वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गत दिवस लोकसभा में जो अंतरिम बजट पेश किया उसका सभी अपने – अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं। सत्ता पक्ष की नजर में ये समृद्ध भारत का घोषणापत्र है और इसका लाभ समाज के सभी वर्गों को मिलेगा । दूसरी तरफ विपक्ष स्वाभाविक रूप से उसकी आलोचना में जुटा है। ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना है मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह आखिरी बजट चूंकि महज कुछ महीनों के लिए है इसलिए सरकार के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था फिर भी गरीबों और महिलाओं से जुड़ी योजनाओं पर जोर देकर केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव में लाभार्थी रूपी अपने वोट बैंक को पुख्ता करने का प्रयास बिना शोर मचाए किया है। इन्फ्रा स्ट्रक्चर का बजट बढ़ने से सीधा लाभ उद्योग – व्यापार को होगा और रोजगार के अवसर खुलेंगे। इसमें दो मत नहीं नरेंद्र मोदी चुनाव जीतने के घिसे – पिटे तरीकों को दोहराने में विश्वास नहीं रखते। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने विकास की जो ठोस बुनियाद रखी उसी के कारण भाजपा वहां अंगद के पैर की तरह जमी हुई है। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने गरीब कल्याण की जिन भी योजनाओं का ऐलान स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से किया उनको कार्य रूप में परिणित करने की पूरी योजना पहले से तैयार होने से सकारात्मक परिणाम भी जल्द नजर आने लगे। शौचालय , स्वच्छता , उज्ज्वला , आवास , जल आपूर्ति , किसान कल्याण जैसी अनेक योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के कारण प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता न सिर्फ कायम रही अपितु उसमें निरंतर वृद्धि भी देखी जा सकती है। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की सही दिशा में देश को ले जाने में वे सफल हुए । इसीलिए मोदी की गारंटी अन्य सभी वायदों और घोषणापत्रों पर भारी पड़ जाती है। अंतरिम बजट से आम लोगों की जो अपेक्षा थी वह निश्चित रूप से पूरी नहीं हुई होगी किंतु प्रधानमंत्री जानते हैं कि किस बीमारी में कौन सी दवा कारगर है ? अपने राजनीतिक विरोधियों के पैंतरों को बेअसर करने की कला भी उन्हें भली – भांति आती है । इसीलिए कुछ दिनों से वे गरीब ,महिला , युवा और कारीगरों को चार जातियां बताकर इन्हीं के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका लाभ भी भाजपा को हाल ही में संपन्न म.प्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में छप्पर फाड़कर मिला । श्रीमती सीतारमण के इस अंतरिम बजट में उक्त चारों वर्गों को केंद्रित किया गया है। दरअसल जातिवादी राजनीति करने वाले नेताओं को ये प्रधानमंत्री का जवाब है। वित्तमंत्री द्वारा जितनी भी बजट घोषणाएं की गईं उनका मकसद हर क्षेत्र में गतिशीलता लाना है । और यही संतुलित आर्थिक नीति है । राहुल लगभग रोजाना आरोप लगाते रहते हैं कि सारा पैसा कुछ उद्योगपतियों के पास जा रहा है किंतु वे भूल जाते हैं कि बीते दस वर्षों में देश ने इन्फ्रा स्ट्रक्चर के क्षेत्र में जो चमत्कारिक प्रगति की , उसके कारण समाज के प्रत्येक वर्ग को लाभ मिला है। सड़कों का जाल जिस तेजी के साथ बिछता जा रहा है उससे उद्योग जगत ही नहीं अपितु सामान्य जन भी लाभान्वित हुए क्योंकि जहां से राजमार्ग गुजरते हैं वहां के समीपवर्ती गांव , कस्बे और शहर की तकदीर चमक जाती है। प्रधानमंत्री आवास योजना निर्माण क्षेत्र को मंदी से उबारने साथ ही करोड़ों श्रमिकों को रोजगार देने में सहायक सिद्ध हुई। डायरेक्ट ट्रांसफर व्यवस्था के कारण लाभार्थियों के खाते में पैसा आने से उनकी क्रय शक्ति भी बढ़ी जिसने उपभोक्ता बाजार को संबल दिया। जी.एस.टी के संग्रह में प्रति माह हो रही वृद्धि बाजार में आई रौनक का जीवंत प्रमाण है। दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल बाजार तो भारत है ही , इंटरनेट के उपयोग में भी हम किसी विकसित देश से पीछे नहीं हैं। यथार्थ ये है कि मोदी सरकार ने अर्थव्यस्था को सीमित दायरे से निकालकर बहुमुखी विस्तार दिया जिसका लाभ अब नजर आने लगा है। रक्षा और ग्रामीण विकास पर खर्च बढ़ाए जाने से एक तरफ जहां देश का सुरक्षा तंत्र मजबूत हुआ वहीं दूसरी तरफ कृषि उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि होने से भारत आयातक के बजाय निर्यातक बनने की स्थिति में आ गया। चंद्रयान सरीखे अभियान की सफलता ने जहां देश की गौरव पताका को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया वहीं हर गांव तक सड़क , बिजली और पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधा के पहुंचने से ग्रामीण भारत की शक्ल ही बदल गई। इसी आधार पर ये उम्मीद जताई जाने लगी है कि आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के वापस लौटने की संभावना बढ़ती जा रही है। अंतरिम बजट में खैरातों की बौछार न होने का कारण भी यही आत्मविश्वास है।