संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
झारखंड से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और उड़ीसा के बड़े शराब व्यापारी धीरज साहू के विभिन्न ठिकानों पर पड़े आयकर के छापों में अब तक 300 करोड़ रुपए नगद प्राप्त हो चुके हैं। ये गिनती कहां जाकर रुकेगी कहना मुश्किल है। संभवतः आयकर छापों में मिली नगदी की ये सबसे बड़ी राशि है। इसके पूर्व प.बंगाल के एक मंत्री और कन्नौज के इत्र व्यापारी के यहां पड़े छापे में भी बड़े पैमाने पर नगदी जप्त की गई थी। पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वह आयकर , सीबीआई और ईडी जैसे विभागों का इस्तेमाल विपक्ष को डराने के लिए करती है। इस बारे में ये कहना गलत नहीं है कि मोदी सरकार के राज में विपक्षी नेताओं के अलावा अनेक ऐसे लोगों के यहां छापे पड़े जिनको विपक्ष के नजदीक माना जाता है। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पूर्व भी ईडी ने वहां छापेमारी की। महाराष्ट्र में शिवसेना नेता संजय राउत सहित उद्धव ठाकरे सरकार के दो मंत्री भी जेल जा चुके हैं। दिल्ली सरकार के दो मंत्रियों सहित उसके राज्यसभा सदस्य संजय सिंह भी जेल में हैं। संदर्भित प्रकरण में जिस मात्रा में नगदी बरामद हुई वह निश्चित रूप से काला धन ही है। लेकिन ऐसे छापों को लेकर सरकार पर हमला करने वाली कांग्रेस जिस तरह से मौन साधकर बैठी है उससे उसका अपराध बोध उजागर होता है। जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार अभी नोट गिनने में जांच एजेंसी को दो – तीन दिन और लगेंगे। इस छापे का अंतिम परिणाम क्या होगा ये तो बाद में पता चलेगा किंतु किसी भी व्यवसायी के पास इतनी बड़ी रकम होने से साधारण बुद्धि वाला भी ये मानेगा कि यह वैध कमाई नहीं है। शराब व्यवसाय में तो वैसे भी काली कमाई की बड़ी भूमिका रहती है। राजनीतिक पार्टी को चंदा देने वालों में शराब माफिया सबसे आगे रहता है। कांग्रेस द्वारा श्री साहू को राज्यसभा की सदस्यता प्रदान करना इस बात को दर्शाता है कि वह पार्टी को आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराता रहा होगा। यद्यपि शराब व्यवसायी को राज्यसभा में भेजने का ये पहला उदाहरण नहीं है । विजय माल्या ने राज्यसभा की सीट हासिल करने के लिए निर्दलीय के साथ भाजपा विधायकों तक को खरीद लिया था। अनेक उद्योगपति और बड़े वकील राजनीतिक दलों के सदस्य न होते हुए भी राज्यसभा की सीट पा जाते हैं। कपिल सिब्बल कांग्रेस छोड़ने के बाद समाजवादी पार्टी की मदद से राज्यसभा में आ गए किंतु वे उसके सदस्य नहीं हैं। स्व.राम जेठमलानी और स्व.राहुल बजाज को शिवसेना ने संसद के उच्च सदन की सदस्यता प्रदान की। लेकिन श्री साहू को संसद में भेजने का संकेत साफ है । हमारे देश की चुनावी व्यवस्था में काले धन की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। सोचने वाली बात ये है कि श्री साहू जैसे व्यवसायियों के पास अरबों रुपए इस तरह रखे रहते हों तो इस बात का अंदाज लगाया जा सकता है कि वे सांसद बनने के लिए संबंधित राजनीतिक पार्टी को कितना धन देते होंगे। अनेक शराब और खनिज व्यवसायी राजनीतिक दलों से बाकायदा टिकिट हासिल कर विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़कर जीतकर सदन में बैठते हैं। कुछ तो मंत्री भी बन जाते हैं। चूंकि चुनाव में धन की भूमिका बढ़ती ही जा रही है इसलिए इस प्रकार के लोगों की मदद चाहे – अनचाहे राजनीतिक दलों को लेनी पड़ती है। श्री साहू के यहां बड़ी मात्रा में नगदी बरामद होने से ये आशंका भी बढ़ रही है कि या तो शराब व्यवसाय के अलावा उनके पास और भी काले धंधे हैं या फिर ये रकम किसी राजनेता के जरिए उनके पास जमा की गई होगी जिसका उपयोग लोकसभा चुनाव में किया जाने वाला हो। उल्लेखनीय है आम आदमी पार्टी पर भी ये आरोप है कि दिल्ली में नई शराब नीति के जरिए उसने गोवा और पंजाब चुनाव के लिए धन जुटाया था। सही बात तो ये है कि लगभग सभी राजनीतिक दल अवैध तरीकों से धन कमाने वाले तत्वों से चंदा लेते हैं । शराब और खनन माफिया तो राजनीतिक बिरादरी का अभिन्न हिस्सा है। उस दृष्टि से धीरज साहू तो महज बानगी है। यदि पूरे देश पर नजर डालें तो उस जैसे दर्जनों कारोबारी मिल जाएंगे जो अपनी काली कमाई से राजनीतिक पार्टियों को उपकृत करने में आगे रहते हैं। जाहिर है ये उपकार निःस्वार्थ नहीं होता। उसके बदले वे क्या हासिल करते हैं ये किसी से छिपा नहीं है। गत दिवस तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा की सदस्यता भी जिस कारण गई उसके पीछे भी एक उद्योगपति से उनके संबंध ही थे जिन्हें उन्होंने संसद की वेबसाइट का पासवर्ड दे दिया था जिससे वे दुबई में बैठे – बैठे उनके नाम से प्रश्न लोकसभा सचिवालय भेजा करते थे। कुल मिलाकर श्री साहू के यहां पड़े छापे ने एक बार फिर राजनीतिक दलों और काले धंधों वालों का संबंध उजागर कर दिया है। हर छापे के बाद केंद्र सरकार पर हमले करने वाली कांग्रेस इस मामले में जिस तरह शांत है उससे भी बहुत कुछ जाहिर हो रहा है।