व्यक्ति क्या चाहता है। सुख ही तो चाहता है। और इस सुख प्राप्ति के चक्कर में लोग अनेक उपाय अपनाते हैं, जिनमें से एक उपाय दूसरों को सुख देना भी है। यद्यपि बहुत से लोग दूसरों को सुख नहीं देते, बल्कि सुझाव देते हैं। वह भी इस कारण से देते हैं, कि वे दूसरे व्यक्तियों को यह दिखाना चाहते हैं, कि आपकी बुद्धि कम है, और मेरी अधिक है। आप गलती कर रहे हैं, और मैं आपको गलती से बचाना चाहता हूं। मन में ऐसी भावना रखकर भी बहुत से लोग सुझाव देते हैं, अर्थात उनके मन में दूसरों को अपमानित करने की भावना होती है। यदि किसी के मन में यह भावना होती है, वह तो ठीक नहीं है। परंतु यदि वास्तव में किसी का भला सोचकर किसी को सुझाव दिया जाता है, तो वह अच्छी बात है। सुझाव देने वाला, उस दूसरे व्यक्ति से आयु में बड़ा हो, विद्या में बड़ा हो, अनुभव में बड़ा हो, तो सुझाव देना उचित रहता है, अन्यथा नहीं । आयु में यदि कभी छोटा भी हो, तो भी कम से कम उस क्षेत्र की विद्या में तो बड़ा होना ही चाहिए, जिस क्षेत्र में वह सुझाव दे रहा है। दूसरी बात-सुझाव देने की अपेक्षा यदि वह सीधा-सीधा उसे व्यक्ति को सुख ही देवे, तो और भी अधिक उत्तम है। क्योंकि सुझाव देने से सुख कम मिलता है, और सीधा-सीधा सुख देने से दूसरे व्यक्ति को सुख अधिक मिलता है। यदि दूसरे व्यक्ति को सुझाव की अपेक्षा सीधा-सीधा सुख ही दिया जावे, तो ऐसी स्थिति में, सुख देने वाले व्यक्ति को भी पुण्य और सुख अधिक मिलता है। यदि कहीं पर सीधा- सीधा सुख देने की स्थिति न हो, तो वहां सुझाव देकर भी काम चलाया जा सकता है। इसलिए यदि आप अधिक पुण्य और सुख अधिक प्राप्त करना चाहते हों, तो कहीं-कहीं दूसरों को सद्भावना पूर्वक सुझाव भी दीजिए। और यदि संभव हो, तो सीधा-सीधा सुख भी दीजिए। वह
आपके लिए बहुत लाभकारी होगा।
-स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक-दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात