मां अन्नपूर्णा का महाव्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से प्रारम्भ होता है और मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समाप्त होता है। यह उत्तमोत्तम व्रत सत्रह दिनों तक चलने वाला व्रत है। व्रत के प्रारंभ के साथ भक्त 17 गांठों वाले धागे का धारण करते हैं। इस अति कठोर महाव्रत में व्रती 17 दिन तक अन्न का त्याग करते हैं। फलाहार भी एक ही वक्त किया जाता है। कई भक्त इस व्रत को 21 दिन तक भी पालन करते हैं, इस मान्यता के अनुसार व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा से प्रारंभ होकर मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समापन होता है। मां अन्नपूर्णा माता का व्रत करने का पूजन विधि- अन्नपूर्णा माता के व्रत के दिनों प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस प्रकर से सोलह दिन तक माता अन्नपूर्णा की कथा का श्रवण करें व डोरे का पूजन करें। फिर जब सत्रहवाँ दिन आये (मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी) को व्रत करनेवाला सफेद वस्त्र और स्त्री लाल वस्त्र धारण करें। रात्रि में पूजास्थल में जाकर धान के पौधों से एक कल्पवृक्ष बनाकर स्थापित करें और उस वृक्ष के नीचे भगवती अन्नपूर्णा की दिव्य मूर्ति स्थापित करें। पूरे घर और रसोई, चूल्हे की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। खाने के चूल्हे पर हल्दी, कुमकुम, चावल पुष्प अर्पित करें। धूप दीप प्रज्वलित करें। इसके साथ ही माता पार्वती और शिव जी की पूजा करें। माता पार्वती ही अन्नपूर्णा हैं। विधिवत् पूजा करने के बाद माता से प्रार्थना करें कि हमारे घर में हमेशा अन्न के भंडारे भरे रहें मां अन्नपूर्णा हमपर और पूरे परिवार एवं समस्त प्राणियों पर अपनी कृपा बनाए रखें। इन् दिनों मैं अन्न का दान करें जरूरतमंदो को भोजन करवाएं। इस व्रत में अगर व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करके भी व्रत का पालन किया जा सकता है। इस व्रत में सुबह घी का दीपक जला कर माता अन्नपूर्णा की कथा पढ़ें और भोग लगाएं । अन्नपूर्ण सदापूर्ण शंकर प्राण वल्लभे । ज्ञान वैराग्य सिध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥ माता च पार्वति देवी पिता देवो महेश्वरः । बान्धवा शिव भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ व्रत के दिनों में आहार-व्रती को निम्न खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये- मूँग की दाल, चावल, जौ का आटा, अरवी, केला, आलू, कन्दा, मूंग दाल का हलवा । इस व्रत में नमक का सेवन नहीं करना चाहिये।
पृथ्वी पर पड़ गया था सूखा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अन्न-जल का अकाल पड़ गया था. जमीन बंजर हो गई. समस्त संसार में जीवन संकट पैदा हो गया. लोग अन्न की कमी से भूखे मरने लगे. इस समस्या का समाधान करने के लिए सभी ने ब्रह्मा और विष्णु की पूजा-अर्चना शुरू कर दी. हर जगह त्राही त्राही देखकर ऋषियों ने भी ब्रह्म लोक और बैकुंठ धाम में जाकर इस परेशानी का हल जानना चाहा. तमाम प्रयासों के बाद भी जब हल नहीं निकला तो सभी देवी- देवता शिव की शरण में पहुंचे। शिव ने मां अन्नपूर्णा से मांगी भिक्षा समस्या के निवारण के लिए महादेव मां पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का भ्रमण करने निकले. शिव ने पृथ्वी वासियों के लिए भिक्षु का रूप धरा और माता पार्वती मां अन्नपूर्णा का रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुईं. समस्त संसार के कल्याण के लिए शिव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा में अन्न मांगा. ये अन्न और जल भोलेभंडारी ने पृथ्वी वासियों में वितरित किया और लोगों के भरण पोषण का संकट खत्म हो गया. माता पार्वती जिन दिन मां अन्नपूर्णा के रूप में प्रकट हुईं उस दिन मार्गशीर्ष की पूर्णिमा थी, तभी से इस दिन को देवी अन्नपूर्णा के अवतण दिवस के रूप में मनाया जाता है। मां अन्नपूर्णा की तस्वीर में शिव भिक्षा मांगते हुए नजर आते हैं. देवी अन्नपूर्णा को अन्नदा और शाकुम्भरी भी कहते हैं. अन्नपूर्णा जयंती मनाने का लक्ष्य लोगों को धान्य का महत्व समझाना है. मान्यता है कि अन्न का अपमान करने से घर की बरकत चली जाती है. अन्न के भंडार खाली हो जाते हैं।
राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद