संसार में सब लोग एक जैसे नहीं होते। हर व्यक्ति के पूर्व जन्मों के संस्कार अलग-अलग होते हैं। सब के घर का भोजन भी अलग अलग होता है। सबके माता पिता भी अलग अलग हैं। माता पिता की ओर से जो बच्चों को प्रशिक्षण मिलता है, वह भी अलग- अलग है। स्कूल, कॉलेज, गुरुकुल आदि
शिक्षण संस्थाएं भी अलग अलग हैं। सबके अध्यापक भी अलग अलग हैं। उनके विचार भी अलग अलग हैं। किसी व्यक्ति को ये सारी वस्तुएं अच्छी मिलती हैं, किसी को दोष युक्त अर्थात इनमें से बहुत सी चीजें खराब मिलती हैं। और किसी को मिली जुली मिलती हैं। जिसको ये सारे कारण अच्छे
मिलते हैं, उस व्यक्ति के जीवन में शांति आनंद सेवा परोपकार दान दया आदि गुण देखे जाते हैं। जिसको ये सब कारण अच्छे नहीं मिलते, उसके जीवन में
स्वार्थ अविद्या मूर्खता लड़ाई झगड़ा राग द्वेष आदि आदि बहुत सारे दोष होते हैं। इस प्रकार से बहुत वस्तुओं में अंतर होने से सबका का गुण कर्म स्वभाव
एक जैसा नहीं रहता, बल्कि अलग-अलग हो जाता है। यदि आपका गुण, कर्म, स्वभाव अच्छा है, तो आप दूसरों के लिए अच्छा सोचेंगे, तथा दूसरों को
सुख देंगे। परंतु ऊपर बताए कारणों की भिन्नता होने से, हो सकता है दूसरे लोग आप जैसे न हों, और वे कुछ स्वार्थ लोभ क्रोध आदि आदि दोषयुक्त हों।
इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं है, कि यदि आपने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया, तो वे लोग भी आपके साथ अच्छा व्यवहार ही करेंगे।
अपने संस्कार आदि की भिन्नता के कारण हो सकता है, वे आपके साथ अच्छा व्यवहार न भी करें। यदि आप ऐसा मानकर अपना जीवन जिएंगे,
तो आपको जीवन में कठिनाई कम आएगी। और जहां भी कुछ ऊंचा नीचा व्यवहार हो जाएगा, वहां आप अपने मन बुद्धि को संयम में रखते हुए शांति
से अपना जीवन जी लेंगे।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक,
निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात ।