क्या इंडी एलायंस फेल होने जा रहा है? पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच ऐसे सवाल उठना सोशल मीडिया के दौर में ट्रोलिंग और आलोचना का कारण बन सकता है। लेकिन यह सवाल मौजूं हो चुका है। इसकी वजह है, विशेषकर उत्तर और मध्य भारत के विधानसभा चुनावों में बिना सामंजस्य के उतरे विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बेशक सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के ही बीच है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसे दलों की इन चुनावों में कोई भूमिका नहीं है। लेकिन जिस तरह कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी का इन चुनावों में इंडिया गठबंधन के दलों और उनके नेताओं के साथ जैसा व्यवहार है, उसके संकेत साफ हैं। संकेत यह कि कांग्रेस अपनी शर्तों और मनमर्जी पर इन दलों को मौका देगी और अगर उसे महसूस हुआ तो वह सहयोगी दलों के लिए मौका भी नहीं छोड़ेगी। विपक्षी गठबंधन में सबसे बड़ा दल निश्चित तौर पर कांग्रेस है। उसका संगठन भी सबसे पुराना है। इस नाते उसका अगुआई का स्वाभाविक दावा भी बनता है। लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी सोच से आगे दुनिया निकल चुकी है। अगर वह सचमुच बड़ा दल ही होती, जमीन पर उसकी वैसी ही पकड़ होती, जैसी करीब तीन दशक पहले तक थी, तब उसे गठबंधन की भला जरूरत ही क्यों पड़ती ? लेकिन कांग्रेस और उसका नेतृत्व अब भी अतीत के चमकदार पन्नों में ही अपना इतिहास देखने का आदी है। वह स्वीकार नहीं कर पा रही है कि सुनहरे इतिहास के पन्ने आधुनिकता की यात्रा करते-करते धुंधले पड़ गए हैं। यह धुंधलापन ही उसे गठबंधन के लिए मजबूर कर रहा है। संख्याबल के दल सबसे बड़ा है। लेकिन ममता इन दिनों गठबंधन की गतिविधियों में कम ही दिलचस्पी दिखा रही हैं। जाहिर है कि वे गठबंधन को अपने हिसाब से तौलना और उसका बंगाली माटी में इस्तेमाल की गुंजाइश देख रही हैं। जनता दल यूनाइटेड भी बड़ा दल है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके सांसदों की संख्या बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के चलते इतनी है। इस लिहाज से विपक्षी गठबंधन में समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर का महत्वपूर्ण दल है। लोकसभा में उसके सांसदों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन यह तय है कि जनसंख्या और लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में वही बीजेपी के सीधे मुकाबले में हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी का गठबंधन में अहमियत की चाहत रखना स्वाभाविक है। इसी चाहत के चलते अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में अपने लिए कुछ सीटों की उम्मीद रखी। लेकिन कांग्रेस ने उनकी बात सुनना तो दूर, एक तरह से अपमानित कर दिया। कमलनाथ का यह कहना कि छोडिए अखिलेश- वखिलेश को एक तरह से समाजवादी पार्टी का अपमान ही है। रही-सही कसर उत्तर प्रदेश के नये नवेले कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने पूरी कर दी। ऐसे में अखिलेश ने आपा खो दिया। इसका असर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान तीनों राज्यों में दिख रहा है। यहां समाजवादी पार्टी भी मैदान में है। शायद अखिलेश का हश्र देखकर ही आम आदमी पार्टी ने तीनों राज्यों में लिहाज से देखें तो विपक्षी गठबंधन में ममता बनर्जी का अपने उम्मीदवार उतार दिए।