संपादकीय – रवीन्द्र वाजपेयी
चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा के लिए जबरदस्त उत्साहवर्धक रहे। हिमाचल और कर्नाटक में मिली पराजय के बाद पार्टी की चिंताएं बढ़ रही थीं। दूसरी तरफ कांग्रेस का मनोबल आसमान छूने लगा। राजनीतिक विश्लेषक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू खत्म होने के साथ ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को पांसा पलटने वाली बताने लगे । यही वजह थी कि कुछ महीनों पहले तक तेलंगाना में हाशिये पर समझी जा रही कांग्रेस पूरे आत्मविश्वास के साथ उतरी और जल्द ही उसकी जीत के संकेत भी आने लगे। इसके बाद से ही ये अवधारणा तेजी से फैली कि म.प्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस अपना परचम फहराने में सफल हो जाएगी। म.प्र के बारे में तो खुद भाजपाई भी मानने लगे थे कि मुकाबला कड़ा है और जरा सी चूक से 2018 की पुनरावृत्ति हो सकती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकार द्वारा चलाई गई जनकल्याणकारी योजनाएं कांग्रेस की वापसी का आधार मानी जा रही थीं। हालांकि बाद में राजस्थान में भाजपा की संभावनाएं बढ़ने लगीं किंतु छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार को अपराजेय मानते हुए यहां तक कहा जाने लगा कि वहां भाजपा आधे – अधूरे मन से मैदान में उतरी थी। तेलंगाना में भाजपा ने कुछ समय पहले प्रदेश अध्यक्ष बदलकर अपनी आक्रामकता खत्म कर दी थी जिससे कांग्रेस को अवसर मिल गया। हालांकि वहां पार्टी की सीटें 1 से बढ़कर 8 हो गईं । मतदान के बाद आए एग्जिट पोल के दो निष्कर्ष तो एकमतेन थे कि तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आसानी से जीतेगी जबकि म.प्र और राजस्थान को लेकर मतभिन्नता थी। एक दो पोल में म.प्र में भाजपा की बड़ी जीत बताने वालों का खूब मजाक भी उड़ा । वहीं राजस्थान में ज्यादातर लोग बराबरी की टक्कर मान रहे थे। लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया। म.प्र में भाजपा की प्रचंड विजय के साथ ही राजस्थान में सुविधाजनक बहुमत मिलने तक तो ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ किंतु जैसे – जैसे छत्तीसगढ़ के परिणाम आते गए वैसे – वैसे सभी चौंक गए। भाजपा ने तेलंगाना छोड़ बाकी तीन राज्य जीतकर ये दिखा दिया कि हिमाचल और कर्नाटक की पराजय से सबक लेकर उसने अपनी कमजोरियों को दूर किया और समूचे चुनाव अभियान को बेहद पेशेवर अंदाज में संचालित किया। दूसरी तरफ कांग्रेस इस चुनाव में कर्नाटक की खुमारी से उबरती नहीं दिखी और उसने स्थानीय समीकरणों की घोर उपेक्षा की । गुटबाजी भाजपा में भी कम नहीं थी। टिकटों के लिए उसमें भी वही सब देखने मिला जो कांग्रेस में नजर आता था किंतु उसे दूर करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने हरसंभव प्रयास किए जिसका सुखद परिणाम निकला। हारी हुई सीटों पर जिस तरह की व्यूह रचना भाजपा द्वारा की गई उसे कांग्रेस समझ ही नहीं सकी जिससे दो राज्य तो उसके हाथ से निकले ही म.प्र में भी उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ी । शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना ने जो इबारत दीवार पर लिखी उसे न कमलनाथ पढ़ सके और न ही दिग्विजय सिंह। कमलनाथ तो इतने आत्ममुग्ध थे कि उन्होंने चुनाव संचालन में किसी को हिस्सेदारी नहीं दी और पार्टी संगठन को निजी संपत्ति मान बना बैठे । इसीलिए आखिर – आखिर में दिग्विजय भी ठंडे होकर बैठ गए। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास के शिकार हुए। भाजपा ने दबे पांव वहां के चुनाव में आमद दर्ज कराई और मुकाबला जीत लिया । राजस्थान में कांग्रेस जीत सकती थी लेकिन आलाकमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा सुलझाने में असफल रहा जिसके कारण उसके हाथ से जीत छिन गई। दूसरी तरफ भाजपा ने कांग्रेस की गलतियों से फायदा उठाने के अलावा अपनी कमियों को दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सही बात ये है कि जिस तरह डा.मनमोहन सिंह की सरकार नीतिगत अनिर्णय के कारण जनता का भरोसा खो बैठी वही स्थिति कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व अर्थात गांधी परिवार की है जो पेचीदा मामलों में निर्णय लेने से बचता है। इसका पहला उदाहरण पंजाब था जहां अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्धू के झगड़े ने कांग्रेस का सत्यानाश कर दिया। लगभग वही कहानी राजस्थान में दोहराई जाती रही। हाईकमान के फैसले के विरुद्ध श्री गहलोत ने जिस तरह से बगावत का झंडा उठाया वह मामूली बात नहीं थी। गांधी परिवार न तो उन पर दबाव बना सका और न ही सचिन पायलट को उनके साथ सामंजस्य बनाने के लिए राज़ी कर सका। छत्तीसगढ़ में भी 2018 की जीत के बाद भूपेश बघेल और टी. एस. सिंहदेव के बीच ढाई – ढाई साल मुख्यमंत्री रहने का समझौता हुआ किंतु उसका पालन नहीं होने से श्री सिंहदेव नाराज बने रहे। चुनावी साल में उनको उपमुख्यमंत्री बनाकर संतुष्ट करने का दांव चला गया किंतु वह कारगर नहीं रहा और श्री सिंहदेव चुनाव हार गए। कुल मिलाकर ये कांग्रेस की नीतिगत दिशाहीनता का नतीजा है। भाजपा की नकल करते हुए हिंदुत्व का चोला धारण करने का दिखावा तो खूब हुआ किंतु पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे ने जब सनातन को नष्ट करने का समर्थन किया तो उसका राहुल , प्रियंका , कमलनाथ , अशोक गहलोत और श्री बघेल जैसे नेताओं ने विरोध नहीं किया। भाजपा इस मुद्दे पर कांग्रेस को सनातन विरोधी साबित करने में सफल हो गई। इस चुनाव में मोदी की गारंटी नामक नारे का जादू भी कारगर रहा। प्रधानमंत्री की गरीब कल्याण योजनाओं को जिस तरह सफलतापूर्वक लागू किया गया उसका मतदाताओं पर सकारात्मक असर हुआ। कुल मिलाकर तीन राज्य जीतकर भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने हौसले को मजबूत कर लिया है। इन नतीजों का विपक्ष के इंडिया नामक गठबंधन के भविष्य पर भी असर पड़ना तय है क्योंकि हिमाचल और कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस ने जिस तरह उत्तर भारत के तीन राज्यों में इंडिया के अन्य घटक दलों के साथ गठबंधन से इंकार किया उससे वे काफी नाराज हैं। जाहिर है ये चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए चिंता का कारण हैं क्योंकि श्री मोदी के मुकाबले राहुल गांधी एक बार फिर बौने साबित हुए हैं। म.प्र और राजस्थान के जिन इलाकों से भारत जोड़ो यात्रा निकली वहां कांग्रेस का सफाया हो जाना इसका प्रमाण है ।