संसार में चार प्रकार का ज्ञान होता है। मिथ्याज्ञान, संशयज्ञान, शाब्दिक ज्ञान और तत्त्वज्ञान । प्रत्येक व्यक्ति में यह चारों प्रकार का ज्ञान होता है। किसी विषय में मिथ्याज्ञान होता है। किसी विषय में संशयज्ञान होता है। किसी विषय में शाब्दिक ज्ञान होता है, और किसी विषय में तत्त्वज्ञान भी होता है। जब बच्चों को पढ़ाई करने के लिए स्कूल कॉलेज गुरुकुल आदि में भेजा जाता है, तब उन्हें कुछ विशेष ज्ञान नहीं होता। इसीलिए उनका ज्ञान बढ़ाने के लिए उनको शिक्षा संस्थानों में भेजा जाता है। पहली कक्षा से लेकर डॉक्टरेट तक वे जो भी पढ़ाई करते हैं, जो भी ज्ञान प्राप्त करते हैं, उससे उनका बहुत सा मिथ्याज्ञान और संशय दूर हो जाता है, तथा उन्हें बहुत सा शाब्दिक ज्ञान हो जाता है। उस पढ़ाई लिखाई के आधार पर उनकी परीक्षाएं होती हैं, और फिर परीक्षाओं में पास हो जाने पर उन्हें डिग्री दी जाती है। यह जो उन्हें डिग्री दी जाती है, एक प्रकार से यह इस बात का प्रमाण पत्र है अथवा रसीद है, कि उन्होंने शिक्षा संस्थानों में इतनी पढ़ाई की, और उस पढ़ाई में कुछ धन आदि भी खर्च हुआ। परंतु उस पढ़ाई में उन्हें जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त हुआ, उसमें से बहुत सारा तो उन्हें शाब्दिक ज्ञान होता है, तत्त्वज्ञान तो बहुत कम ही होता है। इन दोनों में क्या अंतर है? अंतर यह है, कि जितना ज्ञान उन्होंने शब्दों के रूप में प्राप्त किया, परंतु वे उसके अनुसार आचरण नहीं कर पा रहे, तो उस ज्ञान को शाब्दिक ज्ञान कहते हैं । जैसे उन्होंने शिक्षा संस्थान में पढ़ा सीखा, कि सभ्यता से नम्रता से जीवन जीना चाहिए। दूसरों की सहायता करनी चाहिए। किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। अनुशासन में रहना चाहिए, इत्यादि । अब यदि वे इन बातों को अपने आचरण में नहीं उतार पा रहे, और व्यवहार में असभ्यता दुष्टता अभिमान आदि दोष करते हैं, तो इसे ऐसा कहेंगे, कि उन्हें शाब्दिक ज्ञान तो हो गया, परंतु तत्त्वज्ञान नहीं हुआ। तत्त्वज्ञान का तात्पर्य है, कि जो कुछ उन्होंने पढ़ा सीखा, उसे उन्होंने अपने आचरण में भी उतारा। और व्यवहार में वे सभ्यता नम्रता आदि से रहते हैं। दूसरे कमजोर लोगों की सहायता करते हैं। किसी का मजाक नहीं उड़ाते । सब अच्छे काम करते हैं। इसका नाम तत्त्वज्ञान है। परंतु बहुत से लोग शाब्दिक ज्ञान प्राप्त करके स्वयं को तत्त्वज्ञानी मानने लगते हैं। यह उनकी भूल है। उन्हें अपनी भूल का सुधार करना चाहिए, और अपने शाब्दिक ज्ञान को तत्त्वज्ञान के स्तर तक लाना चाहिए । तभी वे सभ्य सुशील विनम्र और बुद्धिमान व्यक्ति कहलाएंगे। तभी उनका जीवन सफल हो पाएगा, अन्यथा उनका जीवन व्यर्थ है। जैसे रावण दुर्योधन आदि ने शाब्दिक ज्ञान तो बहुत प्राप्त किया, परंतु उसे वे तत्त्वज्ञान के स्तर तक नहीं ला सके, इसीलिए आज तक उनकी बदनामी होती है । उनका जीवन सफल नहीं हो पाया। श्री राम जी, श्री कृष्ण जी आदि महापुरुष अपने शाब्दिक ज्ञान को तत्त्वज्ञान के स्तर तक लाये । उसे आचरण में उतारा। इसी कारण से उनका जीवन सफल हो गया। तो सबको ऐसे महापुरुषों का ही अनुकरण करना चाहिए, और अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए। क्योंकि शाब्दिक ज्ञान से जीवन सफल एवं सुखमय नहीं हो पाता, बल्कि तत्त्वज्ञान से ही जीवन सफल एवं सुखमय होता है।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात