वेद ज्ञान परंपरा का आधार हैं

वेद ज्ञान परंपरा का आधार हैं
वेद ज्ञान परंपरा का आधार हैं

संसार में कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं है, सभी अल्पज्ञ हैं । इसलिए कोई भी व्यक्ति संपूर्ण ज्ञानी न होने के कारण अपने सारे काम स्वयं ठीक ठीक नहीं कर पाता। उसे दूसरों से बहुत सा ज्ञान प्राप्त करना पड़ता है। इसीलिए आप भी अपने बच्चों को बचपन से ही स्कूल भेजते हैं, कि जाओ, कुछ ज्ञान प्राप्त करो, जिससे कि आपका भावी जीवन सरल एवं सुखमय बने । केवल एक ईश्वर ही सर्वज्ञ है । उसका ज्ञान पूर्ण है, शुद्ध है, सर्वथा निर्दोष है। उसमें भ्रांति संशय आदि कोई भी दोष नहीं है। ऐसे सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान ईश्वर ने जब संसार बनाया, तब सभी लोग अज्ञानी थे । वे कुछ नहीं जानते थे। तब सृष्टि के आरंभ काल में ईश्वर ने चार वेदों का ज्ञान मनुष्यों को दिया। और आरंभ के मनुष्यों अर्थात ऋषियों ने ईश्वर से चार वेदों का ज्ञान प्राप्त करके अन्य मनुष्यों को वेदों का ज्ञान दिया। और वही गुरु शिष्य परंपरा तब से आज तक चली आ रही है। वेदों का शुद्ध ज्ञान प्राप्त करके और संसार में परिश्रम पुरुषार्थ कर करके कुछ लोग ऊंचे तत्वज्ञानी हो गए। वे सन्यासी बन गए, और संसार में घूम-घूम कर वेदों का प्रचार करने लगे । उनमें से कुछ गिने चुने लोग आज भी मिलते हैं, जो तपस्या करते हैं, वेदों के सच्चे विद्वान हैं और वे भी देश दुनियां में घूम घूमकर सबको वेदों का शुद्ध ज्ञान बांटते रहते हैं। ऐसे वेदों के विद्वान उत्तम आचरण वाले सच्चे सन्यासी लोग जहां भी जाते हैं, वहां पर दीपक के समान वेदों के शुद्ध ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। ऐसे विद्वानों का सत्संग प्राप्त करना बहुत ही सौभाग्य की बात होती है। यदि कभी आपके गांव नगर में या आपके आसपास ऐसे वेदों के विद्वान संन्यासी लोग पधारें, तो उनका सत्संग अवश्य करें । अथवा कभी कभी आप उनके आश्रमों, गुरुकुलों आदि स्थानों पर जाकर उनसे शुद्ध ज्ञान का लाभ अवश्य प्राप्त करें। संसार में सभी लोग शुद्ध ज्ञानी एवं पूर्ण सत्यवादी नहीं होते। सबके पास वेदों का शुद्ध ज्ञान नहीं होता । अनेक गुरुओं के पास शुद्ध अशुद्ध मिश्रित ज्ञान होता है। क्योंकि वे वेदों को ठीक ढंग से नहीं पढ़ते, उनको नहीं समझते, और उन पर सही ढंग से आचरण भी नहीं करते। इसलिए सभी विद्वान प्रवक्ता लोग उतने लाभकारी नहीं होते, जितने कि वेदों के सच्चे विद्वान वैराग्यवान एवं उत्तम आचरण वाले सन्यासी लोग । अतः ऐसे वैदिक विद्वान सन्यासी वैरागी लोगों का सत्संग अवश्य करें और अपने जीवन को सफल बनाएं ।

– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात ।