संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
म.प्र में आज मोहन यादव के अलावा छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय ने मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। इन दोनों का चयन चौंकाने वाला बताया जा रहा था। पहले आदिवासी और फिर ओबीसी मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने विपक्ष के जातीय जनगणना वाले मुद्दे की हवा निकाल दी। लेकिन उससे भी बड़ा दांव चल दिया राजस्थान में जहां पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर इस अवधारणा को गलत साबित कर दिया कि भाजपा में सवर्ण जातियों को पीछे धकेला जा रहा है। इस प्रकार जिस सोशल इंजीनियरिंग का ढिंढोरा पीटकर विपक्षी पार्टियां भाजपा को ओबीसी और दलित विरोधी बनाती रहीं उसे भाजपा ने ज्यादा बेहतर तरीके से लागू किया है। नब्बे के दशक में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की , उसी समय भाजपा का राम मंदिर मुद्दा भी गरमा उठा और लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से रथ यात्रा लेकर अयोध्या के लिए निकल पड़े। राजनीतिक विश्लेषकों ने तब ये कहा था कि मंडल का जवाब भाजपा ने कमंडल के रूप में दिया क्योंकि तमाम सनातनी साधु – संत राम मंदिर के कारण भाजपा के साथ खड़े हो गए थे । ये कहना भी पूरी तरह सही होगा कि भाजपा को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में वह रथ यात्रा नींव का पत्थर साबित हुई। लेकिन जल्द ही पार्टी के वैचारिक अभिभावक रास्वसंघ को ये महसूस होने लगा कि मंडलवादी ताकतों के क्षेत्रीय वर्चस्व को तोड़ने के लिए समाज के जातीय संतुलन और समरसता को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ा जा सकता है। और उसी का परिणाम है कि उ.प्र जैसे राज्य में भाजपा ने जातीय राजनीति करने वाली सपा और बसपा का आभामंडल फीका कर दिया। छोटी – छोटी अनेक जातियों और उपजातियों को अपने साथ जोड़कर भाजपा ने जो सार्थक प्रयोग किया वह कारगर होने लगा और अब कोई उसे सवर्ण और व्यापारी वर्ग की पार्टी नहीं कहता । म.प्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष पद हेतु चयन करते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पीढ़ी परिवर्तन को तो ध्यान रखा ही किंतु सबसे ज्यादा महत्व दिया जातिगत संतुलन को जिसकी पूरे देश में चर्चा हो रही है। कांग्रेस ही नहीं बल्कि नीतीश कुमार , अखिलेश यादव , मायावती और तेजस्वी यादव जैसे नेता तक हतप्रभ हैं ।ये देखते हुए कहा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने हिंदुत्व के अपने परंपरागत मुद्दे के साथ ही मंडलवादी ताकतों से उनका मुख्य हथियार छीन लिया है। उल्लेखनीय है आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का शुभारंभ होने जा रहा है। संघ परिवार उस आयोजन को ऐतिहासिक बनाने के लिए जी जान से जुटा हुआ है। करोड़ों लोगों को पीले चावल भेजकर आमंत्रित किया जा रहा है। निश्चित रूप से यह आयोजन धार्मिक के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होगा । प्रधानमंत्री को विरोधी कुशल इवेंट मैनेजर कहा करते हैं जो काफी हद तक सच भी है क्योंकि वे ऐसे किसी भी अवसर को भव्य और स्मरणीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। तीन राज्यों में भाजपा की शानदार जीत के बाद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री चयन में जिस सूझबूझ का परिचय दिया गया वह इस बात का प्रमाण है कि भाजपा की निगाहें भविष्य पर हैं। जिस चतुराई से बेहद साधारण परिस्थिति से उठे लोगों को सत्ता के सिंहासन पर आसीन करवाया गया उसमें सामाजिक समरसता और जातीय संतुलन के साथ ही हिंदुत्व की विचारधारा की झलक साफ नजर आती है। हिमाचल और कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस के जो हौसले सातवें आसमान पर थे वे तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद धरती पर आ गिरे । बावजूद इसके कि वह तेलंगाना में सरकार बनाने में सफल रही। दरअसल उत्तर भारत के तीन राज्यों में भाजपा द्वारा बड़े बहुमत के साथ सत्ता हासिल करने से कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गया है। इसका प्रमाण चुनाव परिणाम आने के बाद हुई बयानबाजी से मिला । यही नहीं इंडिया नामक गठबंधन भी आकार लेने के पहले ही बिखराव का शिकार होता लग रहा है। राहुल गांधी को अपनी पूर्व निर्धारित विदेश यात्रा रद्द करनी पड़ी। कुछ समय पहले तक ये लगने लगा था कि मोदी लहर कमजोर पड़ने लगी है।लेकिन तीन राज्यों की जीत के बाद भाजपा ने उस आशंका को निराधार साबित कर दिया। जनवरी में राम मंदिर का शुभारंभ निश्चित रूप से उसके पक्ष में लहर उत्पन्न करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने भी धारा 370 हटाए जाने को विधि सम्मत बताकर प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को और बढ़ा दिया ।