स्वच्छता सर्वेक्षण के अच्छे परिणाम किंतु अभी बहुत कुछ करना जरूरी

स्वच्छता सर्वेक्षण के अच्छे परिणाम किंतु अभी बहुत कुछ करना जरूरी
स्वच्छता सर्वेक्षण के अच्छे परिणाम किंतु अभी बहुत कुछ करना जरूरी

 

 

राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणाम गत दिवस घोषित हो गए जिनमें म.प्र के इंदौर शहर ने एक बार फिर बाजी मारी । गुजरात का सूरत नगर भी उसके साथ सह विजेता है क्योंकि दोनों को एक जैसे अंक मिले। सूरत पहले भी देश के सबसे स्वच्छ शहर होने का गौरव हासिल कर चुका था परंतु इंदौर की प्रशंसा करनी होगी जिसने अपने समृद्ध इतिहास , समन्वित सामाजिक जीवन , खान – पान के शौक और व्यवसायिक गतिविधियों के साथ ही स्वच्छता में भी राष्ट्रीय स्तर पर अपना सम्मानजनक स्थान बना लिया। देश के अनेक शहर इस प्रतियोगिता में चमकने के बाद अपना स्थान बरकरार नहीं रख सके । कुछ तो काफी ऊपर रहने के बाद नीचे लुढ़क आए। लेकिन इंदौर ने शिखर पर पहुंचने के बाद उस पर बने रहने का जो कारनामा कर दिखाया उसके लिए वहां की नगर निगम और नेता तो तारीफ के हकदार हैं ही किंतु सबसे ज्यादा श्रेय दिया जाना चाहिए इंदौर वासियों को जिन्होंने स्वच्छता को अपना स्वभाव बना लिया है। वरना शासकीय फरमान और दंड व्यवस्था के बावजूद यदि जनता सहयोग न करे तो इस तरह की सफलता हासिल करना असंभव होता है। जिस तरह स्व . अटल बिहारी वाजपेयी को देश में सड़क क्रांति लाने के लिए याद किया जाता है उसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को राष्ट्रीय अभियान बनाकर अभिनंदन योग्य कार्य किया। शुरुआत में उसे चोचलेबाजी समझकर उसका उपहास किया गया किंतु धीरे – धीरे इस अभियान को गंभीरता से लिया जाने लगा । यद्यपि ये कहना तो गलत होगा कि देश ने स्वच्छता के मामले में पूरी तरह सफलता हासिल कर ली है किंतु इस प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे – छोटे शहरों तक में जागरूकता और दायित्वबोध दिखाई देने लगा है। इसका उदाहरण उन शहरों की स्थिति में आया सुधार है जिनके दामन पर सर्वेक्षण के शुरुआती सालों में सबसे गंदा होने का दाग लगा। प्रदेशों की राजधानियों को एक बार छोड़ दें किंतु छोटे और मध्यम श्रेणी के शहरों में भी स्वच्छता एक मुद्दा बनने लगा है। रेल गाड़ी के वातानुकूलित डिब्बों में सफर करने वाले तक पहले गंदगी करने से बाज नहीं आते थे , लेकिन अब हालात काफी सुधरे हैं। स्वच्छता की स्थिति को बेहतर करने में घरों से कचरा एकत्र करने की व्यवस्था का भी बड़ा योगदान है। चाट और चाय बेचने वाले ठेले और गुमटी वाले भी डस्टबिन रखने लगे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि छोटे – छोटे बच्चे भी इस दिशा में प्रेरित हो रहे हैं। लेकिन शहरों से अलग कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी स्वच्छता को लेकर काफी कुछ करने की गुंजाइश है। लोगों को ये समझाना जरूरी है कि स्वच्छता केवल किसी क्षेत्र की सुंदरता नहीं बढ़ाती अपितु उसके वाशिंदों के स्वास्थ्य और मानसिकता को भी प्रभावित करती है। इसके साथ ही देश में पर्यटन की वृद्धि में भी स्वच्छता की बड़ी भूमिका है। भारत उस दृष्टि से काफी पीछे रह जाता है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दारा लक्षद्वीप में पर्यटन की सम्भावना पर की गई टिप्पणी पर मालदीव के कुछ मंत्रियों द्वारा जो कटाक्ष किया गया उसमें गंदगी का भी उल्लेख था। भले ही उस बात ने दूसरा मोड़ ले लिया किंतु जो यथार्थ है उसे तो स्वीकार करना ही होगा। हमारे देश में प्राकृतिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टियों से पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। लेकिन स्वच्छता की कमी की वजह से हम उनका अपेक्षित लाभ नहीं ले पाते। विशाल जनसंख्या के अलावा गरीबी और अशिक्षा भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। बढ़ते शहरीकरण ने पहले तो महानगरों का बोझ बढ़ाया किंतु अब मध्यम श्रेणी के शहर भी उससे प्रभावित होने लगे हैं। इसका असर गंदगी के ढेर बढ़ने के तौर पर देखने मिलने लगा है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी जहां देखो वहां प्लास्टिक बिखरा दिख जाता है। तीर्थस्थलों में आवाजाही बढ़ने से वहां भी स्वच्छता बनाए रखना आसान नहीं है। लेकिन इस अभियान के राष्ट्रव्यापी फैलाव से नई पीढ़ी में जो सुखद बदलाव आया वह उम्मीद जगाने वाला है। हमारा पड़ोसी चीन भारी – भरकम जनसंख्या के बावजूद यदि अन्य विकसित देशों की तरह ही साफ -सुथरा बन सका तो उसमें वहां की जनता का भी योगदान है। यद्यपि हमारे देश में चीन जैसी तानाशाही नहीं है किंतु लोगों के मन में ये बात बिठाने की ज़रूरत है कि वे देश की तरक्की और अपनी बेहतर जिंदगी चाहते हैं तो फिर कुछ शहरों को ही नहीं बल्कि पूरे देश को स्वच्छ रखना जरूरी है। बीते कुछ समय से ग्रामीण पर्यटन को विकसित करने का प्रयास हो रहा है और उसके प्रारंभिक परिणाम भी अच्छे आए हैं। लेकिन इसे पूरी तरह सफल बनाने के लिए स्वच्छता के स्तर को अपेक्षित ऊंचाई तक ले जाना होगा । इस वर्ष सर्वेक्षण के जो परिणाम आए उनमें कुछ नए शहर भी स्वच्छता पायदान में ऊपर आए हैं। चूंकि प्रतिस्पर्धा शहरों की आबादी के पैमाने पर होने लगी है इसलिए छोटे – छोटे शहरों के पास भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा और प्रसिद्धि हासिल करने का अवसर है। हमारे देश में निजी स्तर पर तो स्वच्छता का पाठ पढ़ाया जाता है किंतु केवल अपना घर साफ – सुथरा रहे और बाहर गंदगी बिखरी पड़ी हो तो वह स्थिति अच्छी नहीं कही जाएगी। इसलिए स्वच्छता को सामूहिक सोच और संस्कार बनाना पड़ेगा ।