जबलपुर । नर्मदा की कलचुरि कालीन विश्व की सबसे प्राचीन व सुंदर एवं एकमात्र प्रतिमा मां मक्रवाहिनी की है। यह प्रतिमा सबसे अनूठी और एकमात्र है क्योंकि मां नर्मदा के अवतरण विषय पर केंद्रित है। कलचुरि राजाओं ने स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया है इसलिए भी संभव है कि जल प्रदूषण को लेकर भी कोई विचार रहा हो। इसलिए देव उठनी ग्यारस को इनकी स्थापना की गई।
मूर्ति में अंकित विभिन्न देवी देवता वही चित्रित हैं, जो अवतरण के समय साक्षी थे
इतिहासकार डा. राणा ने बताया कि उत्तर और दक्षिण के मूर्तिशिल्प के मिलन का यहसर्वोत्तम नमूना है। इसलिए एक नये शिल्प ने जन्म लिया। इसे कलचुरि शिल्प के नाम से जाना जाता है चूकि मां नर्मदा के प्राकट्य ही इस मूर्ति का मूल विषय है। इसलिए मूर्ति में अंकित विभिन्न देवी देवता वही चित्रित किये गये हैं। जो अवतरण के समय साक्षी थे। डा. राणा ने बताया कि इस शोध के दौरान रादुविवि के कुलपति प्रो कपिल देव मिश्र, प्रो. अलकेश चतुर्वेदी, डा. अभिजात कृष्ण त्रिपाठी एवं डा. कौशल दुबे का विशेष सहयोग मिला। कलचुरि शिल्प का स्वर्ण युग युवराजदेव के समय प्रारंभ हुआ, जब उनका विवाह आंध्रप्रदेश की चालुक्य राजकुमारी नोहला देवी से हुआ। नोहला देवी ने दक्षिण से शैव आचार्यों को त्रिपुरी (जबलपुर) बुलाया और प्रारंभ हुआ कलचुरि शिल्प कटनी के पास विलहरी में नोहलेश्वर का मंदिर बनाया गया और वहीं से बलुआ पत्थर कलचुरियों की राजधानी त्रिपुरी (तेवर) लाया जाने लगा और उसके उपरांत तो कलचुरि शिल्प का अद्भुत विकास हुआ। राजा कर्ण कलचुरियों का सर्वप्रथम राजा हुआ।
मां मक्रवाहिनी की मूर्ति का निर्माण कराया गया ताकि दर्शन लाभ मिले
मां मक्रवाहिनी और त्रिपुर सुंदरी दोनों मूर्तियों का सृजन उसी के काल में हुआ कर्ण को वाराणसी बहुत प्रिय थी और उसने मंदिर और एक बस्ती भी बनायी थी वहीं उसे नर्मदा नदी के महात्म्य के बारे में जानकारी मिली थीं कि दर्शन मात्र से पाप दूर हो जाते हैं और केवल इसी नदी की परिक्रमा होती है। इसलिए मां मक्रवाहिनी की मूर्ति का निर्माण कराया गया ताकि दर्शन लाभ और उनकी प्रतिमा की परिक्रमा कर.. नर्मदा की परिक्रमा का लाभ उठाया जा सके।