बांग्ला देश के आम चुनाव में शेख हसीना ने लगातार चौथी जीत हासिल करते हुए सत्ता पर कब्जा बनाए रखा। उनकी पार्टी आवामी लीग ने संसद की ज्यादातर सीटें हासिल कर लीं। विपक्षी पार्टी बीएनपी और जमायत ए इस्लामी ने चुनाव का बहिष्कार किया था। ऐसे में विपक्ष में जीते ज्यादातर उम्मीदवार निर्दलीय हैं जिनमें हसीना समर्थक भी बताए जाते हैं। बहिष्कार करने वाले दलों ने चुनावों की निष्पक्षता पर संदेह जताया है। जबकि आवामी लीग का कहना है कि चुनाव से भागने वाली पार्टियों का लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है। शेख हसीना बांग्ला देश के संस्थापक स्व.मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। उनके भारत के साथ अच्छे संबंध भी हैं। इस चुनाव में उन्हें हिंदुओं का जबरदस्त समर्थन मिला। एक प्रकार से यह चुनाव इकतरफा होकर रह गया। लेकिन विपक्ष शांत बैठा रहेगा ये कहना मुश्किल है । इसलिए आने वाले दिन इस देश में राजनीतिक उथल – पुथल भरे होंगे। चीन और पाकिस्तान नहीं चाहेंगे कि हसीना और भारत के संबंध और मजबूत हों । इसीलिए दोनों मिलकर बांग्ला देश में सक्रिय भारत विरोधी संगठनों को मदद देते हैं। ये भी किसी से छिपा नहीं है कि बांग्ला देश तस्करी का बड़ा अड्डा बनता जा रहा है जिनमें नशीले पदार्थों का कारोबार भी शामिल है। भारत के इस देश से वैसे तो काफी नरम – गरम रिश्ते रहे हैं। लेकिन शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से मतभेद काफी हद तक दूर करने में मदद मिली। बीते दस सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साझा सांस्कृतिक विरासत के आधार पर आपसी रिश्तों को काफी बेहतर बनाया और बांग्ला देश को सहायता और संरक्षण देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सीमा विवाद के कई मामले इस दौरान सुलझाने के अलावा आर्थिक मोर्चे पर भी सहयोग बढ़ा। लेकिन भारत के प्रति उदार रहने के बावजूद हसीना सरकार अपने देश में कट्टरपंथियों पर नियंत्रण स्थापित करने में अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सकी। हिंदुओं पर होने वाले हमले बढ़ते ही जा रहे हैं। उनके मंदिरों को तोड़े जाने के अलावा त्यौहारों पर उत्पात आम बात हो चली है। बांग्ला देश का हर शख्स जानता है कि उसके निर्माण में भारत की निर्णायक भूमिका रही है वरना आज भी यह पूर्वी पाकिस्तान ही रहा होता।शुरुआती दौर में भारत के प्रति आभार नजर भी आया किंतु शेख मुजीब की हत्या के बाद वहां भारत विरोधी ताकतें सत्ता में आईं और उसी दौरान रिश्ते खराब होते गए। हालांकि हसीना के शासनकाल में काफी बदलाव आए किंतु हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर स्थिति बिगड़ती ही जा रही है। घुसपैठियों की समस्या भी विवाद का कारण है। उल्लेखनीय है भारत सरकार जल्द ही सी.ए.ए नामक कानून लागू करने जा रही है । इसके कारण भी दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हो सकता है। लेकिन पांचवी बार प्रधानमंत्री बनने जा रही हसीना को ये नहीं भूलना चाहिए कि उनकी ताजा जीत में हिंदुओं का बड़ा योगदान है । और इसलिए उनको इस अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा और हितों का ध्यान रखना चहिए। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि बांग्ला देश भले ही मुस्लिम बहुल देश हो किंतु उसका सांस्कृतिक ढांचा पूरी तरह से भारतीय ही है। भाषा , साहित्य और संगीत जैसी विधाओं में परंपरागत एकरूपता है। लेकिन 1971 में आजाद होने के कुछ सालों बाद से वहां भारत विरोधी तत्व आक्रामक होने लगे। दुर्भाग्य से जिस पाकिस्तान ने बांग्लादेशी जनता पर अमानुषिक अत्याचार किए उसी की मदद से आतंकवादी संगठन भारत में अस्थिरता और अशांति फैलाने में जुटने लगे। पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवाद का बांग्ला देश के रास्ते भारत में आना निश्चित तौर पर इस देश के लिए भी खतरनाक है किंतु इस्लाम के नाम पर हिंदुओं के विरोध के चलते वहां भी वही सब होने लगा जो पाकिस्तान में होता है। हिंदुओं की घटती आबादी ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि राजनीतिक तौर पर पाकिस्तान से आजाद होने के बाद भी ये देश उसकी भारत विरोधी मानसिकता से मुक्त नहीं हो सका। ऐसे में अब जबकि हसीना बांग्ला देश की सत्ता पर मजबूती से काबिज हो गई हैं तब उनको चाहिए वे हिन्दू विरोधी कट्टरपंथी ताकतों पर नियंत्रण लगाएं। इसके साथ ही उनको घुसपैठ की समस्या के बारे में भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए आगे बढ़ना होगा। सबसे बड़ी आवश्यकता उनके लिए चीन के दबाव से मुक्त रहना है जो भारत के सभी पड़ोसियों को अपने शिकंजे में कसने की नीति पर चल रहा है। नेपाल , म्यांमार ,
श्रीलंका और मालदीव इसके उदाहरण हैं। भूटान की सीमा पर भी वह लगातार दबाव बनाए हुए है । फिलहाल भारत में हसीना सरकार की वापसी से राहत है। ये भी सही है कि उन्हें हिंदुओं का जो अभूतपूर्व समर्थन मिला उसमें भारत की भूमिका को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए अब हसीना को चाहिए वे बांग्ला देश में असुरक्षा के साये में जी रहे हिंदुओं और उनके धर्मस्थलों की सुरक्षा के लिए साहस के साथ आगे आएं।क्योंकि इसमें उनका भी भला है।