संसार में ऐसा देखने में आता है कि अधिकांश लोग संपत्ति का संग्रह करने में लगे हैं। बस यही काम है। माता-पिता की सेवा, परोपकार, गौ आदि प्राणियों की रक्षा, ईश्वर की उपासना, यज्ञ करना इत्यादि, शुभ कर्मों के लिए व्यक्ति के पास कोई समय नहीं है। बस, पैसे कमाना खाना-पीना, पार्टियों में जाना, गीत-संगीत, गाना-बजाना, नाचना, सैर-सपाटा करना आदि। इन सब भोगवादी प्रवृत्तियों में ही आज का व्यक्ति पूरी तरह से डूबा हुआ है। इस बात पर उसका कोई ध्यान नहीं है, कि मैं जो संपत्ति बटोर रहा हूं, वह मेरे साथ नहीं जाएगी. सब कुछ यहीं रह जाएगा । इतिहास बताता है, कि बड़े-बड़े राजा- महाराजा और सेठ लोग सारी संपत्तियां यही संसार में छोड़ गए। कुछ भी नकद संपत्ति अपने साथ नहीं ले गए। इन बातों पर भी विचार करना चाहिए। कुछ लोगों को शाब्दिक रूप से यह बात समझ में आ जाती है, कि सब संपत्तियां यहीं रह जाएंगी, कुछ भी नकद संपत्ति साथ में नहीं ले जा पाएंगे। परंतु वे भी दिन-रात संपत्तियां बटोरने में ही लगे हैं। इससे पता चलता है, कि उनको शाब्दिक ज्ञान हुआ है, वास्तव में अभी यह बात समझ में नहीं आई । जिस जिस व्यक्ति को यह बात वास्तव में समझ में आ जाती है, वह अधिक संपत्ति का संग्रह नहीं करता । और यदि किसी प्रकार से आवश्यकता से अधिक संपत्ति आ भी जाए, तो वह शीघ्र ही उसे योग्य पात्रों में बांट देता है, दान कर देता है । आप भी इन बातों पर गहराई से चिंतन मनन करें। और इस बात को यथार्थ रूप से समझ कर ऊपर बताई प्रक्रिया को अपनाएं। इसी से आपके जीवन में सुख शांति और आनंद बढ़ेगा। अन्यथा मृत्यु के समय बटोरी हुई संपत्ति को छोड़ते समय आपको भी बहुत दुख भोगना पड़ेगा।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग
महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात