संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
जिस सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) को फटकारते हुए पूछा था कि आखिर कब तक दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को जेल में रखा जाएगा, उसी ने उनकी जमानत याचिका अस्वीकार करते हुए माना कि केजरीवाल सरकार की शराब नीति से 300 करोड़ से ज्यादा का लाभ व्यापारियों को हुआ। लिहाजा श्री सिसौदिया को फिलहाल जमानत नहीं दी जा सकती। इसी मामले में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह भी जेल में हैं। ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 2 नवंबर को पूछताछ हेतु बुलाया है। जिस पर उनकी सरकार में मंत्री आतिशी मार्लेना ने भविष्यवाणी कर दी कि पूछताछ के बाद मुख्यमंत्री गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। आतिशी ने ये आशंका भी जता दी कि इसके बाद अन्य विपक्षी मुख्यमंत्री भी गिरफ्तार होंगे। आतिशी का कहना था कि प्रधानमंत्री, आम आदमी पार्टी से डरे हुए हैं। वे चूंकि उसे हरा नहीं सकते इसलिए उसे खत्म करने के लिए बिना किसी मामले के पार्टी के प्रमुख नेताओं को जेल में ठूंस रहे हैं अन्य विपक्षी मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी का डर दिखाकर दरअसल आतिशी ने उनका समर्थन हासिल करने का दांव चला है। उल्लेखनीय अनेक गैर भाजपाई मुख्यमंत्री जांच के घेरे में हैं। इस मामले में सबसे बड़ी बात ये है कि दिल्ली के चर्चित शराव घोटाले में अब तक नामजद आरोप पत्र पेश नहीं हो सका और पूछताछ ही चल रही है। कुछ आरोपियों ने सरकारी गवाह बनकर ईडी को जो जानकारी दी उसके आधार पर संजय सिंह पर शिकंजा कसा गया। चूंकि 300 करोड़ की राशि उपयोग आम आदमी पार्टी द्वारा चुनाव में किये जाने की जानकारी आई है इसलिए ईडी पूरी पार्टी को ही आरोपी बनाने की सोच रही है। यदि ऐसा हुआ तब ये अपने तरह का अभूतपूर्व मामला होगा जिसमें किसी राजनीतिक दल पर ही आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप लगेगा। कल श्री केजरीवाल को ईडी द्वारा गिरफ्तार किया जावेगा या नहीं ये आज कहना कठिन है किंतु इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस पार्टी का उदय जिस उम्मीद के साथ हुआ था वह पूरी नहीं हो सकी और धीरे-धीरे वह भी राजनीति के दलदल में बाकी पार्टियों की तरह से ही कमर तक धंस चुकी हैं। राष्ट्रीय पार्टी बनने की जल्दबाजी में श्री केजरीवाल ने जिस तरह की । रणनीति बनाई उसमें उन मूल उद्देश्यों को दरकिनार कर दिया गया जिनके नाम पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध किए गए आंदोलन को परिणिति एक नये है राजनीतिक दल के तौर पर हुई। दिल्ली की जनता ने इसे दो बार अपना विश्वास भी सौंपा। लेकिन जिस पारदर्शी और जनहितकारी राजनीति का वायदा श्री केजरीवाल और उनके साथियों द्वारा किया गया था, वह अब नहीं दिखाई देती। पार्टी द्वारा धनसंग्रह के लिए जिस तरह के तरीके ही शुरुआत में अपनाए गए उनका सकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा था। अन्य का राजनीतिक दल भी उसके कारण दबाव में थे। मुफ्त बिजली पानी, शिक्षा और चिकित्सा जैसी सुविधाओं के वायदों ने दिल्ली के जनमानस पर जादू जैसा असर किया और आम आदमी पार्टी ने चुनावी जीत का इतिहास रच दिया श्री केजरीवाल ने जिस सादगी और सरलता का वायदा किया उसे भी मतदाताओं ने खूब पसंद किया। 2014 और 2019 की मोदी लहर के बावजूद इस पार्टी ने दिल्ली में जिस धमाकेदार अंदाज में विधानसभा चुनाव जीता वह साधारण उपलब्धि नहीं थी। लेकिन मुफ्त उपहारों के बल पर हासिल सफलता ने श्री केजरीवाल के मन में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जगा दी। आम आदमी पार्टी द्वारा भ्रष्ट नेताओं की सूची जारी कर ये साबित करने का प्रयास किया कि श्री केजरीवाल ही नरेंद्र मोदी के विकल्प हो सकते हैं। दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में चुनाव लड़ने का फैसला भी उसी सोच से उत्पन्न विचार था। हालांकि पार्टी को पंजाब में भी दिल्ली जैसी सफलता मिल गई किंतु शेष राज्यों में अब भी वह जमानत जप्ती का रिकॉर्ड बनाती रही है। जाहिर है राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए आम आदमी पार्टी को धन की जरूरत पड़ी। गौरतलब है उसके पास अन्य राज्यों में दिल्ली जैसा संगठनात्मक ढांचा भी नहीं है और इसलिए वह दूसरे दलों से आए अवसरवादियों को अपने कंधों पर बिठाने में परहेज नहीं कर रही। इस सबके कारण उसका प्रारंभिक स्वरूप अब दिखाई नहीं देता। पार्टी के विस्तार और चुनाव के लिए धन की आवश्यकता के मद्देनजर उसे भी उन्हीं तौर-तरीकों को अपनाना पड़ा जिनके लिए वह दूसरे दलों को घेरती रहती थी। दिल्ली का शराब घोटाला भी उसी का परिणाम है। ईडी की जांच का अंजाम क्या होगा ये तो अदालत ही तय करेगी लेकिन इससे श्री केजरीवाल और पार्टी की छवि पर आंच आई है। सबसे बड़ी बात ये है कि खुद को ईमानदारी का एकमात्र ठेकेदार बताने वाली यह पार्टी विपक्षी गठबंधन में उन नेताओं के साथ बैठने लगी जिन्हें वह सबसे भ्रष्ट बताया करती थी।