सर्वोच्च न्यायालय में धारा 370 हटाए जाने के विरुद्ध पेश की गई याचिकाओं पर चल रही बहस अंतिम चरण में आ गई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई दलीलों के जवाब में सरकार की ओर से उक्त धारा को हटाए जाने के अधिकार और औचित्य साबित करने का प्रयास किया गया। इस दौरान मुख्य बात जो उभरकर सामने आई वह 370 के अमरत्व की थी । याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए देश के दिग्गज अधिवक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में विलय के बावजूद जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देते हुए उसका पृथक संविधान बनाया गया था। चूंकि उस हेतु गठित राज्य की संविधान सभा अस्तित्व में नहीं है इसलिए उक्त धारा को समाप्त करना तो दूर रहा छुआ तक नहीं जा सकता। चूंकि 1950 के बाद भारत के संविधान को बनाने वाली संविधान सभा भी भंग हो गई इसलिए जम्मू कश्मीर को 370 और 35 ए के तहत दी गई विशेष स्थिति को बदलना तभी संभव हो सकता है जब उस सभा को पुनर्गठित किया जावे। संवैधानिक पेचीदगियों से जुड़े और भी सवाल याचिकर्ताओं के अधिवक्ताओं द्वारा पेश किए जा चुके हैं । इस दौरान मुख्य न्यायाधीश डी. वाय. चंद्रचूड़ सहित उनकी अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में शामिल न्यायाधीशों ने अधिवक्ताओं से जो प्रश्न पूछे वे निश्चित रूप से उनके फैसले में परिलक्षित होंगे। हालांकि पीठ याचिकाओं पर क्या निर्णय करेगी इस बारे में कह पाना तो कठिन है किंतु गत दिवस श्री चंद्रचूड़ ने 35 ए को लेकर जो टिप्पणी की वह बेहद महत्वपूर्ण है। उक्त धारा के अंतर्गत जम्मू कश्मीर के लोगों को दिए गए विशेष अधिकारों को सुरक्षित रखने के पक्ष में दी गई दलील पर मुख्य न्यायाधीश की वह टिप्पणी इस प्रकरण से जुड़ी तमाम बातों का एक पंक्ति में दिया गया उत्तर है , जिसमें उन्होंने कहा कि 35 ए ने उक्त राज्य के नागरिकों को तो विशेष अधिकार संपन्न बना दिया किंतु देश के बाकी नागरिकों को इस राज्य में बसने , भूमि खरीदने और नौकरी करने जैसे अधिकारों से वंचित कर दिया। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि जिन सफाई कर्मियों को पीढ़ियों पहले पंजाब सहित अन्य राज्यों से वहां लाया गया वे सरकारी नौकरी में रहते हुए भी जम्मू कश्मीर की नागरिकता से वंचित रहे और उस आधार पर मतदाता नहीं बन सके। ऐसी ही स्थिति उन शरणार्थियों की भी बनी रही जो रियासत के भारत में विलय के बाद पाकिस्तान से आकर वहां बसे। श्री चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी अदालत से बाहर की गई होती तब तो शायद उसे उनका निजी विचार मानकर उपेक्षित किया भी जा सकता था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने 35 ए को लेकर जो कुछ कहा उसका संज्ञान लिया जाना स्वाभाविक है । और मुख्य रूप से धारा 370 के हटाए जाने की मांग के पीछे भी यही मुख्य कारण बना । जम्मू कश्मीर का अलग संविधान बनने के बाद संसद द्वारा पारित कानून वहां तब तक लागू नहीं होते थे जब तक उन्हें राज्य विधानसभा पारित न करे। यहां तक कि देश के संविधान के अंतर्गत नियुक्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राज्य के संविधान के अंतर्गत शपथ दिलाई जाती थी। अगस्त 2019 में मोदी सरकार द्वारा जब राज्य की विशेष स्थिति खत्म करते हुए उसे विभाजित कर लद्दाख अलग कर दिया और जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बना दिया तबसे वहां की परिस्थितियों में जो बदलाव हुए वे इस निर्णय के औचित्य को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। कहने को विशेष स्थिति उत्तर पूर्वी राज्यों में से भी कुछ को दी गई है किंतु जम्मू कश्मीर की स्थिति उनसे पूरी तरह अलग है जहां जनमत संग्रह के नाम पर उसे भारत से काटने का षडयंत्र शुरुआत से चला आ रहा था। जिस भारतीय सेना की मौजूदगी का कश्मीर घाटी की अलगाववादी ताकतें विरोध करती रहीं वह अगर सजग न होती तो घाटी पर पाकिस्तान का कब्जा हो जाता। मुख्य न्यायाधीश ने 35 ए के कारण देश के अन्य नागरिकों को जम्मू कश्मीर में अधिकार विहीन किए जाने का जो मुद्दा छेड़ा , दरअसल 370 हटाकर राज्य की विशेष स्थिति को खत्म करने का वही सबसे उचित आधार है। जम्मू कश्मीर जिन हालातों में भारतीय संघ में शामिल हुआ वे निश्चित रूप से बेहद जटिल एवं असामान्य थीं। जब रियासत का भारत में विलय हुआ तब विशेष स्थिति के अंतर्गत ही राज्यपाल को सदर ए रियासत और मुख्यमंत्री को वजीर ए आज़म (प्रधानमंत्री) कहा जाता था। लेकिन बाद में उसे बदलकर बाकी राज्यों की तरह ही राज्यपाल और मुख्यमंत्री जैसे संबोधन लागू कर दिए गए। इसके बाद भी 370 की आड़ में आजादी के सात दशकों बाद तक कश्मीर घाटी में पाक परस्ती को जिंदा रखा गया। श्री चंद्रचूड़ ने जो प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय में उठाया वह करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को शब्द देने वाला है। मुख्य न्यायाधीश का ये कहना मायने रखता है कि जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति के चलते देश में रहने वाले अन्य लोग वहां जमीन खरीदने , बसने और नौकरी पाने जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित थे। जबकि कश्मीर के लोग भारत में कहीं भी रहने और नौकरी पाने स्वतंत्र हैं। न्यायालयीन बहस से अलग हटकर देखें तो श्री चंद्रचूड़ द्वारा उठाया मुद्दा बेहद गंभीर एवं तीखा है। जो लोग 370 को हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं उन्हें मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणी पर अपना दृष्टिकोण रखना चाहिए।