रिश्तों को आसक्ति से परे रखें

रिश्तों को आसक्ति से परे रखें
रिश्तों को आसक्ति से परे रखें

संसार में बहुत से लोग मिलते हैं और बिछड़ते रहते हैं। कुछ जन्म से आपके संबंधी होते हैं, जैसे माता, पिता, भाई-बहन इत्यादि। कुछ बाद में मित्र बन जाते हैं। जिनके साथ आपके विचार मेल खाते हैं, वे आपके मित्र बन जाते हैं। और जिनके साथ विचार मेल नहीं खाते, उनके साथ आपकी मित्रता नहीं बनती। यदि विचारों में कुछ अधिक ही टकराव हो, तो कुछ लोग आपके शत्रु भी बन जाते हैं। बाकी लोग उदासीन रहते हैं। इस प्रकार से संसार में कुछ आपके मित्र, कुछ शत्रु, और कुछ उदासीन होते हैं। ये तीन प्रकार के लोग अर्थात मित्र, शत्रु और उदासीन सभी के होते हैं। जो आपके बचपन के मित्र होते हैं, वे धीरे-धीरे बिछड़ते रहते हैं, और समय-समय पर नये मित्र भी बनते रहते हैं। क्योंकि संसार में एक यात्रा चल रही है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति एक यात्री है। सबका लक्ष्य मोक्ष है। सब यात्री अपने लक्ष्य की ओर जा रहे हैं। रेल यात्रा के समान इस यात्रा में भी दूसरे लोगों के साथ मिलना और बिछुड़ना तो होता ही रहता है। जो लोग आपके बचपन में अर्थात 5/7 वर्ष की आयु में आपके मित्र थे, समय और परिस्थितियों के अनुसार कुछ समय बाद वे कहीं और चले गए। जब आप कुछ और बड़े हुए, तब कुछ दूसरे मित्र बने। कुछ समय के बाद वे मित्र भी छूट गए, कुछ नए मित्र मिल गये ।कुछ वर्षों के बाद जब आप युवा हुए, तब वे मित्र भी छूट गए कुछ और नए लोग आपके मित्र बन गये। इस प्रकार से समय-समय पर कितने ही लोग आपके मित्र बनते रहे, और छूटते रहे। उनके व्यापार नौकरी आदि के स्थान भिन्न-भिन्न होने के कारण आपसे अलग होते रहे। जो बचपन के बहुत पुराने मित्र थे, वे तो आज आपकी स्मृतियों से भी निकल गए। बचपन के वे मित्र, जिन के साथ आप उठना, बैठना, खाना – पीना खेलकूद करना आदि व्यवहार करते थे, अब तो आपको याद भी नहीं है, कि वे कौन-कौन थे। इस संसार को इस प्रकार से देखना चाहिए, और किसी व्यक्ति के साथ भी मोह-माया आसक्ति आदि नहीं बांधनी चाहिए। क्योंकि आप भी एक यात्री हैं, और आपके मित्र भी यात्री हैं। एक दिन आप भी इस संसार से चले जाएंगे, और वे भी। आप चाहते हैं कि लोग आपको सदा याद रखें। यह नहीं हो सकता। क्योंकि आप भी तो बहुत लोगों को भूल चुके हैं। आप भी बहुत से लोगों की स्मृतियों में से निकल चुके हैं। वे बचपन के आपके मित्र यदि आज आपको कहीं मिल भी जाएं, तो शायद आप उन्हें नहीं पहचान पाएंगे, और वे भी आपको नहीं पहचानेंगे। फिर अपनी मान प्रतिष्ठा कीर्ति के लिए इतनी मारामारी क्यों? यदि आप किसी भी व्यक्ति के साथ मोह-माया आसक्ति आदि बांधेंगे, तो जिस दिन दूसरे लोग संसार से विदा होंगे, तब आप दुखी होंगे। और जिस दिन आप संसार से विदा होंगे, उस दिन दूसरे लोग दुखी होंगे । इसलिए यथा योग्य उचित न्यायपूर्वक लेन-देन आदि व्यवहार सबके साथ रखें, परंतुकिसी के साथ भी आसक्ति न बांधें। यही सुखदायक व्यवहार है।

-स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय

रोजड़, गुजरात ।