अपनी प्रशंसा सुनने से सबको सुख मिलता ता है। है। और अपनी बुराई सुनने से सबको दुख होता है। दुख भोगना कोई चाहता नहीं। इसलिए कोई भी व्यक्ति अपनी बुराई सुनना नहीं चाहता। सुख भोगना सभी चाहते हैं, इसलिए लोग यह चाहते हैं, कि जब तक हम जीवित रहें, तब तक दूसरे लोग हमारी प्रशंसा करें, और हम अपने कानों से अपनी प्रशंसा सुनें। अब मुफ्त में तो कोई किसी की प्रशंसा करता नहीं। यदि किसी व्यक्ति में सेवा, परोपकार, दान, दया, सहनशीलता, सभ्यता, नम्रता आदि अच्छे गुण होते हैं, उन गुणों से यदि दूसरों को सुख मिलता है, तभी दूसरे लोग उस व्यक्ति की प्रशंसा करते हैं, अन्यथा नहीं। यह तो हुई जीवनकाल की बात। परंतु बहुत से लोग यह भी चाहते हैं, कि हमारे मरने के बाद भी लोग हमारी प्रशंसा करें। भले ही हम उसे नहीं सुन पाएंगे। फिर भी संसार में बहुत समय तक यदि हमारी प्रशंसा चलती रहेगी, तो हमारे लिए यह अच्छी बात होगी। यदि आप भी ऐसा चाहते हों, कि आपके जीवन काल में भी लोग आपकी प्रशंसा करें और मरने के बाद भी संसार में आप की प्रशंसा होती रहे, तो लोग तभी तो आपकी प्रशंसा करेंगे, जब हों। आप में भी कुछ अच्छे गुण है यदि आप में अच्छे गुण नहीं होंगे, तो लोग आप की प्रशंसा क्यों करेंगे ? नहीं करेंगे। आपके जीवन काल में आपको अपनी बुराई सुनकर अच्छा नहीं लगता। यदि आपके मरने के बाद भी लोगों में आपकी बुराईयों की चर्चा चलती रही, तो उससे आपको तो प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन समाज के लोगों पर भी तो उसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसे कि रावण, दुर्योधन, कंस आदि के विषय में आज भी समाज में उनकी बुराईयों की चर्चा चलती है। इस कारण से समाज के लोग उनको अच्छा व्यक्ति नहीं मानते, बल्कि दुष्ट व्यक्ति मानते हैं। कोई बुद्धिमान व्यक्ति उनके दुष्ट आचरणों का अनुकरण करना नहीं चाहता। इसलिए यदि आप चाहते हों, कि हमारे जीते जी और मरने के बाद भी हमारी प्रशंसा संसार में होती रहे, और संसार के लोग हमारे संबंध में बुराइयों की चर्चा ना करें तो आप अपने अंदर विद्यमान झूठ छल कपट धोखा बेईमानी इत्यादि सब बुराइयों को छोड़ने का पूरा प्रयत्न करें। तथा सेवा परोपकार दान दया सहनशीलता सभ्यता नम्रता ईश्वरभक्ति देशभक्ति इत्यादि सब उत्तम गुणों को धारण करें क्योंकि आपकी अनुपस्थिति में लोग आपके इन्हीं गुणों के साथ आपको याद करेंगे।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन
योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात ।