22 जनवरी सदियों से दोहराए जा रहे संकल्प के पूरा होने का अवसर होगी

22 जनवरी सदियों से दोहराए जा रहे संकल्प के पूरा होने का अवसर होगी
22 जनवरी सदियों से दोहराए जा रहे संकल्प के पूरा होने का अवसर होगी

 

 

 

ज्यों – ज्यों 22 जनवरी नजदीक आ रही है त्यों – त्यों राम मंदिर में प्राण – प्रतिष्ठा के प्रति उत्सुकता बढ़ने लगी है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर महानगरों में प्रत्येक वर्ग के सनातनी लोग इस ऐतिहासिक अवसर पर अपनी – अपनी क्षमता के अनुसार हर्षोल्लास की तैयारी में जुटे हैं। मंदिरों में विशेष पूजा के साथ सजावट की जावेगी। घरों में दीप मालिका के जरिए लंका विजय के उपरांत भगवान राम के अयोध्या लौटने पर मनाई गई दीपावली का दृश्य सजीव हो उठेगा। 500 वर्षों के बाद अयोध्या में श्री राम की जन्मभूमि पर उनका भव्य मंदिर दुनिया भर में फैले असंख्य सनातनियों की आस्था और आकांक्षा का अभिनव केंद्र बनेगा , इसमें किसी को संदेह नहीं है। यही कारण है कि जहां चार लोग बैठते हैं वहां चर्चा का मुख्य विषय राममंदिर ही होता है। हर कोई उस दिन की प्रतीक्षा में है जब उसे अयोध्या जाकर दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होगा। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको यह ऐतिहासिक आयोजन रास नहीं आ रहा। इसमें राजनेता और कथित बुद्धिजीवियों के अलावा साधु – संन्यासियों की जमात भी है। इन सबके पास विरोध के अपने – अपने कारण हैं । किसी को इस बात की शिकायत है कि मंदिर का निर्माण पूर्ण हुए बिना ही प्राण – प्रतिष्ठा की जा रही है। साथ ही ये भी कि जिन राम लला को लेकर लंबा संघर्ष चला उनके बजाय नई मूर्ति क्यों स्थापित की जा रही है ? कुछ लोग इस बात से परेशान हैं कि मंदिर का शुभारंभ राम नवमी की बजाय 22 जनवरी को इसलिए किया जा रहा है ताकि लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा हिन्दू मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद कर सके। ये आरोप भी है कि आमंत्रण में पक्षपात हो रहा है। साधु – संतों के एक वर्ग में इस बात से नाराजगी है कि प्रधानमंत्री के हाथों प्राण प्रतिष्ठा होगी। कुछ शंकराचार्यों ने तो खुलकर समारोह में न जाने का ऐलान कर डाला। हालांकि उनका विरोध केवल प्राण – प्रतिष्ठा ही नहीं अपितु मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए न्यास पर भी है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने फैसले में केंद्र सरकार को निर्देशित किया गया था कि मंदिर निर्माण के लिए न्यास गठित करे और वही किया गया। जिस न्यास की बात शंकराचार्य कर रहे हैं उसका फैसले में कोई जिक्र नहीं है। ये सही है कि अदालती लड़ाई में शंकराचार्यों सहित अनेकानेक धर्माचार्यों का भी योगदान रहा किंतु ये भी उतना ही सही है कि मैदानी लड़ाई लड़ने वाले संगठनों के परिश्रम और बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। अयोध्या मसले को परिणाम तक पहुंचाने में जिस विचारधारा की प्रमुख भूमिका रही उसके प्रतिनिधि के रूप में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। धर्माचार्यों को तो उनकी प्रशंसा करनी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विवाद का पटाक्षेप किए जाने के बाद केंद्र और उ.प्र सरकार ने विद्युत गति से मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया । उसी का सुपरिणाम है कि इतना भव्य मंदिर आकार ले सका। और उससे भी बढ़कर अयोध्या में विश्वस्तरीय आधारभूत ढांचा खड़ा होने से इस पिछड़े हुए अंचल का कायाकल्प हो गया। होना तो ये चाहिए कि राजनेता न सही किंतु मंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या को जो भव्य स्वरूप दिया गया उसके लिए मोदी और योगी की जोड़ी की प्रशंसा शंकराचार्य गण तो करते। इन दोनों ने वाराणसी के विश्वनाथ परिसर और गंगा घाटों का जो विकास करवाया उसकी हर कोई तारीफ कर रहा है। अयोध्या में केवल राम मंदिर बनाकर छोड़ दिया जाता तब वहां आने वाले परेशान होते रहते। लेकिन मंदिर के समानांतर सड़कों का उन्नयन, आधुनिकतम रेलवे स्टेशन , अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा , आने वाले यात्रियों के ठहरने के लिए होटल इत्यादि भी जिस तेजी से विकसित किए गए उसकी वजह से उपेक्षित और अविकसित रहने वाली अयोध्या सबसे खूबसूरत और सुविधा संपन्न धार्मिक नगरी बनकर उभरी है। ये सब देखते हुए 22 जनवरी के आयोजन पर सवाल उठाने वाले धर्माचार्यों को चाहिए वे इस अवसर पर उपस्थित रहकर अपना आशीर्वाद उन सभी को प्रदान करें जिनके अथक प्रयासों से यह ऐतिहासिक अवसर उत्पन्न हो सका। आखिरकार शंकराचार्य सहित समस्त साधुओं के लिए भी तो ये परम सौभाग्य का विषय है कि वे अपने जीवनकाल में उस संकल्प को पूरा होता देख पाएंगे जो सदियों से सनातन परम्परा में आस्था रखने वाले दोहराते आ रहे थे।