनिक अधिकारियों को सख्त हिदायत देना चाहिए कि नियम विरुद्ध यदि इस तरह के व्यवसाय की जानकारी सामने आई तो संबंधित अधिकारी को बराबर का दोषी माना जाएगा । हरदा का हादसा हुआ ही इस वजह से कि रिहायशी इलाके में नियम विरुद्ध चलाई जा रही पटाखा फैक्ट्री को सील करने के बाद दोबारा खोलने की अनुमति एक बड़े साहब ने दे दी। इसलिए ऐसे हादसों में उन नौकरशाहों को भी सह अभियुक्त बनाया जाना जरूरी हो गया है जो मौत के ऐसे मंजर पैदा करने में सहायक बनते हैं।